गिरीश उपाध्याय
मध्यप्रदेश विधानसभा ने पिछले दिनों कुछ ऐसे शब्दों की सूची जारी की थी जिन्हें अससंदीय माना गया था और अपेक्षा की गई थी कि जन प्रतिनिधि उन शब्दों का सदन में उपयोग नहीं करें। ऐसे शब्दों में ‘नालायक’ शब्द भी शामिल था। लेकिन हाल ही में हुई एक घटना ने मध्यप्रदेश की राजनीति में इस ‘नालायक’शब्द को ही बहुत चर्चित बना दिया है। इन दिनों प्रदेश की राजनीति में ‘लायक’ की चर्चा भले ही न हो रही हो, लेकिन ‘नालायक’ की चर्चा बहुत हो रही है। चुने हुए सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने वाली विधानसभा में ‘नालायक’ शब्द उपयोग के लायक न माना गया हो, लेकिन सदन से बाहर, बंद कमरों की बैठक से लेकर सड़क तक इन दिनों ‘नालायक’ शब्द छाया हुआ है और धड़ल्ले से चल रहा है।
‘नालायक’ शब्द को उसकी इस ताजा चर्चित हैसियत से नवाजा है भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री और मध्यप्रदेश के प्रभारी मुरलीधर राव ने। राव साहब पिछले दिनों मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में थे और उन्होंने यहां पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के कार्यकर्ताओं की एक विशेष बैठक ली थी। मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि बैठक में यह बात भी उठी कि आखिर दलित वर्ग के लोग पार्टी से क्यों नहीं जुड़ पा रहे और इसी दौरान एक कार्यकर्ता ने कई नेताओं को बार बार अवसर देने का मामला उठा दिया। उसी के जवाब में मुरलीधर राव ने जो कहा उससे मध्यप्रदेश भाजपा में भारी बवाल है।
राव ने कहा- ‘‘15, 16 या 17 साल से सत्ता में हैं। ये मामूली बात नहीं है। जब भी प्रवास पर जाता हूं तो देखता हूं कि चार बार-पांच बार से विधायक जीत रहे हैं। सांसद जीत रहे हैं। जनता के इतने आशीर्वाद के बाद भी रोते हैं कि उन्हें मौका नहीं मिल रहा। इसके बाद रोने के लिए कोई जगह नहीं है कि ये नहीं मिला, वो नहीं मिला। इसके बाद भी रोएंगे कि कुछ नहीं मिला तो उनसे नालायक आदमी कोई नहीं है। ऐसे लोगों को कुछ नहीं मिलना चाहिए।‘’
जैसे ही यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हुआ पार्टी के कई नेता हरकत में आ गए। माना गया कि राव ने उन कुछ नेताओं पर निशाना साधा है जो मध्यप्रदेश में एक बार फिर भाजपा की सरकार बनने के बाद से लगातार विरोध या असंतोष के सुर में ही बोल रहे हैं। हालांकि प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने राव के बयान से उपजे विवाद को ठंडा करने की कोशिश करते हुए सफाई दी कि राव का बयान किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं था, उन्होंने सामान्य तौर पर अपनी बात कही थी। लेकिन जबान का जो तीर छूट चुका था उसने अपना असर दिखाया।
राव का बयान आने के कुछ ही घंटों के भीतर पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने मीडिया में इस पर प्रतिक्रिया भी दे दी। छह बार के विधायक और पूर्व मंत्री पारस जैन ने कहा- ‘’नालायक होते तो थोड़े ही छह बार चुनाव जीतते। मैंने पार्टी से कभी कुछ नहीं मांगा। जब भी मिला, पार्टी ने दिया और भगवान से मिला। मप्र में कोई नालायक नहीं, सब लायक हैं।‘’ वहीं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीताशरण शर्मा का कहना था- ‘’संदर्भ की जानकारी नहीं है, लेकिन इस बात और भाषा से आपत्ति है। अपनी मेहनत, ईमानदारी और सिद्धांतों की वजह से 5 बार जीतकर आए हैं। किसी की दया पर राजनीति नहीं की। अपमानित होने के लिए नहीं आए।‘’ पार्टी के ही एक और वरिष्ठ नेता और 8 बार सांसद रहे दिवंगत डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे के पुत्र और तीन बार के विधायक राजेंद्र पांडे का कहना था- ‘’दो-तीन पीढ़ियों से पार्टी सेवा कर रहे हैं। तप किया है। विचारधारा सम्मान चाहती है। यह अपमानित करने वाली अभिव्यक्ति है। मन को दुख हुआ।‘’
मीडिया ने भी इस मामले को खूब उछाला। तरह तरह के एंगल से इस बयान और उस पर आने वाली प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण अब तक हो रहा है। इसी बीच दो और बयानों ने भी ध्यान आकर्षित किया। छह बार के विधायक रामपालसिंह ने कहा- ‘’वे (मुरलीधर राव) दूसरे प्रांत के हैं, इसलिए भाषा में कुछ अंतर रहा होगा। हिंदी-अंग्रेजी का भी फर्क हो सकता है। उनकी भावना ऐसा कुछ कहने की नहीं होगी। वैसे भी मप्र में सभी सीनियर नेताओं को मौका मिला है।‘’ तीन बार के विधायक शैलेंद्र जैन बोले- ‘’वे (मुरलीधर राव) हिंदी बेल्ट के नहीं हैं। इसलिए शब्दों के चयन में गलती हो सकती है। उनकी मंशा होगी कि जो लोग पद नहीं पाते या मंत्री नहीं बन पाते वे अनावश्यक पार्टी या नेतृत्व की आलोचना करते हैं। उन्हें इससे बचना चाहिए।‘’
पर बड़ा सवाल ये है कि क्या मुरलीधर राव इतनी भी हिन्दी नहीं जानते कि उन्हें ‘नालायक’ शब्द का अर्थ पता न हो। और क्या उनके बयान को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत किया गया है या कि वास्तव में वह बयान देते समय राव की जबान फिसल गई थी? शायद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मुरलीधर राव ‘नालायक’ शब्द का अर्थ भी जानते हैं और उन्होंने वही कहा जो वे पूरी ताकत से कहना और जताना चाहते थे। इसीलिए राव के कहे को एक शब्द के फौरी विश्लेषण या उसे संकुचित दायरे में रखकर देखने के बजाय व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा।
दरअसल मुरलीधर राव के बयान को भाजपा की कार्यशैली में पीढ़ी परिवर्तन की दस्तक के रूप में देखा जाना चाहिए। यह परिवर्तन नया भी नहीं है। पिछले कई दिनों से अलग अलग रूप में इसकी कवायद चल रही है। भाजपा के वर्तमान ढांचे में यदि इसका मूल खोजा जाए तो उसे हम नरेंद्र मोदी की ताजपोशी और अटल-आडवाणी युग के इतिहास बन जाने की घटना में खोज सकते हैं। उसके बाद के सात सालों में फर्क इतना पड़ा है कि उस समय राजनीतिक निर्वासन को ‘मार्गदर्शक’जैसे शब्द के आवरण में ढंक दिया गया था, लेकिन अब उसे ‘नालायक’शब्द का चोला पहना दिया गया है। इसलिए इस ‘नालायक’ शब्द को गाली या अपमान के रूप में नहीं, बल्कि भाजपा के नए नीति निर्धारक सिद्धांत के रूप में देखिये।
पिछले सात सालों में भाजपा का नया नेतृत्व लगातार पार्टी में नए खून को एक तरह से ‘डायलिसिस’ के जरिये चढ़ाने की कोशिश करता रहा है, लेकिन अब उसने यह प्रक्रिया भी बंद करने का मन बना लिया है। मुरलीधर राव जो कह रहे हैं उसका अर्थ यही है कि जो लोग चार-पांच बार विधायक और सांसद रह चुके हैं, जिन्होंने मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री पद तक का सुख भोग लिया है, वे अब अपनी महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाएं और नए चेहरों को, नए नेतृत्व को आगे आने दें। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो या तो खुद चुपचाप घर बैठ जाएं या फिर पार्टी उन्हें घर बिठा देगी।
यही कारण है कि राज्यों के मुख्यमंत्रियों से लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल तक में नए और चौंकाने वाले चेहरों की एंट्री हो रही है और बरसों पुराने चेहरों की विदाई। गुजरात इसका ताजा उदाहरण है। वहां विजय रूपाणी की विदाई के बाद उनके उत्तराधिकारी के लिए, उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल से लेकर केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया, प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील, पुरुषोत्तम रूपाला, गोवर्धन झफडि़या जैसे कई नाम चले लेकिन कुर्सी पर भूपेंद्र पटेल को बैठाया गया। वो भूपेंद्र पटेल जो पहली बार के विधायक है।
वैसे भी राजनीतिक फैसलों में तो मोदी की भाजपा ने शायद ही कभी मीडिया को कोई श्रेय लेने दिया हो। मीडिया कयास लगाता रहता है और फैसले उससे बहुत दूर किसी दूसरी ही दिशा में होते हैं। कुछ ही दिन पहले उत्तराखंड में भी यही हुआ था। सतपाल महाराज से लेकर जाने किस किस के नाम उछाले गए थे। वहां के कई नेता तो शपथ ग्रहण की ड्रेस तैयार करवाकर बैठे थे, पर छींका पुष्करसिंह धामी के नाम टूटा।
एक बात और… जिस तरह से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल और उसके बाद कर्नाटक, उत्तराखंड वगुजरात के फैसले हुए हैं, उससे एक स्वाभाविक सवाल मध्यप्रदेश को लेकर भी उठाया जाने लगा है। लेकिन इस तरह का सवाल उठाते समय एक बार फिर वही बात याद रखनी होगी कि ‘मोदी की भाजपा’ मीडिया के कयासों को कभी सच नहीं होने देती। इसके साथ ही गुजरात का यह संदेश भी मध्यप्रदेश के सभी महत्वाकांक्षी नेताओं को ग्रहण करना चाहिए कि अपना नाम चलाने या चलवाने से पार्टी में कुछ नहीं होता, होता वही है जो ‘ऊपरवाला’चाहता है… और ‘ऊपरवाला’ सबको देख रहा है…(मध्यमत)
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