राकेश दुबे
मेरे सामने एक विषय पर दो विरोधाभासी समाचार हैं। विषय गंभीर और हमारे नित्य कर्म से जुड़ा है। पहला समाचर नोकिया मोबाइल कम्पनी की वार्षिक रिपोर्ट है। मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडेक्स रिपोर्ट-2022 कहती है कि भारत दुनिया में सबसे अधिक डेटा उपयोग करने वाले देशों में है। भारत में लोग अन्य देशों की तुलना में स्मार्ट फोन पर औसतन ज्यादा समय बिताते हैं।
दूसरा समचार मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से है, वहां एक अलग तरह का उपवास रखा गया। वहां सैकड़ों लोगों ने एक दिन के लिए मोबाइल, लैपटॉप सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी बनाने का संकल्प लिया और अपने उपकरण एक दिन के लिए मंदिर में जमा कर दिये। मोबाइल के उपयोग और अतिउपयोग और दुरुपयोग की सीमा इन दोनों समाचारों का केंद्र बिंदु है।
उपर्युक्त रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्मार्ट फोन पर बातचीत के साथ वीडियो देखने का चलन खासा बढ़ा है और यह 2025 तक बढ़ कर चार गुना तक हो जायेगा। भारत में 2021 में डेटा ट्रैफिक में 31 प्रतिशत की वृद्धि हुई और औसत मोबाइल डेटा खपत प्रति उपयोगकर्ता प्रति माह 17 जीबी तक पहुंच गयी है।
एक अलग तरह का उपवास रखने वाले सैकड़ों लोगों ने एक दिन के लिए मोबाइल, लैपटॉप सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी बनाने का संकल्प लिया और अपने उपकरण एक दिन के लिए मंदिर में जमा कर दिये। इसे ई-उपवास या डिजिटल फास्टिंग का नाम दिया गया है। पहल जैन समाज ने पर्यूषण के दौरान की। पर्यूषण पर्व जैन समुदाय द्वारा आत्म-शुद्धि के लिए प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है।
इस ई-उपवास में लगभग 600 लोगों ने एक दिन के लिए और 400 लोगों ने 10 दिन के लिए अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को हाथ न लगाने का संकल्प लिया। आयोजकों का कहना है कि इसका अभिप्राय लोगों से मोबाइल की लत को छुड़वाना है। यह पहल सराहनीय है, क्योंकि मोबाइल एक लत व बीमारी बन चुका है।
कुछ समय पहले खबर आयी कि राजस्थान के चुरू जिले में एक नवयुवक को मोबाइल की ऐसी लत लगी कि वह मानसिक रोगी बन गया। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में तो मोबाइल व इंटरनेट की बढ़ती लत से छुटकारा दिलाने के लिए मोतीलाल नेहरू मंडलीय अस्पताल में एक मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र स्थापित किया गया है।
मनोचिकित्सकों की मानें तो मोबाइल के लती ज्यादातर चिड़चिड़ेपन और बेचैनी के शिकार हो जाते हैं। अब स्थिति यह है कि चार-पांच साल के बच्चे भी मोबाइल और मोबाइल गेम के बिना नहीं रह पा रहे है। डॉक्टरों का कहना है कि मोबाइल की लत इतनी गंभीर है कि यदि किसी बालक के हाथ से मोबाइल छीन लिया जाता है, तो वह आक्रामक हो जाता है। कुछ मामलों में तो वे आत्महत्या करने तक की धमकी देने लगते हैं।
कुछ अरसा पहले लखनऊ में एक बेटे ने मोबाइल फोन पर पब्जी खेलने से मना करने पर मां की गोली मार कर हत्या कर दी थी। मुंबई में मोबाइल गेम खेलने से मना करने पर 16 वर्षीय बच्चे ने आत्महत्या कर ली थी। देखने में आया है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की लत ने सोना-जागना, पढ़ना-लिखना और खान-पान सब प्रभावित कर दिया है।
टेक्नोलॉजी के प्रभाव में लोग बेगाने से होते जा रहे हैं। इसके लिए कुछ हद तक माता-पिता भी दोषी हैं। उन्हें लगता है कि वे बच्चों को संभालने का सबसे आसान तरीका सीख गये हैं। दो-ढाई साल के बच्चे को कहानी सुनाने के बजाय मोबाइल पकड़ा दिया जाता है और जल्द ही उन्हें इसकी लत लग जाती है। ऐसे परिदृश्य में ई-उपवास एक सराहनीय पहल है, समाज के अन्य पंथों को भी ऐसे कदम उठाने चाहिए।
तकनीक ने पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है। स्थिति यह है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बिना जैसे हमारा जीवन ही अधूरा है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की हम सभी को लत लग गयी है। व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर तो जीवन की जरूरतों में कब शामिल हो गये, हमें पता ही नहीं चला। कुछ लोगों को रील और वीडियो की ऐसी लत है कि वे थोड़ी-थोड़ी देर में न देखें, तो परेशान हो उठते हैं।
यह सही है कि टेक्नोलॉजी की ताकत इतनी है कि उसके प्रभाव से कोई भी मुक्त नहीं रह सकता है। आज माता-पिता भी बच्चे से कुछ कहने से डरते हैं कि वह कहीं कुछ कर न ले। अब बच्चे किशोर, नवयुवक जैसी उम्र की सीढ़ियां चढ़ने के बजाय सीधे वयस्क बन जाते हैं। शारीरिक रूप से भले ही वे वयस्क न हों, लेकिन मानसिक रूप से हो जाते हैं। उनकी बातचीत, आचार-व्यवहार में यह बात साफ झलकती है। इससे एक गंभीर स्थिति निर्मित होती जा रही है। दिक्कत यह है कि हम सब चाहते हैं कि देश में आधुनिक टेक्नोलॉजी आए, लेकिन उसके साथ किस तरह तारतम्य बिठाना है, इस पर विचार भी जरूरी है।
(मध्यमत)
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