डॉ. अजय खेमरिया
विश्व संवाद केंद्र मध्यप्रदेश की ओर से वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण दुबे के उपन्यास ‘मैं तुम्हारी कोशी’ पर परिचर्चा का आयोजन
वैरियर एल्विन आधुनिक भारत में षड्यंत्रकारी मिशनरीज के ब्रांड एम्बेसडर थे, जिनका उद्देश्य भारतीय लोकजीवन में वनवासियों को हिन्दुत्व के साथ सहजीवन से पृथक करना था। इसके लिए सत्ता के सरंक्षण में एल्विन जैसे मानवविज्ञानियों ने जनजातीय जीवन से जुड़े मिथ्या मिथक औऱ कथानक खड़े किए। लेखक प्रवीण दुबे की आत्मकथ्यात्मक शैली में लिखे गए उपन्यास ‘मैं तुम्हारी कोशी’ एल्विन जैसे कतिपय विद्वानों की अंतर्कथा को बेनकाब करने के लिए प्रमाणिक दस्तावेज है। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य डॉ. शिवकुमार तिवारी ने यह विचार विश्व संवाद केंद्र मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित पुस्तक परिचर्चा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस परिचर्चा में देश भर से अनेक लेखक, साहित्यकार एवं पत्रकारों ने भाग लिया। लेखक प्रवीण दुबे की यह उपन्यास हाल ही में प्रकाशित हुआ है, जिसमें डिंडोरी जिले की एक जनजातीय महिला कोशी औऱ विख्यात मानव शास्त्री वैरियर एल्विन के दाम्पत्य जीवन से जुडी त्रासदी को आत्मकथ्यात्मक शैली में रेखांकित किया गया है।
डॉ. तिवारी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि आधुनिक समाज विज्ञान भारत के जनजातीय जीवन को एल्विन के कथित शोध और विचारों के आलोक में ही समझता रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि एल्विन एक सुनियोजित धार्मिक एवं औपनिवेशिक कार्ययोजना के तहत भारत के जनजातीय समाज को लांछित औऱ अपमानित करने वाला शख्स था। उन्होंने मप्र के डिंडोरी जिले की 13 वर्षीय बालिका कौशल्या के साथ बलात विवाह किया और फिर उसे अपनी जनजातीय परियोजना के मार्केटिंग मैटर की तरह उपयोग किया। डिंडौरी के लेखक पत्रकार प्रवीण दुबे ने इस अंग्रेज के असली चरित्र को व्यवस्थित तरीके से इस रचना में उजागर किया है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक प्रमोद भार्गव ने इस रचना की शैली को अद्भुत बताते हुए कहा कि मप्र में मिशनरीज के ऐतिहासिक षडयंत्र को बेनकाब करने में यह पहला और प्रमाणिक प्रयास है। उन्होंने पुस्तक में एल्विन के कुकर्मों खासकर 13 वर्षीय कोशी से बलात विवाह को लेकर स्थानीय जनजाति प्रतिरोध को भी रेखांकित किये जाने की आवश्यकता पर जोर दिया। वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल ने पुस्तक की विषयवस्तु पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि यह पुस्तक उपन्यास की शक्ल में एक प्रमाणिक शोध पत्र है जिसे आने वाले समय में जनजातीय अवधारणाओं को यथार्थपरक नजरिये से समझने में मदद मिलेगी। श्री शुक्ल ने कहा कि एल्विन को कतिपय राजकीय सरंक्षण से एक महान अध्येता बनाया गया जबकि मूल रूप से वह एक भोगवादी इंसान था, उसने कोशी, लीला, केसर जैसी अनगिनत महिलाओं को अपनी जनजातीय ब्रांडिंग में टूल की तरह उपयोग किया।
वरिष्ठ संपादक गिरीश उपाध्याय ने ‘मैं तुम्हारी कोशी’ को एक साक्ष्य आधारित रचना निरूपित करते हुए कहा कि एल्विन मूलतः फ्रायड मनोविज्ञान पर अबलंबित शख्स थे इसलिए उनके लेखन में भारतीयता का नजरिया स्वाभाविक नहीं हो सकता है। आज के मौजूदा विमर्श में इन स्थापित बौद्धिक प्रतिमानों के विरुद्ध वास्तविकता पर खड़े रचनाकर्म को प्रोत्साहित किये जाने की जरूरत है, जिसे प्रवीण दुबे ने बखूबी करने का प्रयास किया है। श्री उपाध्याय ने सवाल उठाया कि आज पॉक्सो कानून बालिकाओं को एल्विन जैसे लोगों से सुरक्षा देता है लेकिन शारदा एक्ट तो उस दौर में भी था लेकिन उस समय के जिम्मेदार वर्ग ने एल्विन से सवाल क्यों नहीं किये? यह हमारे समाज मे ताकतवर के प्रति राजकीय और समाजिक सरंक्षण को आज भी प्रमाणित करता है।
वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने ‘मैं तुम्हारी कोशी’ को व्यक्त औऱ अव्यक्त अभिव्यक्ति का बेहतरीन युग्म बताते हुए कहा कि यह रचना एक नकली महामानव की गढ़ी गई प्रतिमा को प्रमाणिकता के साथ खंडित करती है। श्री शर्मा ने कहा कि कोशी के साथ जो क्रूरतम कृत्य एल्विन ने कारित किया उसके सन्देश आज बहुत ही सामयिक है। हमें परिवार प्रबोधन के नजरिये से इन अनुभवों को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
लेखिका रक्षा दुबे चौबे ने कहा कि यह उपन्यास नारी की पीड़ा को नारी के दृष्टिकोण से देखने का प्रयास है। अब तक किसी ने इस तरह कोशी के दर्द को समझने का प्रयास नहीं किया। नारी तन की चोटों के बजाय मन की चोटों को सहलाया जाना पसंद करती है। कोशी के साथ हुए अत्याचार को लेखक ने बहुत संवदेना के साथ प्रस्तुत किया है।
लेखक प्रवीण दुबे ने अपनी बात में कहा कि कोशी उनके लिए केवल साहित्यिक विषयवस्तु न होकर एक भावनात्मक मामला भी रहा है, इसलिए एल्विन को खंडित करती उनकी रचना कुछ पूर्वाग्रही लग सकती है। तथ्य यह है कि कोशी का शोषण किया गया लेकिन वह दैनंदिन जीवन की कठिनतम परिस्थितियों में भी अपने पति वेरियर एल्विन के प्रति निष्ठावान रही लेकिन एल्विन ने कोशी को अपनी सुनियोजित परियोजना में टूल की तरह उपयोग किया।
उन्होंने कहा कि आज भी हमारे नीति निर्धारक जनजातीय समाज को एल्विन की दृष्टि से देखना चाहते है इसीलिए कुछ समय पूर्व भोपाल में निर्मित जनजातीय पुस्तकालय का नाम एल्विन के नाम प्रस्तावित किया गया था जिसे बाद में वापिस ले लिया गया। परिचर्या को जनजातीय क्षेत्र में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण गुगनानी एवं डॉ अजय खेमरिया ने भी संबोधित किया। परिचर्चा का सूत्रबद्ध संचालन विश्व संवाद केंद्र के सहसचिव डॉ. कृपाशंकर चौबे ने किया और आभार प्रदर्शन निदेशक लोकेंद्र सिंह ने किया।