है कहाँ वह आग जो मुझको जलाए,
है कहाँ वह ज्वाल मेरे पास आए,
रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।
तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,
नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,
आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।
मैं तपोमय ज्योति की, पर, प्यास मुझको,
है प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझको,
स्नेह की दो बूँद भी तो तुम गिराओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।
कल तिमिर को भेद मैं आगे बढूँगा,
कल प्रलय की आँधियों से मैं लडूँगा,
किंतु मुझको आज आँचल से बचाओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।
– डॉ. हरिवंशराय बच्चन