विजय पर्व से पहले पराजय का दिन

आज विजयदशमी है। वैसे तो इस पर्व का संदर्भ राम और रावण के युद्ध में रावण की पराजय और उसके अंत से जुड़ा है। लेकिन भारत में इसे प्रतीकात्‍मक रूप से और भी उच्‍च आदर्शों से जोड़ते हुए अच्‍छाई की बुराई पर, सत्‍य की असत्‍य पर, न्‍याय की अन्‍याय पर, नैतिकता की अनैतिकता पर या दैवीय गुणों की आसुरी प्रवत्तियों पर विजय के रूप में मनाया जाता है। और इसीलिए संकेतात्‍मक रूप से इस दिन रावण के पुतले का दहन भी किया जाता है।

लेकिन विजयदशमी से ठीक एक दिन पहले जो खबर आई है उसे हम प्रतीकात्‍मक रूप से बुराई की अच्‍छाई पर या अन्‍याय की न्‍याय पर जीत कह सकते हैं। 7 अक्‍टूबर को मैंने इसी कॉलम में मुंबई के आरे वनक्षेत्र (हालांकि सरकारी दस्‍तावेजों में इसे वनक्षेत्र नहीं माना जाता) में मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन का मेट्रो कार डिपो बनाने के लिए 2646 हरे भरे पेड़ों की बलि चढ़ाने का मामला उठाया था।

इन पेड़ों को काटा जा रहा है यह जानकारी मिलने पर स्‍थानीय लोगों और गैर सरकारी संगठनों एवं पर्यावरण संरक्षण में लगे समूहों ने इसका विरोध करते हुए बॉम्‍बे हाईकोर्ट की शरण ली थी। लेकिन हाईकोर्ट ने यह कहते हुए पेड़ कटाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था कि मामला सुप्रीम कोर्ट और राष्‍ट्रीय हरित अधिकरण में लंबित है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की वह मांग भी नामंजूर कर दी थी कि जब तक वे इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करें तब तक तो कम से कम पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी जाए।

7 अक्‍टूबर को जनहित याचिका के रूप में यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया और कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया कि पेड़ों की कटाई पर तत्‍काल प्रभाव से रोक लगाई जाए। मामले की अगली सुनवाई की तारीख 21 अक्‍टूबर तय करते हुए कोर्ट ने कहा कि तब तक यथास्थिति बहाल रखी जाए। इस दौरान वहां के हरित क्षेत्र से अब न ही और पेड़ काटे जा सकेंगे और न ही वहां कोई दूसरी गतिविधि हो सकेगी। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जब तक फॉरेस्ट यानी एन्वायरन्मेंट बेंच का फैसला नहीं आ जाता, तब तक आरे क्षेत्र में कोई गतिविधि न हो।

खबरें कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब ऐसे 44 पेड़ों की कटाई रुक गई है जिन्‍हें पहले काटने का फैसला कर लिया गया था। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार मुंबई में मीठी नदी के किनारे आरे क्षेत्र में लगे सघन पेड़ों में से 2646 पेड़ों को मेट्रो कार डिपो बनाने के लिए हटाया जाना था। इनमें से 2185 पेड़ों को पूरी तरह काटने और 461 को दूसरी जगह लगाने की योजना थी।

कोर्ट में सरकार की ओर से सूचित किया गया कि जितनी जरूरत थी उतने पेड़ कट चुके हैं इसलिए अब और पेड़ नहीं काटे जाएंगे। हालांकि, जस्टिस अरुण मिश्रा ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा, ‘हम जो समझ रहे हैं, उसके मुताबिक आरे इलाका नॉन डेवलपमेंट एरिया है, लेकिन इको सेंसटिव इलाका नहीं है।’

बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने जब पेड़ कटाई रोकने संबंधी याचिकाएं नामंजूर कर दी थीं, उसके तत्‍काल बाद से ही अधिकारियों ने संबंधित क्षेत्र में आनन फानन पेड़ों की कटाई का काम युद्धस्‍तर पर शुरू कर दिया था। पेड़ कटाई का विरोध करने वाले एक समूह की प्रतिनिधि ने रविवार को बताया था कि 2185 पेड़ों में से अबतक 1500 पेड़ तो काटे भी जा चुके हैं। मैंने लिखा था कि यदि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हो भी गई तो भी कोई नतीजा नहीं निकल पाएगा क्‍योंकि तब तक संभवत: सारे पेड़ जमींदोज किए जा चुके होंगे।

और शायद ऐसा ही हुआ भी है। समाचार वेबसाइट ‘द क्विंट’ ने मुंबई मेट्रो की तरफ से जारी एक बयान का हवाला देते हुए बताया है कि कुल 2185 पेड़ काटने की इजाजत मिली थी, जिसमें से 2141 पेड़ काट दिए गए हैं। यानी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से 44 पेड़ों की जिंदगी ही बच सकी है। कहा जा सकता है कि कटाई पर तत्‍काल रोक के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का व्‍यावहारिक रूप से कोई मतलब नहीं रहा क्‍योंकि जो करना था सरकार वह कर चुकी है।

इस मुद्दे ने मनुष्‍य और प्रकृति के रिश्‍तों से जुड़े सवालों और उनमें फंसे कानून कायदों के पेंच को और उलझा दिया है। यह समझ से परे है कि जिस मामले पर सुप्रीम कोर्ट सरकार को पेड़ कटाई रोकने और यथास्थिति बहाल रखने का निर्देश दे सकता है उसी मामले में ऐसा ही निर्देश शुक्रवार और शनिवार को हाईकोर्ट क्‍यों नहीं दे सकता था। हाईकोर्ट के मुताबिक मामला यदि सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी में लंबित था तो भी उसका आधार लेकर वही बात कही जा सकती थी जो सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कही।

उधर इतना होने के बावजूद सरकारी तंत्र न तो मामले की संवेदनशीलता को समझ पा रहा है और न ही अपनी हठधर्मिता छोड़ने को राजी है। आज तक की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि जो गलत है वह गलत है। 21 अक्‍टूबर तक वहां यथास्थिति बनी रहेगी। लेकिन द क्विंट की रिपोर्ट में मुंबई मेट्रो का बयान है कि अब और पेड़ नहीं काटे जाएंगे, लेकिन बाकी का काम जारी रहेगा। काटे गए पेड़ों को हटाने और साइट पर कंस्ट्रक्शन आदि का काम चलता रहेगा।

दरअसल मुद्दा कानून और सरकारी नियम प्रक्रियाओं का नहीं, विकास की हमारी अवधारणा और प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति हमारी संवेदनशीलता का है। सुप्रीम कोर्ट का यह कथन कि ‘जो गलत है, वो गलत है’ सिर्फ महाराष्‍ट्र सरकार या मुंबई मेट्रो पर ही लागू नहीं होता, समूची न्‍याय प्रक्रिया पर भी लागू होता है। जो बात सुप्रीम कोर्ट को गलत लगी वह बाकी को गलत क्‍यों नहीं लगी?

विजयदशमी का पर्व हम नौ दिन की देवी उपासना के बाद मनाते हैं। अकसर हम नवदुर्गा पर्व को ‘शक्ति’ की उपासना के पर्व से ही परिभाषित करते हैं और यह भूल जाते हैं कि ‘या देवी सर्वभूतेषु, शक्तिरूपेण संस्थिता’ के साथ साथ उस श्‍लोक में ‘मातृरूपेण संस्थिता’ भी है। समझ नहीं आता कि हम हमेशा ही शक्ति या ताकत के बल पर ही चीजों को जीतने की बात क्‍यों करते हैं। मातृस्‍वरूप को ध्‍यान में रखकर व्‍यवहार क्‍यों नहीं करते। प्रकृति भी मातृस्‍वरूपा है, उसके साथ तो हम ताकत या शक्ति प्रदर्शन का यह खेल न खेलें। याद रखें, इस खेल में हमारी पराजय निश्चित है, ऐसी पराजय जिसमें शायद हम ‘विजयदशमी’ मनाने लायक ही न रहें…

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