गिरीश उपाध्याय
मध्यप्रदेश आज भी देश के उन कुछ गिने चुने राज्यों में शामिल है जहां सांप्रदायिकता का जहर अभी उतना नहीं फैला है। इसके पड़ोसी राज्यों की तरफ ही अगर हम नजर घुमाकर देख लें तो यह अंतर हमें साफ नजर आएगा। इसका एक कारण यह भी है कि प्रदेश की राजनीति और समाज ने भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को अभी उस हद तक नहीं पहुंचाया है जहां हिन्दू मुस्लिम समुदाय एक दूसरे का गला काटने पर आमादा हो जाएं। छोटी मोटी टकराहट की स्थितियां बने रहना अलग बात है।
ऐसे में जब रतलाम जिले के सुराना गांव की खबर आई तो सभी का चौंकना स्वाभाविक था। इस गांव के हिन्दुओं ने अचानक कलेक्टर के नाम ज्ञापन देकर चेतावनी दे डाली कि वे स्थानीय मुस्लिम समुदाय, जिसे वहां बहुसंख्यक बताया जा रहा है, के आतंक से इतना तंग आ गए हैं कि गांव से पलायन करने को मजबूर हो गए हैं। गांव वाले यही नहीं रुके, उनमें से कुछ लोगों ने अपने मकानों पर इस आशय के बोर्ड भी लटका दिए कि अमुक मकान बिकाऊ है।
यह मामला कुछ कुछ वैसा ही था जैसा साल 2016 में उत्तरपदेश के शामली जिले के कैराना में देखा गया था। वहां भी हिन्दू समुदाय के लोगों ने इसी तरह तंग आकर अपने मकानों को बेचने के बोर्ड लटका कर गांव से पलायन की धमकी दे दी थी। उस समय भाजपा के तत्कालीन सांसद हुकुम सिंह ने 346 परिवारों की सूची जारी कर दावा किया था कि एक समुदाय विशेष के आपराधिक तत्वों के आतंक की वजह से लोग वहां से पलायन कर रहे हैं। उत्तरप्रदेश सरकार को आनन फानन में मामले को संभालना पड़ा था और उस मामले पर जमकर राजनीति भी हुई थी।
लेकिन उत्तरप्रदेश के कैराना में जो कुछ हुआ उससे लोगों को ज्यादा हैरानी इसलिए नहीं हुई थी क्योंकि वहां के कई इलाकों के माहौल और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बारे में सबको पता था। पर जब मध्यप्रदेश जैसे अपेक्षाकृत कम टकराहट वाले प्रदेश में अचानक इस तरह पलायन करने की चेतावनी सामने आई तो सरकार का हक्का बक्का रह जाना स्वाभाविक था। सुराना गांव की खबर अखबारों में उस समय आई जब उसके ठीक एक दिन पहले प्रदेश में कानून व्यवस्था सहित पुलिस के कामकाज को लेकर सरकार की ओर से जिलों की रैंकिंग जारी की गई थी। इस रैकिंग में रतलाम जिले को प्रदेश के बी श्रेणी वाले जिलों की सूची में कानून व्यवस्था की दृष्टि से संतोषप्रद प्रदर्शन वाली कैटेगरी में रखा गया था।
सुराना गांव की घटना को लेकर छपी खबर में कहा गया था कि गांव के कुछ लोगों ने रतलाम पहुंचकर कलेक्टर के नाम अफसरों को एक ज्ञापन दिया जिसमें कहा गया कि वे गांव में बहुसंख्यक आबादी वाले मुस्लिम समुदाय की प्रताड़ना से भयभीत हैं। प्रशासन ने यदि हालात नहीं संभाले तो तीन दिन में वे लोग गांव छोड़ देंगे। बताया जाता है कि गांव की कुल आबादी 2200 है जिसमें 60 प्रतिशत मुस्लिम और 40 प्रतिशत हिंदू हैं।
गांव वालों ने मीडिया को बताया कि वैसे तो यहां हिन्दू मुस्लिम परिवार कई पीढि़यों से साथ रह रहे हैं लेकिन दो तीन सालों से माहौल बदल गया है। हिन्दुओं के साथ गाली गलौज, मारपीट और उन्हें धमकाने जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। शिकायत करने पर हिन्दुओं के खिलाफ ही मामले दर्ज कर लिए जाते हैं। ऐसे ही एक विवाद के मामले में जब गांव के लोग एसपी से शिकायत करने गए तो उलटे उनके ही घर तोड़ने और उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की चेतावनी दे दी गई। ऐसे में हमारे पास गांव छोड़कर जाने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा है।
जैसे ही यह मामला वायरल हुआ, सरकार हरकत में आई और बुधवार को रतलाम के कलेक्टर और एसपी पूरे दल बल के साथ गांव पहुंचे, दोनों समुदायों की बैठक बुलाकर हर पक्ष की बात सुनी गई और दोनों पक्षों को शांति व सौहार्द बनाए रखने के लिए समझाया गया। प्रशासन ने इसी बीच गांव के कुछ रसूखदार लोगों के अतिक्रमण पर आनन फानन में बुलडोजर भी चलवा दिया। कलेक्टर ने कहा कि डर या धमकी के कारण किसी को गांव छोड़ने की जरूरत नहीं है, प्रशासन हर नागरिक को सुरक्षा प्रदान करेगा।
मामले में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का बयान भी सामने आया, उन्होंने कहा- रतलाम जिला प्रशासन को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी सूरत में अमन चैन की स्थिति बिगड़नी नहीं चाहिए। गांव में अस्थायी पुलिस चौकी बनाने और बदमाशों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा गया है। प्रदेश के गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने भी चेतावनी भरे लहजे में कहा कि सुराना गांव को कैराना बनाने की हिम्मत किसी में नहीं है। गांव की समस्याओं का हल एक माह में निकाल लिया जाएगा। इसके अलावा अधिकारियों को स्थिति पर लगातार निगाह रखने को कहा गया है।
दरअसल मध्यप्रदेश में बहुत लंबे समय बाद ऐसे किसी सांप्रदायिक तनाव की खबर आई है। चूंकि आने वाले दिनों में सरकार को पंचायतों और स्थानीय निकायों के चुनाव भी करवाने हैं इसलिए वह किसी भी प्रकार का कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहती। इसके अलावा वह मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को भी ऐसा कोई मौका देना नहीं चाहेगी कि जिससे उसे सरकार पर हमला करने का अवसर मिले, खासतौर से सांप्रदायिक सौहार्द के मामले में।
सुराना गांव में जो कुछ हुआ है उसके पीछे क्या सचाई है और वहां पैदा हुई समस्या की जड़ में कौन लोग हैं, इसका पता तो आने वाले दिनों में पुलिस व प्रशासन की जांच व कार्रवाई से ही चलेगा, लेकिन इस घटना ने सरकार के साथ साथ प्रदेश के राजनीतिक दलों के कान भी खड़े कर दिए हैं। देखना यह भी होगा कि जिस तरह से सुराना गांव के लोगों द्वारा पलायन की धमकी दिए जाने के बाद सरकार हरकत में आई है कहीं उसी तर्ज पर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से भी इस तरह की चेतावनियों के स्वर न उभरने लगें। सरकार को सुराना गांव का मामला वहीं तक सीमित रखकर, उसका स्थायी समाधान तत्काल खोजना होगा, क्योंकि अगर यह वायरस दूसरी जगह भी फैला तो प्रदेश का माहौल बिगड़ेगा। और ऐसे मौके को लपकने के लिए कई लोग तैयार बैठे हैं, राजनीतिक क्षेत्र के भी और समाजविरोधी भी।(मध्यमत)
—————-
नोट- मध्यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्यमत की क्रेडिट लाइन अवश्य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें। – संपादक