डॉ. महेश अग्रवाल
भीलवाड़ा में एक बड़े बाबू की ज़िद से आम आदमी डेढ़ माह से अपने ही घर में बंदी बन कर रहने को मज़बूर है! उसकी आय के साधन ख़त्म हो गये है और जमा पूँजी नक़दी दिन प्रतिदिन जमाखोरों के हाथ जाती जा रही है।
सरकारी और निजी दोनों किराना स्टोर, मेडिकल स्टोर सुविधा के नाम पर दोनों हाथों से लूट रहे हैं, हर सामान एमआरपी अथवा उससे ऊँचे मूल्य पर बिक रहा है। मजबूरी में आदमी का गला काटा जा रहा है!
शासन ने जानबूझ कर डी मार्ट, रिलायंस स्टोर और रिलायंस फ़्रेश को बंद कर रखा है जो इस समय महती आवश्यकता के लिए खोले जाने चाहिए थे। इन के ज़रिये आम आदमी छोटी छोटी बचत कर पाता था।
कोई मुझे बताये की रिलायंस मॉल या डी मार्ट में आदमी एक दूसरे के गले मिल मिल कर या एक दूसरे से गलबहियां करके ज़रूरी सामान, राशन ख़रीदता था क्या? यह जनता के साथ एक साज़िश है जिसे लूट का नाम भी दिया जा सकता है !!
अगर जनता को तीस और पचास प्रतिशत कम मूल्य पर अच्छी क्वालिटी का घरेलू आवश्यकता का सामान आसानी से मिल सकता था तो उसे बड़े कमीशन वाले उपभोक्ता भंडार और मोहल्ले के घटिया सामान रखने वाले किराना स्टोर की ओर क्यों धकेला जा रहा है!!
उपभोक्ता भंडार का आटा बेहद हल्के स्तर के गेहूँ का है जिसकी बनी रोटी पाँच मिनिट में सूख जाती है। बेसन, सूजी, पापड़ और चाय बेहद घटिया क्वालिटी की है, ऐसा उपयोग करने वाले शिकायत कर रहे हैं। इक्कीस रुपये किलोग्राम आटा लाकर भंडार ने पहले तीस रुपये और अब उसे पच्चीस रुपये किलो बेचना शुरू किया है!!
कृषि मंडी से बोलेरो गाड़ियों में आ रही सब्ज़ी और फ़्रूट की क्वालिटी इतनी हल्की है कि दूसरे दिन उसे सहेज पाना मुश्किल हो रहा है। निर्धारित दर से अधिक फलों का रेट आम आदमी को देना पड़ रहा है।
डेढ़ माह से सब्ज़ी और फलों का भाव एक सा चल रहा है। आम, अनार और सेब के भाव निर्धारित भाव से दस रुपये किलो ज़्यादा वसूले जा रहे हैं। मंडी में बढ़िया आम चालीस रुपये किलो है पर मंडी की अधिकृत गाड़ी में साठ रुपये किलोग्राम माँगा जा रहा है। सेब एक दिन में ख़राब हो रहे हैं।
इससे इतर लोगों के घरों में कूलर, एसी, पंखे, पानी की मोटरें ख़राब पड़ी हैं। भीषण गरमी में लोग परेशान हैं पर उन्हें ठीक कहाँ कराये ये एक बड़ी समस्या है! वातानुकूलित सिस्टम में बैठे अफ़सरों को नियम बनाते समय इस बात का ख़याल नहीं है कि बयालीस डिग्री तापमान में बिना कूलर, पंखे कैसे बंधुआ आदमी ज़िन्दा रहेगा!
चार घंटे की ढील में आदमी इन्हीं साधनों को ठीक कराने भाग रहा था पर आपको वह भीड़ की शक्ल में नज़र आया? वास्तव में सरकार और राजनीतिक पार्टियों की नज़र में आम आदमी केवल एक भीड़ है जिसे लाठी से हाँका जाता रहा है!
विडम्बना देखिये – शहर में जो पशु आवारा और अनुत्पादक हैं उन्हें पुलिस और सेठों के ज़रिए सड़कों पर हरा चारा पहुँचाकर ज़िन्दा रखा जा रहा है और ईश्वर की श्रेष्ठ कृति मनुष्य को डंडों के ज़रिये हाँका और धमकाया जा रहा है!!
भीलवाड़ा के उद्योग धंधों के साथ भी बड़ी साज़िश हो रही है। हमारा ट्रेंड लेबर क़ोरोना के उत्तरार्ध में अपने घर के नाम पर दूसरे राज्यों में भेजा जा रहा है। ऐसे में कल कल करने वाले कारख़ानों की आवाज़ कैसे
बाहर आएगी। आर्थिक मार से उद्योग चालू नहीं हो पाये तो बेरोज़गारी से लोग मरने लगेंगे।
बिना कारख़ाने शुरू हुये कोई कैसे और कब तक किसी को पगार दे सकता है। राज्य सरकार तो अभी कोरोना पीरियड में काम करने वाले अपने कर्मियों का आधा वेतन काट चुकी है और उद्योगपतियों को सलाह दे रही है की अपने मज़दूर को बिना काम किये पूरी तनख़्वाह दे – ये विरोधाभास की स्थिति है।
इसी तरह जो लोग आवास या वाणिज्यिक किराये की आय से घर और अपनी दिनचर्या चला रहे हैं वे उस परिसर का किराया नहीं लेंगे ऐसा कैसे सम्भव है? क्या राज्य सरकार अपने सरकारी मकानों और भवन परिसरों और दुकानों का किराया माफ़ कर रही है? काग़ज़ों में आये ऐसे आदेशों की पालना कौन कर सकता है जब सरकार ही ख़ुद ऐसा नहीं कर सकती है!
एक बात और – सरकार ने जनता के दो माह के बिजली, पानी के बिल माफ़ करने की बात कही है पर क्या बिजली निगम को कोई निर्देश लिखित में आज तक भेजा है? बिल तो आ रहे हैं और बिल चुकाने के लिये फ़ोन भी आ रहे हैं, क्या कोई बिल माफ़ हुआ किसी का?
आरबीआई के कहने के बाद भी क्या बेंकों ने किसी की हाउस लोन या पर्सनल लोन की किस्त छोड़ दी हो तो बताओ! ये सब बकवास बातें हैं…
जनता को सरकारी चक्की में पहले भी पिसना पड़ रहा था और अभी ज़िन्दगी जीने के लिये क़ोरोना संघर्ष करने के बाद भी उसकी स्थिति वैसी ही रहने वाली है। बल्कि उससे भी बदतर सम्भावित है !!!
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टीम मध्यमत