चिकित्सा जगत के महानायक-डॉक्टर एनपी मिश्रा

मनीष शंकर शर्मा

मध्यप्रदेश और भोपाल ने अपने मध्य से एक पुरोधा खो दिया। एक ऐसी शख़्सियत जो अपने आप में एक किंवदंती बन चुकी थी। मध्य भारत के सबसे प्रसिद्ध चिकित्सक, स्वास्थ्य विशेषज्ञ और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त डॉक्टर एनपी मिश्रा का गत दिवस 90 साल की आयु पूर्ण करने से कुछ ही समय पहले निधन हो गया। स्वयं मैंने व्यक्तिगत रूप से एक दीर्घकालिक मार्गदर्शक, दार्शनिक, मित्र और श्रेष्ठ चिकित्सक को खो दिया– एक अलौकिक व्यक्तित्व जिसने एक आदर्श व्यक्ति के सभी गुणों को समाहित करते हुए मूर्त रूप लिया।

डॉक्टर मिश्रा न केवल अपने पेशे के लिए प्रतिबद्ध थे अपितु एक असाधारण इंसान होने के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अपने विशाल ज्ञान के माध्यम से लोगों की सेवा करने के लिए पूरी तरह से समर्पित थे। विरले ही ऐसे मानव होते हैं जो ऐसे गुणों को धारण करते हैं जिससे एक तरफ उन्हें पेशेवर रूप से जीवन में अत्यधिक सफलता मिले और दूसरी ओर उन्हें वह आम जनमानस पसंद भी करे जिनकी वो सेवा करते हैं।

डॉक्टर एनपी मिश्रा कई दृष्टिकोण से एक महानायक के रूप में उभरे। अंतिम दिन तक शारीरिक रूप से पूर्णतः सक्रिय, निरंतर रोगियों का इलाज करने में, और जरूरतमंदों और कमजोर वर्गों की सेवा करने में भी। 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के दौरान रोगियों से भरे शहर की रात दिन सहायता करने में उनका योगदान अतुलनीय था। उन्होंने जिस जीवनशैली का पालन किया वह उनसे उम्र में दशकों वर्ष कम लोगों के लिए भी चुनौतीपूर्ण था। वह हमेशा हर स्थान पर मौजूद थे- दूर-दूर के सम्मेलनों में अनुभव साझा करना, अस्पतालों का दौरा करना, हर शाम अपने आवास पर मरीजों को देखना, समाज के सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों को हल करना आदि। एक विशेषता यह भी की इस उम्र में भी अपने घर मिलने आने वाले हर व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से गेट तक छोड़ कर आने की उनकी आदत थी।

दशकों के साथ के फलस्वरूप हमारा उनसे विशेष लगाव हो गया था। ठीक वैसा ही जो वो हमारे लिए महसूस करते थे। एक तरह की पारस्परिक प्रशंसा समिति थी यह। उनकी पहली यादें 44 साल पहले, वर्ष 1977 की हैं, जब वे हमारे दादा पंडित रामलाल शर्मा के इलाज के सिलसिले में होशंगाबाद गए थे। बस, इसके बाद सिलसिला जो चल निकला वह अंत तक जारी रहा। हमारे पिता और प्रदेश के भूतपूर्व मुख्य सचिव श्री के.एस. शर्मा साहब से उनकी गहरी मित्रता थी और घंटों वे गपशप करने आते थे। और हमारे साथ तो एक अलग ही रिश्ता था जो उन्हें हमारे निमंत्रण पर महासागरों के पार भी खींच लाता था।

एक बार वे हमारे पास दुबई आए, जहां हमारी भारत सरकार की विदेश पदस्थापना थी। वह कुछ दिन हमारे साथ रहे और उनकी उस विलक्षण शहर की संसाधनों के बिना प्रगति बाबत, अमीरात और उसके शासकों बाबत, प्रत्येक प्रमुख दर्शनीय स्थान को देखने और जानने की जिज्ञासा आज तक याद भी है और अचंभित भी करती हैं। इन वर्षों में, हम नियमित रूप से और कई मौकों पर उनसे अपनी अद्वितीय स्थिति पर सलाह लेते रहे, ऐसे विषय जिन्हें भारत के जाने माने अन्य चिकित्सक समझने और निदान करने में सक्षम नहीं हो पा रहे थे।

वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने उस जमाने में यह सुझाव दिया था कि ऑटोइम्यून स्थितियों और महत्वपूर्ण अंगों के बीच एक सम्बंध हो सकता है। यह वह समय था जब अमेरिका और यूरोप में इन्हीं संबंधों पर कुछ शोध सामने आ रहे थे। इस बीच हमारे यहाँ के चिकित्सक पूरी तरह से अनजान थे तथा इस साक्ष्य को गम्भीरता से नहीं लेते थे। तब उन्होंने हमें अमेरिका परामर्श का भी सुझाव दिया। अपनी विशिष्ट स्थिति के तारतम्य में कई मर्तबा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सकों के साथ चर्चा तथा विश्व के शीर्षस्थ अस्पतालों के अनुभव के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जहां तक ​​​​चिकित्सा कौशल और दूरदर्शिता का संबंध है उनका कोई सानी नहीं था। पूरी विश्व बिरादरी में।

हमारे संयुक्त परिवार से उनका लगाव इतना गहरा था कि 4 दशकों के दौरान उन्होंने परिवार की तीन पीढ़ियों का इलाज किया और चौथी पीढ़ी को देख कर भी प्रसन्न होते थे। मुझे पूर्णतः यकीन है कि जिस तरह हमारा परिवार इस बंधन की प्रगाढ़ता को महसूस करता है ठीक वैसा ही आत्मीय अनुभव मध्यप्रदेश के तमाम व्यक्ति व परिवार महसूस करते हैं। वे इस महान राष्ट्र की सेवा में सदैव एक महान सैनिक बने रहे।

ईश्वर की कृपा से 5 महाद्वीपों में सेवा करने का अवसर मिलने के कारण- हमारे मित्र टोक्यो से तेलंगाना तक और सिंगापुर से सैन डिएगो तक फैले हुए हैं– और हर उम्र के 19 से 91 वर्ष तक के, परंतु कई मायनों में डॉक्टर साहब जैसा कोई नहीं था। डॉ. मिश्रा में समाज के प्रति सहानुभूति का गुण प्रचुर मात्रा में था। यह भी तब, जब यह ख़ासियत न केवल उनके पेशे में बल्कि हमारे समाज के अधिकांश क्षेत्रों में अत्यंत दुर्लभ है।

रोग सम्बन्धी उनकी पकड़ और पहचान तथा निदान क्षमता इतनी स्पष्ट और तीक्ष्ण थी कि उसका वर्णन मुश्किल सा ही है। इसके अलावा वह निरंतर चिकित्सा क्षेत्र में नवीनतम विकास और अनुसंधान से स्वयं को अद्यतन रखते थे। वह हमेशा नवीनतम नवाचारों व खोजों को ना केवल जानते थे अपितु इन उपचारों को सफलतापूर्वक लागू करने में सक्षम भी थे। इस प्रकार उनके रोगियों को उनके ज्ञान और कौशल खोज की कला से अत्यधिक लाभ होता रहा।

ज्ञान की खोज में यह दृढ़ता वास्तव में समाज की सेवा का जुनून बन गई थी। वे एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने वास्तव में जीवन जिया। एक विशाल बहुमत के विपरीत, जो अस्तित्व में रहते हुए जीवन को केवल गुज़ार देता है। उनका एक और महत्वपूर्ण गुण यह था कि वह हमेशा सार्वजनिक स्वास्थ्य सम्बंधित गंभीर बीमारियों के समाधान की तलाश में रहते थे। वह भी तब, जब वे सरकार की सेवा नहीं कर रहे थे और उनकी कोई प्रत्यक्ष जिम्मेदारी नहीं थी। हाल ही में कोविड 19- महामारी के लिए दवाओं पर उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ त्वरित चर्चा कर रेमदेसीवीर की उपलब्धता और वितरण पर बहुमूल्य सुझाव दिए थे।

डॉ. मिश्रा को बुद्धिमतापूर्ण चर्चा करने का और क़िस्से कहानी सुनाने का बेहद शौक था- अपनी यात्राओं के बारे में बात करना, देश के सामने आने वाले मुद्दों पर चर्चा करना, सार्वजनिक सेवा की भूमिका- चाहे राजनीतिक हो या प्रशासनिक और निश्चित रूप से चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र पर। वह हमसे बातचीत के लिए हर 15 दिन में एक बार नियमित रूप से फोन करते थे। और फिर अनेक बार विषय हमेशा इस तथ्य की ओर मुड़ता कि वह अब वर्ष के आधार पर 88 या 89 वर्ष के थे और हम हमेशा कहते कि उनका 90 वां और फिर उनका 100 वां जन्मदिन भव्य तरीके से मनाने का लक्ष्य रखा है!

डॉ. मिश्रा भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वह हमेशा ऐसे उन तमाम लोगों के दिलो-दिमाग में रहेंगे, जो ज्ञान की पूजा करते हैं। ऐसे लोग जो समर्पित और प्रतिबद्ध हैं, जो सच्चाई पर अडिग रहते हैं, जो लोग बिना किसी भय और पक्षपात के समाज की सेवा करने का साहस रखते हैं। डॉक्टर मिश्रा ने राज्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है। वास्तव में वे जनता के व्यक्तित्व के रूप में पहचाने जाएँगे ।

हम अक्सर उनका उल्लेख करते थे की वो किस प्रकार से हमारे लिए प्रेरणा स्त्रोत थे- विशेषकर स्वास्थ्य के मामलों में और जिस तरह से वह वरिष्ठ नागरिक होते हुए भी इतने सक्रिय थे- जिस तरह से वे घूमते थे- जिस तरह से वह कभी भी लगातार 30 मिनट से ज्यादा नहीं बैठते थे, जिस तरह से वह हमेशा ज्ञान की अपनी खोज को जारी रखते थे, जिस तरह से वह हमेशा अपने क्षेत्र और उससे आगे के नवीनतम विकास के बारे में जागरूक रहते थे। वे वास्तविक जीवन में एक हीरो थे- एक ऐसे देश में जहां बहुमत स्क्रीन रूपी हीरो को ही असल हीरो समझ लेता है।

उनके व्यक्तित्व का एक अन्य पहलू वह आभा थी जो उनके इर्द गिर्द रहती थी। हाल के वर्षों में एक अवसर पर, हमने अपने निवास पर अपने एक मित्र जो कि कई देशों में सेवानिवृत्त भारतीय राजदूत रहे थे- के सम्मान में आयोजित रात्रिभोज के लिए प्रतिष्ठित नागरिकों के एक समूह को आमंत्रित किया था। मेहमानों के बीच सामान्य शिष्टाचार और परिचय के बाद हमने पूरी सभा को डॉ. मिश्रा के एक किस्से को ध्यान से सुनते हुए पाया। उनके नाम से ही पता चलता कि कोई बहुत ऊँचे कद का व्यक्ति है। इसलिए नहीं कि उनके पास महान शक्ति या उच्च पद था, बल्कि उन उत्कृष्ट गुणों के कारण, जो उनके पास थे और लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के प्रति उनका पूर्ण समर्पण था।

इसके अलावा, एक और उत्कृष्ट और असाधारण गुण जो उन्हें महामनव की श्रेणी में रखता है- वह था किसी भी प्रकार के व्यावसायिक सोच या मानसिकता का पूर्ण अभाव, यहां तक ​​​​कि विचारों में भी। और यह ऐसे वातावरण में जब आसपास के अधिकांश लोगों के विचार और कार्यों में, चाहे वह किसी भी पेशे से सम्बंधित हों- व्यावसायिक झुकाव दिख ही जाता है।

उनके करीबी उन्हें ज्ञान के विशाल भंडार के रूप में याद करेंगे। एक आदमी जो सब कुछ जानता था। जो विभिन्न विषयों पर बातचीत कर सकता है– अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, स्थानीय- व्यापक मुद्दों और पहलुओं पर- सभी पर अधिकार के साथ। उन्होंने दूर-दूर तक यात्रा की थी और हर बार जब वह यात्रा से लौटते थे तो कहते कि उनके व्यक्तित्व में वृद्धि हुई है- और यह हमें उस प्रसिद्ध गुमनाम कहावत की याद दिला जाता था कि-“हम सबका जीवन किताबों की तरह है और जो लोग यात्रा नहीं करते हैं उन्होंने पढ़ा है जीवन की किताब का सिर्फ एक पृष्ठ।”

मैं व्यक्तिगत रूप से उनके हमारे बीच से चले जाने को एक नुकसान के रूप में नहीं बल्कि एक ऐसी घटना के रूप में मानता हूं जिसने एक उत्कृष्ट इंसान और एक असाधारण सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रति समर्पित व्यक्ति को दूसरी दुनिया में पहुंचा दिया है, जहां वह उसी उत्साह और गतिशीलता के साथ निस्वार्थ और निरंतर लोगों की सेवा करना जारी रखेंगे। वह वास्तव में ‘भारत रत्न’ थे।
अलविदा डॉक्टर साहब। मार्गदर्शक, दार्शनिक, मित्र। अगली मुलाक़ात तक।
(लेखक, वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं और वर्तमान में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के रूप में कार्यरत हैं।)
(मध्‍यमत)
नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।संपादक

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