गिरीश उपाध्याय
जेएनयू के पूर्व कम्युनिस्ट छात्र नेता कन्हैया कुमार ने दो दिन पहले जब कांग्रेस पार्टी जॉइन की तो उन्होंने दो महत्वपूर्ण बातें कहीं। एक तो यह कि कांग्रेस बड़ा जहाज है जिसे डूबना नहीं चाहिए क्योंकि बड़ा जहाज डूबा तो छोटी कश्तियां भी नहीं बचेंगी। दूसरा उन्होंने कहा कि कांग्रेस में वे इसलिए शामिल हो रहे हैं क्योंकि वे मानते हैं कि यह देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी है।
जिस समय कन्हैया कुमार राहुल गांधी से मिल कर कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद पार्टी के प्रवक्ता रणदीपसिंह सुरजेवाला के साथ मंच साझा करते हुए मीडिया से बात कर रहे थे, उसी समय पंजाब में कांग्रेस का बड़ा जहाज अपने अंदरूनी शिलाखंडों से टकराकर हिचकोले खा रहा था और उसी समय पार्टी में लोकतंत्र को धता बताते हुए पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष अपनी मनमानी न हो पाने के कारण इस्तीफे का ऐलान कर रहा था।
वैसे कहा जा सकता है कि किस पार्टी में कौन आता है, कौन जाता है, कौन क्या कहता है और कौन क्या सुनता है यह सब उस पार्टी का अंदरूनी मामला है और यह सब कांग्रेस में ही नहीं हर राजनीतिक पार्टी में होता आया है। बात भी ठीक है, कोई पार्टी कैसे चलाई जाती है, कैसे चलती है यह उसका अपना ही मामला होता है। लेकिन पार्टी के मामले देश की चिंता का सबब उस समय बन जाते हैं जब आप इस बात पर सोचते हैं कि उनके द्वारा की जाने वाली राजनीति और राजनीतिक शैली पर ही देश के लोकतंत्र का भविष्य तय होता है।
देखा जाए तो देश की दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा में इन दिनों बदलाव का दौर है। इस बदलाव को पीढ़ी परिवर्तन के रूप में भी देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री भाजपा में भी बदले जा रहे हैं और कांग्रेस में भी। लेकिन पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व परिवर्तन के इस कर्म को किस तरीके से संपन्न कर रहा है यह पूरा देश देख और समझ रहा है। और कांग्रेस में जिस तरीके से परिवर्तन की यह प्रक्रिया संपन्न कराई जा रही है वह लोकतंत्र के प्रति भी चिंता पैदा करने वाली है।
ऐसा शायद पहले कभी नहीं हुआ हो कि किसी प्रदेश में पार्टी का मुखिया बनाए गए व्यक्ति को उसी प्रदेश के मुख्यमंत्री ने देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त बताया हो। लेकिन पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदरसिंह ने नवजोतसिंह सिद्धू पर सार्वजनिक रूप से यह गंभीर आरोप लगाया और इतना तक कहा कि सिद्धू के पाकिस्तानी नेताओं से रिश्ते भारत की सुरक्षा के लिए लिहाज से ठीक नहीं हैं।
कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सिद्धू के बारे में क्या सोचता है, उनमें क्या काबिलियत देखता है और उनके जरिये पंजाब में कांग्रेस क्या भविष्य देख रहा है यह तो वही जाने, लेकिन इस सीमावर्ती और अत्यंत संवेदनशील राज्य में कांग्रेस की अंदरूनी घमासान ने जो हालात पैदा कर दिए हैं वे देश के लिए ठीक नहीं कहे जा सकते। पता नहीं कन्हैया कुमार ने कांग्रेस को परोक्ष रूप से डूबते जहाज की संज्ञा क्यों दी और किस आधार पर उन्होंने वहां लोकतंत्र की बात कही, लेकिन हकीकत यह है कि पार्टी के अविवेकी नेतृत्व और निर्णयों के चलते देश में विपक्ष का भविष्य अंधकारमय हो रहा है।
जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो उसमें सशक्त, और समर्थ विपक्ष की मौजूदगी एक अनिवार्य तत्व होती है। पर यदि डूबते जहाज पर सवार लोग छेद बंद करने के बजाय छेद बनाने में लगे हों और जहाज का कप्तान ही जहाज को हिमखंडों से टकराने में लगा हो तो जहाज कब तक सुरक्षित रह सकता है। पंजाब का ड्रामा गुरुवार को भी दिन भर चला और मुख्यमंत्री चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके नवजोत सिद्धू के बीच बंद कमरे में बात भी हुई। जब मैं यह पंक्तियां लिख रहा हूं तब टीवी पर एक स्क्रोल चल रहा है कि सिद्धू ने कहा- ‘’मैं कांग्रेस को मरने नहीं दूगा।‘’
कांग्रेस मरती है या जिंदा रहती है यह तो भविष्य बताएगा लेकिन विडंबना देखिये कि उसे अधमरा करने वाले ही दावा कर रहे हैं कि वे कांग्रेस को मरने नहीं देंगे। किसी भी पार्टी का इस तरह अधमरा होकर जीना भी क्या जीना है। देश में स्वस्थ लोकतंत्र के जिंदा रहने के लिए अच्छे विपक्ष का जिंदा रहना भी बहुत जरूरी है, पर विपक्ष यदि खुद पर ही तलवार चलाकर अपने को लहूलुहान कर रहा हो तो कोई क्या करे। (मध्यमत)
—————-
नोट– मध्यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्यमत की क्रेडिट लाइन अवश्य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।– संपादक