अरविंद तिवारी
जरूरत विकास यात्रा नहीं, विश्वास यात्रा की है
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का पूरा फोकस इन दिनों विकास यात्रा पर है। वे अलग-अलग जिलों में जाकर न केवल विकास यात्राओं में शामिल हो रहे हैं, बल्कि रोज रात वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से फीडबैक भी लेते हैं। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर विकास यात्रा की नौबत आई क्यों? जवाब यह मिल रहा है कि यदि बीते चार साल में विधायक, मंत्री और पार्टी के जिम्मेदार लोग जनता के बीच गए होते तो यह नौबत ही नहीं आती। यही कारण है कि विकास यात्रा के दौरान कई जगह नाराज लोगों ने मंत्री-विधायकों की घेराबंदी कर डाली और उन्हें खरी-खोटी सुनाने से भी नहीं चूके। मुद्दा आखिर विश्वास का है, विकास का नहीं। निकलना विश्वास यात्रा थी ना कि विकास यात्रा।
ये भी गजब है…महाराज भाजपा बनाम नाराज भाजपा
मध्यप्रदेश में इन दिनों महाराज भाजपा बनाम नाराज भाजपा की बड़ी चर्चा है। जैसे-जैसे चुनाव पास आते जा रहे हैं, सालों से भाजपा के प्रति निष्ठावान अब खुलकर अपनी नाराजगी जता रहे हैं। उनका कहना है कि हमने पार्टी के लिए अपना जीवन खपा दिया, लेकिन हमें कोई पूछ नहीं रहा है। इससे इतर जो लोग पहले हमें कोसते थे, उनकी ऐसी पूछ-परख हो रही है, मानो भाजपा की नैया उन्हीं के कारण पार लग रही है। उनका सीधा इशारा भाजपा में अपना दबदबा बढ़ाने में लगे सिंधिया समर्थकों की ओर है। असंतोष के ये स्वर ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ क्षेत्र में ज्यादा हैं। पार्टी ने यदि इस असंतोष को नहीं थामा तो बहुत ज्यादा नुकसान हो जाएगा।
मंत्री और तस्कर हैं एक-दूसरे के मददगार की भूमिका में
मालवा क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले एक वरिष्ठ मंत्री और तस्करों से उनका गठजोड़ इन दिनों सबकी निगाहों में है। मुख्यमंत्री के बेहद विश्वासपात्र और सामने से बेहद साफ-सुथरी छवि रखने वाले उक्त मंत्री के बारे में यह मशहूर है कि वे चुनाव जीतने के बाद चार साल तक तस्करों के मददगार की भूमिका में रहते हैं और इसी का नतीजा है कि चुनाव के दौर में तस्कर उनके मददगार की भूमिका में आ जाते हैं। मदद के इस खेल में बाधा बनने वाले कुछ अफसरों को उक्त मंत्री अपने गृह जिले से रवानगी भी दिलवा चुके हैं। बस इतना इशारा ही काफी है कि उक्त मंत्री के कहने के बाद एक तस्कर की मदद नहीं करने के कारण एक बेहद ईमानदार पुलिस कप्तान को जिला छोड़ पीएचक्यू जाना पड़ा था।
परिदृश्य से बाहर बसपा, वोट बैंक पर भाजपा-कांग्रेस की नजर
सालों बाद यह पहला मौका है जब बहुजन समाज पार्टी मध्यप्रदेश में चुनावी परिदृश्य से बाहर दिख रही है। प्रदेश में पार्टी का नेटवर्क भी छिन्न-भिन्न हो गया है और नेतृत्व भी गायब सा है। बसपा का प्रदेश में एक बड़ा वोट बैंक हैं और अब इस पर कांग्रेस और भाजपा दोनों की नजर है। ग्वालियर, चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड के एक बड़े हिस्से में दोनों पार्टियों की सेंधमारी शुरू हो चुकी है। रविदास जयंती पर भाजपा का बड़ा शो इसी कड़ी का हिस्सा था। यहां के वोट बैंक पर अच्छी-खासी पकड़ रखने वाले नेताओं को मोर्चे पर लगाया गया है। देखना यह है कि इस मोर्चाबंदी में किसे कितनी सफलता मिलती है।
‘सरकार’ की नींद उड़ाने वाला है भीम आर्मी का यह दांव
चंद्रशेखर रावण की अगुवाई में भीम आर्मी ने जिस अंदाज में भोपाल में अपनी ताकत दिखाते हुए हुंकार भरी है, वह कम से कम भाजपा की तो नींद उड़ाने वाली है। भोपाल का यह जमावड़ा और इसमें तकरीबन प्रदेश के हर जिले से पहुंचे लोगों की भीड़ आने वाले समय के लिए कुछ अलग ही संकेत दे रही है। आदिवासी मुख्यमंत्री, दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक उपमुख्यमंत्री का शगूफा छेड़कर चंद्रशेखर ने यह संकेत तो दे ही दिया कि जिस मोर्चे पर भाजपा अपने को मजबूत करने में लगी है, उसमें सेंध लगाने में हम कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे। डॉ. आनंद राय के रूप में चंद्रशेखर को प्रदेश की नब्ज समझने वाला एक शख्स तो मिल ही गया है।
वाह सुलेमान सा….कुछ तो बात है
प्रदेश के अगले मुख्य सचिव के लिए सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे मोहम्मद सुलेमान की बेटी की शादी में नेता, नौकरशाह और कारपोरेट, इंडस्ट्रियल व रियल इस्टेट दिग्गजों का जो जमावड़ा देखने को मिला उससे कइयों का चौंकना स्वाभाविक था। ऐसे अवसर बहुत कम आए हैं जब किसी नौकरशाह के यहां शादी में वह सब लोग मौजूद थे जो प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं। वैसे संबंध बनाने और उन्हें निभाने में सुलेमान का कोई सानी नहीं है और इसी का फायदा उन्हें हर दौर में मिलता है।
दिलचस्प है मीणा के अनूपपुर से हटने की कहानी
अनूपपुर कलेक्टर पद से हटाई गई सोनिया मीणा को अब भले ही सम्मानजनक जिम्मेदारी दे दी गई हो, लेकिन उन्हें अनूपपुर से हटाने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। दरअसल, अनूपपुर में मंत्री बिसाहूलाल सिंह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच लाइन खिंची हुई है। मंत्री चाहते थे कि जैसा वे कहें, वैसा हो जाए और संघ का जोर इस बात पर था कि जो मंत्री कहे, वह बिल्कुल न हो। यहां पर संघ भारी पड़ रहा था। इसी उठापटक के बीच जब मुख्यमंत्री अनूपपुर पहुंचे तो बिसाहूलाल ने अपने कुछ समर्थकों से ऐसी तस्वीर उनके सामने पेश करवा दी जो अंतत: मीणा की अनूपपुर से रवानगी का कारण बन गई। इस मामले में अनूपपुर से कुछ ही दिन पहले हटाए गए एसपी भी मंत्री के मददगार बने।
चलते-चलते
प्रदेश के एक वजनदार मंत्री की पत्नी ने पिछले दिनों अपने पति के विधानसभा क्षेत्र के मंडल अध्यक्षों की बैठक लेकर जिस अंदाज में बात की, वह बहुत चौंकाने वाला था। मंत्री पत्नी का यह अंदाज पार्टी के नेताओं को भी पसंद नहीं आ रहा है। वहां से जो संकेत मिले हैं, वह मंत्री की परेशानी बढ़ाने वाले ही हैं।
– उत्तराखंड की राजनीति में बड़ा नाम माने जाने वाले एक भाजपा नेता के दामाद एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी जिले में पोस्टिंग नहीं पा सके हैं। दामाद जी कुछ महीने पहले तो मालवा के एक जिले में एसपी थे, वहां ‘सफल’ पारी खेलने के चक्कर में ज्यादा ही चर्चित हो गए थे और इसकी शिकायत इनकी मौजूदगी में ही मुख्यमंत्री को होने के बाद इन्हें जिले से रवानगी दे दी गई थी।
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)
(मध्यमत)
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