महिला दिवस पर मेरी नई कविता

हमने सिर्फ परीक्षा ली 
गिरीश उपाध्‍याय 
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हमने सिर्फ परीक्षा ली
उसने हर परीक्षा दी
हमने बस रेखाएं खींचीं
उसने कद का निर्माण किया
हमने उसको बोझ दिए
उसने कांधे मजबूत किए
हमने उसकी नींदें छीनीं
उसने सपने रंग डाले
हमने उसको खेत बनाया
उसने दाने दे डाले
हमने उसे दीवारें दीं
उसने घर की रचना की
हमने बस गोलाई देखी
उसने आंचल दूध दिया
हमने तन की गरिमा छीनी
उसने मान की चादर बीनी
हमने तन की भाषा सीखी
उसने मन का संगीत रचा
हमने उसको तम से घेरा
वह देहरी का दिया बनी
हमने उसको मौन दिया
उसने तप को जगा लिया
हमने उसे देवत्व दिया
उसने स्वत्व की चाह रखी
भूल गए हर बार हमीं
वह इसी लोक की वासी है
देह की उलटबांसी में उलझी
मन के गीत की अभिलाषी है

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