स्‍कूल तो खुल जाएंगे पर पढ़ाई की क्षतिपूर्ति का क्‍या?

गिरीश उपाध्‍याय

लॉकडाउन टू के खत्‍म होने और हालात धीरे धीरे सामान्‍य की ओर लौटने के बीच ही छोटे बच्‍चों के लिए स्‍कूल खोले जाने की बात भी होने लगी है। कुछ राज्‍यों ने बड़ी कक्षाओं जैसे 9वीं से 12वीं तक के बच्‍चों के लिए कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए स्‍कूल खोल भी दिए हैं। अब पहली कक्षा से 8वीं कक्षा तक के बच्‍चों के लिए भी स्‍कूल खोले जाने की बात हो रही है।

स्‍कूल खोले जाने को लेकर दो मुद्दे बहुत महत्‍वपूर्ण हैं। इनमें से पहला है बच्‍चों का टीकाकरण और दूसरा बच्‍चों की पढ़ाई में हुए करीब दो साल के नुकसान की भरपाई करते हुए उन्‍हें दुबारा स्‍कूल की दुनिया में लौटा कर, शिक्षा की मुख्‍यधारा में लाना। जहां तक बच्‍चों के टीकाकरण का सवाल है इस दिशा में काम हो रहा है। गर्भवती महिलाओं को टीका लगाने की मंजूरी मिल गई है और उनके टीकाकरण का काम शुरू भी हो गया है।

बच्‍चों के कुछ टीकों को भी प्रायोगिक तौर पर मंजूरी मिली है। आने वाले दिनों में ऐसे टीकाकरण का काम अभियान के तौर पर शुरू होने की भी संभावना है। लेकिन यह टीका भी फिलहाल 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्‍चों के लिए होगा। यानी 12 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों के लिए जब तक किसी प्रभावी टीके का परीक्षण नहीं हो जाता और उसे मंजूरी नहीं मिल जाती तब तक उन पर कोरोना का खतरा मंडराता रहेगा और इसीके साथ बच्‍चों के माता-पिता में इस बात की दुविधा या आशंका बनी रहेगी कि बच्‍चों को स्‍कूल भेजें या न भेजें।

छोटे बच्‍चों के लिए टीका कब आता है और उसे लगाने का काम कब शुरू होता है इस बात से लेकर उनके लिए स्‍कूल खोलने की कवायद तक की मुश्किलें अपनी जगह हैं, लेकिन इसके साथ ही एक और मसला जुड़ा है जिस पर उतनी ही गंभीरता से ध्‍यान दिए जाने की जरूरत है। यह मसला है बच्‍चों को जनरल प्रमोशन देकर पास करते हुए उन्‍हें बिना पढ़ाई और परीक्षा के अगली कक्षा में प्रमोट कर देने का।

यह तो नहीं कहा जा सकता कि जनरल प्रमोशन का फैसला पूरी तरह गलत था, क्‍योंकि यह तत्‍कालीन परिस्थितियों को देखते हुए समय की मांग थी। मूल मुद्दा बच्‍चों को कोरोना से सुरक्षित रखने का था। लेकिन जनरल प्रमोशन पाने वाले बच्‍चों के साथ एक जो बड़ी ज्‍यादती इस दौरान हुई है वो यह कि वे पिछली कक्षाओं के पाठ्यक्रम को स्‍कूल में प्रत्‍यक्ष पढ़ने और उससे सीखने से वंचित हो गए हैं।अब चिंता इस बात की है कि इन बच्‍चों से जो सीखने से छूट गया है उसकी भरपाई कैसे होगी?

यह समस्‍या सिर्फ भारत में ही नहीं है। दुनिया भर में लॉकडाउन के चलते स्‍कूलों के बंद रहने से बच्‍चों के साथ यह विषम स्थिति पैदा हुई है और इसीलिए यूनीसेफ जैसी अंतर्राष्‍ट्रीय संस्‍थाएं दुनिया भर में कोविड काल के दौरान पैदा हुए ‘लर्निंग क्राइसिस’यानी पढ़ने-पढ़ाने और सीखने-सिखाने के संकट से निपटने के तौर तरीकों पर न सिर्फ ध्‍यान दे रही हैं बल्कि उनके लिए उपाय खोजने में भी लगी हैं।

कोविड के कारण बच्‍चों का सिर्फ स्‍कूल ही नहीं छूटा उनकी जिंदगी का एक अहम हिस्‍सा जैसे उनसे काट दिया गया। उदाहरण के तौर पर शिक्षाविदों की चिंता यह भी है कि पहली कक्षा में दाखिला लेने वाला बच्‍चा दो साल के जनरल प्रमोशन के बाद यदि सीधे तीसरी कक्षा में जाता है तो उस शिक्षा और सीख का क्‍या होगा जो उसे पहली और दूसरी कक्षा में मिलने वाली थी। और पहली एवं दूसरी कक्षाएं बच्‍चे की पढ़ाई की बुनियाद से कितना ज्‍यादा वास्‍ता रखती हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है। क्‍योंकि बच्‍चा सीखने की शुरुआत ही इन कक्षाओं से करता है।

और बात सिर्फ पहली या दूसरी कक्षा के बच्‍चों की ही नहीं है। शिक्षा प्रणाली में हर कक्षा की पढ़ाई और उसके पाठ्यक्रम का एक महत्‍व है और अगली कक्षा से उसकी तारतम्‍यता है। वह पढ़ाई के एक प्रवाह की तरह है, एक सीढ़ी की तरह जिसकी एक-एक पायदान पर पैर रखकर आप ऊपर तक पहुंचते हैं। तो कहने को बच्‍चे पास हो गए हों या उन्‍हें जनरल प्रमोशन मिल गया हो लेकिन बड़ा सवाल है कि क्‍या उन्‍होंने वह सीखा, जो वे यदि स्‍कूल में नियमित रूप से पढ़ रहे होते तो जरूर सीखते।

जरूरत इस बात की है कि ऐसे सभी बच्‍चों की शिक्षा, ज्ञान और उनकी सीख में आई इस कमी को दूर करने के प्रभावी उपाय किए जाएं। इसके लिए एक उपाय तो यह हो सकता है कि वर्तमान कक्षाओं के साथ-साथ उन्‍हें छूट गई उन पिछली कक्षाओं का भी जरूरी पाठ्यक्रम सिखाया/पढ़ाया जाए। जाहिर है बच्‍चे एक साथ तीन कक्षाओं की पढ़ाई नहीं कर सकते लेकिन वे पढ़ाई की निरंतरता में हुए नुकसान की भरपाई कर सकें, इसके लिए इन सभी बच्‍चों के बेहतर भविष्‍य को देखते हुए ऐसे मिश्रित पाठ्यक्रम तैयार किए जाने चाहिएं जो उनकी इस कमी को दूर कर सकें। और ये ब्रिज पाठ्यक्रम भी कंटेट और अवधि के स्‍तर पर इतने भारी भरकम न हों कि बच्‍चे उनका बोझ ही न उठा सकें।

एक समय यह बात काफी होती थी और आज भी होती है कि मेधावी या प्रतिभावान बच्‍चा एक साथ दो कक्षाओं की परीक्षा देकर डबल प्रमोशन पा जाता है। पर वह स्थिति बच्‍चे की मेधा और प्रतिभा के कारण बनती है, आज बच्‍चों की मजबूरी के चलते ऐसी स्थिति निर्मित करना जरूरी है कि वे अपने ज्ञान और शिक्षा की निरंतरता में बगैर किसी रुकावट या कमी के, अपनी शिक्षा यात्रा को निर्बाध जारी रख सकें। इसके लिए विशेषज्ञों का एक टास्‍क फोर्स बनाकर जरूरी विषयों और जरूरी जानकारियों के साथ ऐसा क्रैश कोर्स तैयार किया जा सकता है जो बच्‍चों की इस कमी की भरपाई कर दे। एनसीईआरटी इस दिशा में प्रयास कर रहा है लेकिन स्‍थानीय आवश्‍यकताओं को देखते हुए हर राज्‍य को अपने स्‍तर पर इसके लिए काम करना होगा।

संसद की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ जाने के कारण हालांकि उस महत्‍वपूर्ण रिपोर्ट पर लोगों का ध्‍यान नहीं गया जिसे बहुत गंभीरता से पढ़ा और समझा जाना चाहिए। शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, खेल और युवा मंत्रालयों की एक संयुक्‍त संसदीय स्‍थायी समिति ने लोकसभा और राज्‍यसभा में 6 अगस्‍त को एक रिपोर्ट प्रस्‍तुत की है। इस समिति का गठन लॉकडाउन के दौरान स्‍कूल बंद होने के कारण बच्‍चों की शिक्षा की निरंतरता में आई बाधा को दूर करने के लिए ब्रिज कोर्स तैयार करने, ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षणऔर परीक्षा की स्थिति की समीक्षा करने और स्‍कूलों को फिर से खोलने की योजना पर राय देने के लिए किया गया था।

इस समिति ने कहा है कि कोरोना के चलते देश के 32 करोड़ छात्रों ने लंबे समय तक एक दिन भी स्‍कूल में कदम नहीं रखा। इस स्थिति ने शिक्षा और सीखने की प्रक्रिया के साथ साथ बच्‍चों के सामाजिक संपर्क को भी बुरी तरह प्रभावित किया। अजीम प्रेमजी विश्‍वविद्यालय द्वारा पांच राज्‍यों मध्‍यप्रदेश, छत्‍तीसगढ़, राजस्‍थान, उत्‍तराखंड और कर्नाटक के 44 जिलों के 1137 स्‍कूलों में जनवरी 2021 में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक कक्षा 2 से 6 के 92 फीसदी बच्‍चों ने पिछली कक्षा की कम से कम एक विशेष भाषा की योग्‍यता को खोया और 82 फीसदी बच्‍चों ने कम से कम एक विशेष गणितीय योग्‍यता को खोया।

समिति ने सिफारिश की है कि ऐसे बच्‍चों को हुई इस क्षति की भरपाई के लिए विशेषज्ञों की सलाह से ऐसे ब्रिज कोर्स तैयार किए जाएं जो बच्‍चों की पिछली कक्षा में न पढ़ पाने की कमी को तो पूरा करें ही, उनकी सीखने की क्षमता में भी इजाफा करें। छात्रों के प्रत्‍येक विषय के ज्ञान को परखने के लिए विशेष परीक्षण सामग्री तैयार की जाए और बहुविकल्‍पीय प्रश्‍नों के माध्‍यम से उनके ज्ञान का परीक्षण हो। ऐसे छात्रों के लिए विशेष कक्षाएं लगाई जाएं और कमजोर छात्रों पर विशेष ध्‍यान दिया जाए। इसके अलावा छात्रों की शंकाओं, प्रश्‍नों और जिज्ञासाओं के समाधान के लिए हेल्‍पलाइन का गठन करने और सोशल मीडिया की भरपूर मदद लेने का भी सुझाव दिया गया है।

जाहिर है स्‍कूल यदि खुल भी गए तो बच्‍चों और शिक्षकों के लिए चुनौतियां कम नहीं होने वाली हैं। छात्रों को जहां अपने छूटे हुए ज्ञान को अर्जित करना होगा वहीं शिक्षकों के सामने चुनौती होगी कि वे छात्रों को हुई क्षति की हरसंभव भरपाई कैसे करें। इसके लिए संसाधन तो चाहिए ही होंगे लेकिन उससे भी ज्‍यादा मनोबल और दृढ इच्‍छाशक्ति की जरूरत होगी। यानी यह समय परीक्षा लेने वाले तंत्र की खुद की परीक्षा का है।(मध्‍यमत)
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नोट मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें। संपादक

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