अजय बोकिल
बॉलीवुड के ‘बादशाह’ कहे जाने वाले फिल्म अभिनेता, व्यवसायी शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को जिस तरह मुंबई की अदालत ने ड्रग्स लेने और रखने के आरोप में तीन दिन की एनसीबी हिरासत में भेजा है, उसकी पूरी हकीकत तो विवेचना के बाद सामने आएगी, लेकिन इस आर्यन प्रकरण ने इतना जरूर साफ कर दिया है कि इस देश में अमीरों के बच्चे कौन-सी जिंदगी जी रहे हैं, उनके सपने क्या हैं और उनके जीवन का आदर्श क्या है?
इस मायने में आर्यन की कहानी अति अमीर लोगों की संतानों की कालीकथा का उजागर हुआ, एक हिस्सा भर है। वो बच्चे, जो सोने का चम्मच मुंह में लेकर पैदा होते हैं, उसी में दिन-रात लोटते हैं, दूसरो के लिए जो सपना होता है, वो इनके लिए बिस्तर होता है। उनकी जिजीविषा ‘कैसे और कितना करें’ से ज्यादा ‘क्या और क्यों करें’ से ज्यादा संचालित होती है। जीवन में कर गुजरने के जुनून के बजाए नशे में अपनी जिंदगी को डुबो देने में ही वो सार्थकता समझ बैठते हैं। शायद इसलिए क्योंकि ऐसे लोगों के जीवन में ‘संघर्ष’ जैसा कुछ होता ही नहीं।
सुपर स्टार शाहरुख खान और गौरी खान के घर में 1997 में जन्मे आर्यन खान की 23 साल की जिंदगी में शायद यही सबसे बड़ा और नकारात्मक मोड़ है कि वो एक्टिंग की दुनिया के बजाए नशे की दुनिया से जुड़ गया। एनसीबी ने उस पर जो आरोप लगाए हैं, वो बेहद गंभीर हैं। जिस तरह कोर्ट ने उसका रिमांड बढ़ाया है, उससे लगता है कि एनसीबी के पास पुख्ता सबूत हैं। मीडिया में जो बातें सामने आई हैं, उसके मुताबिक आर्यन ने माना की वो चार साल से ड्रग्स लेता रहा है।
यानी पढ़ाई के दौरान ही उसे नशीले पदार्थों की लत लग गई थी। उसके यार दोस्त भी ऐसे ही हैं। जैसा कि हर मां-बाप चाहते हैं आर्यन ने भी अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स, सिनेमेटोग्राफी और टीवी प्रॉडक्शन में ग्रेजुएशन किया। इसके पहले लंदन और मुंबई के बेहद मंहगे धीरूभाई अंबानी स्कूल से स्कूलिंग की। उसने बचपन में छुटपुट फिल्मों में भी काम किया है। बकौल शाहरुख आर्यन राइटर-डायरेक्टर बनना चाहता था।
लेकिन यह पटकथा इतनी सरल-सीधी नहीं है। न ही उतनी जटिल और खरी है, जितनी कि आर्यन के पिता शाहरुख की है। शाहरुख एक मध्यम वर्गीय पठान परिवार से आते हैं। उन्होंने युवावस्था में ही मां-बाप को खो दिया। लेकिन जीवन में बड़ा अभिनेता और कुछ कर दिखाने के जुनून और जिद ने शाहरुख को इस मुकाम तक पहुंचाया। दरअसल शाहरुख की कहानी एक मध्यमवर्गीय अथवा निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे की कहानी है। उन बच्चों की महत्वाकांक्षा और संघर्ष के माद्दे की कहानी है।
विडंबना यह है कि ऐसी कहानी के निर्णायक फैक्टर उसी किरदार की अगली पीढ़ी पर लागू नहीं होते, क्योंकि परिस्थितियां और तकाजे बदल जाते हैं। जो शाहरुख के लिए सपना था, वो आर्यन के लिए कभी नहीं हो सकता। जीवन में उन्नति के दो ही मार्ग हैं। एक भौतिक उन्नति और दूसरी आध्यात्मिक उन्नति। आध्यात्मिक उन्नति का रास्ता सबके लिए नहीं होता और भौतिक उन्नति की तो मंजिल ही आर्यन जैसे लोगों के लिए पहला और अंतिम पड़ाव होती है।
साथ ही आर्यन की कहानी ने बॉलीवुड के उस काले सच को फिर बेनकाब कर दिया है, जिसमें फिल्मी दुनिया का एक बड़ा वर्ग आज नशे की दुनिया में गले-गले तक डूबा है। पैसा तो दूसरे क्षेत्रो में भी है, लेकिन फिल्मी दुनिया में इसके साथ जबर्दस्त ग्लैमर भी जुड़ जाता है। नशे में झूमने और जीने वालों की मजबूरी शायद यह है कि उनके पास अब करने को और कुछ नहीं रह गया है। न कोई लालसा, न कोई मोटीवेशन, न कोई ध्येय, न आंखों में कोई सपना, सिवाय खुद को नशे की अंधेरी दुनिया में डुबो देने के।
वो अपनी मन की आंखों पर कोई चश्मा नहीं रहने देना चाहते। वो न तो खुद की बेहतरी के लिए जीना चाहते हैं और न ही दुनिया की बेहतरी के लिए कुछ करना चाहते हैं। नशा उनके लिए मजा है और सजा भी। एनसीबी के मुताबिक आर्यन के पास चरस, कोकीन, एमडी जैसे खतरनाक ड्रग्स मिले हैं। इसके पहले हमने रिया चक्रवर्ती, दीपिका पादुकोण, संजय दत्त, फरदीन खान आदि को भी इसी जाल में उलझा देखा। इनमें से कुछ तो किसी तरह बाहर निकल आए, लेकिन कुछ का कॅरियर इसी नशे में बर्बाद हो गया।
यूं तो बॉलीवुड में नशे की समानांतर दुनिया पहले से थी। लेकिन तब अमूमन ये शराब के इर्द-गिर्द ज्यादा घूमती थी। मीनाकुमारी जैसी महान अभिनेत्रियों ने खुद को इसी में खत्म किया। लेकिन आर्थिक उदारवाद के युग में जन्मी पीढ़ी के लिए शराब का नशा तो नशा ही नहीं रहा। वो हशीश, चरस, गांजे, एमडी जैसे कई घातक ड्रग्स को नशा मानती है और उसी में उतराने में जीवन की सार्थकता समझती है। जानते हुए भी ऐसा नशा करना और ऐसे नशीले पदार्थ रखना भी कानूनन गुनाह है।
कुछ रहमदिल लोगों का तर्क है कि आर्यन जैसे बच्चों को सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए। क्योंकि ऐसा किसी भी मां-बाप के बच्चे के साथ हो सकता है। कौन मां बाप चाहेंगे कि उनकी औलाद ड्रग्स के लिए जानी जाए। सही है। लेकिन यह बात तभी मान्य हो सकती है, जब गुनाह अनजाने में किया गया हो। आर्यन की कहानी से उसकी मासूमियत का सबूत नहीं मिलता। ऐसा करके उसने खुद का तो नुकसान किया ही है, उससे ज्यादा अपने पिता की ब्रांड वेल्यू को डेंट किया है।
उन पिता शाहरुख खान की ब्रांड वेल्यू को, जो करीब 40 ब्रांडों का प्रचार करते हैं, जो बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए ऑनलाइन एजुकेशन एप की वकालत करते हैं। उन शाहरुख खान को जिनकी कुल सम्पत्ति 5 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है और जो भविष्य में आर्यन को ही मिलनी है। लेकिन आर्यन की नशाखोरी ने शाहरुख की जो बदनामी पूरी दुनिया में कराई है, उसकी कीमत आंकना नामुमकिन है।
जब भी मां-बाप बच्चों को ‘कुछ भी’ करने की छूट देते हैं तो उसका भावार्थ यही होता है कि बच्चों के अरमान पूरे होने में कोई कमी न रहे। कोशिश यही होती है कि मां-बाप को अपने बचपन में जो हासिल न हुआ, उनके बच्चे उन बातों से वंचित न रहें। संतानों के लिए यह ‘सुविधा मोह’ ही अक्सर मां-बाप की गले की हड्डी बन जाता है। खासकर उन मां- बाप के लिए जो खुद तो संघर्षों की आग में तपकर निखरे लेकिन अपनी औलादों को संघर्ष के अंगारों से दूर रखने में ही अपना अभिभावकत्व समझते हैं।
उधर अमीरों के बच्चों की दुविधा यह है कि ‘संघर्ष’ शब्द उनके लिए निरर्थक है, ऐसे में संघर्ष करें भी तो किसके लिए, क्या हासिल करने के लिए? किस मोटीवेशन से? आर्यन प्रकरण के दौरान सोशल मीडिया पर शाहरुख खान और उनकी पत्नी गौरी के इंटरव्यू का एक बरसों पुराना वीडियो क्लिप वायरल हो रहा है। यह इंटरव्यू अभिनेत्री सिमी ग्रेवाल के टीवी शो का हिस्सा है।
आर्यन के जन्म के तीन हफ्ते बाद लिए गए इस इंटरव्यू में शाहरुख पुत्र की परवरिश के बारे में अपने ‘महान विचार’ प्रकट करते दिखते हैं। वो कहते हैं- ‘मैं चाहता हूं कि जब वह (आर्यन) तीन-चार साल का हो तो लड़कियों को डेट करे। सेक्स और ड्रग्स का भी मजा ले। वो एक ‘बैड बॉय’ बने। अगर वह ‘गुड बॉय’ जैसा दिखाई देने लगा, तो मैं उसे घर से निकाल दूंगा।‘ शाहरुख ने तब यह बात शायद मजाक में कही थी, लगता है कि बेटे ने शैशवावस्था में ही आत्मसात कर ली!(मध्यमत)
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