गिरीश उपाध्याय
मध्यप्रदेश में लंबे समय के इंतजार के बाद आखिरकार जिलों के प्रभारी मंत्रियों की घोषणा कर दी गई है। सामान्य प्रशासन विभाग ने 30 जून को इस संबंध में आदेश जारी किया। आने वाले दिनों में प्रभारी मंत्रियों की यह फौज अपने अपने जिले में क्या करेगी और संबधित जिले को अपने नए प्रभारी मंत्री का क्या फायदा होगा इस बारे में अभी कहना मुश्किल है। लेकिन मूल सवाल यह है कि आखिर ये प्रभारी मंत्री बनाए किसलिये जाते हैं?
पहली बात तो ये है कि प्रभारी मंत्री को लेकर सरकारी तंत्र में कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है और न ही किसी विधान के तहत इन्हें कोई विशेषाधिकार आदि स्थायी रूप से दिए गए हैं। यह एक ऐसी व्यवस्था है जो सरकारें समय समय पर अपनी सुविधा से बनाती रही हैं और उसकी व्याख्या भी करती रही हैं। ऐसा भी नहीं है कि प्रभारी मंत्री के बिना जिले का सूरज नहीं निकलता। ताजा उदाहरण ही लीजिये इस बार नई सरकार बनने के डेढ़ साल बाद प्रभारी मंत्रियों का ऐलान हुआ है। यानी अब तक जिले बिना प्रभारी मंत्री के चल ही रहे थे। उनके न रहने से कोई काम रुक भी नहीं रहा था।
तो फिर प्रभारी मंत्री क्यों चाहिये? इसके लिए आप ज्यादा दूर मत जाइये। घटनाक्रम पर थोड़ी निगाह डाल लीजिये। सामान्य प्रशासन विभाग ने 30 जून को प्रभारी मंत्रियों की घोषणा वाला आदेश जारी करने से 6 दिन पहले यानी 24 जून 2021 को एक आदेश निकाला। यह आदेश राज्य एवं जिला स्तर पर सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादलों को लेकर था। इस आदेश को सरकारी तंत्र की सामान्य बोलचाल में तबादला नीति कहते हैं और इसका इंतजार अधिकारियों/कर्मचारियों से लेकर मंत्रियों और नेताओं तक को बहुत बेसब्री से रहता है। ऐसा क्यों होता है, इसके सर्वज्ञात कारणों का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है।
खैर.. अब 24 जून को जो तबादला नीति जारी हुई उसके बिंदु क्रमांक 4 और 5 को आपको ध्यान से पढ़ना होगा। बिंदु क्रमांक 4 कहता है कि- ‘’प्रदेश में राज्य एवं जिला स्तर पर अधिकारियों/कर्मचारियों के पूरे वर्ष निरंतर स्थानांतरण करने पर प्रतिबंध लागू रहेगा। दिनांक 1 जुलाई 2021 से 31 जुलाई 2021 तक की अवधि के लिए स्थानांतरण से प्रतिबंध को शिथिल किया जाता है। इस अवधि में प्रत्येक विभाग अपनी प्रशासनिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए स्थानांतरण कर सकेंगे।‘’ और बिंदु क्रमांक 5 कहता है कि- ‘’इन निर्देशों के अधीन जिला संवर्ग के कर्मचारीगण का एवं राज्य संवर्ग के तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का जिले के भीतर स्थानांतरण जिला कलेक्टर के माध्यम से प्रभारी मंत्री के अनुमोदन उपरांत किया जाएगा। स्थानांतरण आदेश विभागीय जिला अधिकारी के हस्ताक्षर से जारी किये जाएंगे।‘’
यानी मोटे तौर पर प्रभारी मंत्रियों का सबसे प्रमुख काम सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के तबादले को देखना है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जब भी और जितने दिन भी तबादलों से प्रतिबंध हटता है वह समयावधि सरकारी और राजनीतिक तंत्र में एक उत्सव की तरह होती है। इसका अपना प्रशासनिक शास्त्र हो या न हो लेकिन इसका अपना अर्थशास्त्र और राजनीतिक शास्त्र जरूर है। और यही कारण है कि इस समयावधि में प्रभारी मंत्री बाकी काम से ज्यादा इस काम पर अधिक ध्यान देते हैं।
माना कि कई बार अत्यंत मानवीय कारणों और अत्यंत अपरिहार्य निजी कारणों से सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को तबादले की जरूरत महसूस होती है। लेकिन जितने तबादले जरूरत के आधार पर होते हैं उससे कई गुना अधिक तबादले गैर-जरूरत के होते हैं। और जब एक बार किसी एक व्यक्ति के तबादले से उस विभाग या ऑफिस की एक ईंट खिसकती है तो उसकी भरपाई के लिए तबादलों की एक लंबी चेन बनती है और फिर कई सारी ईंटों को खिसकाने और जमाने का खेल शुरू हो जाता है। इस खेल में कई लोग वारे न्यारे करते हैं।
इस समय प्रदेश की अर्थव्यवस्था की जो हालत है और कोरोना के चलते पूरे समाज पर जो दबाव है उसे देखते हुए सबसे जरूरी बात है कि तबादलों के बहाने होने वाली अफरा तफरी को कम से कम रखा जाए। प्रभारी मंत्रियों से भी यह अपेक्षा रखी जाए, और अपेक्षा ही क्यों उन्हें बाकायदा निर्देशित किया जाए कि वे जिले के तबादला मंत्री के बजाय जिले के पालक मंत्री की तरह आचरण करें और ट्रांसफर पोस्टिंग में लीन हो जाने के बजाय उस जिले की बेहतरी पर अधिक ध्यान दें। प्रभारी मंत्रियों के अधिकार और कर्तव्य भले ही स्थायी रूप से परिभाषित न किए गए हों लेकिन उनसे अपेक्षा यही की जानी चाहिए कि वे जिले के समग्र विकास पर ध्यान दें। प्रभारी मंत्रियों का मूल्यांकन भी इसी आधार पर किया जाना चाहिए।
मुझे मालूम है कि यह सुझाव अन्यान्य कारणों से कोई नहीं मानेगा लेकिन बेहतर तो यह होगा कि कोई ऐसी व्यवस्था हो कि प्रभारी मंत्रियों का मूल्यांकन जिले के समग्र विकास के लिए उनके द्वारा की गई पहल और नवाचार के आधार पर किया जाए और उसी आधार पर अंक देकर मंत्रियों को बड़े और महत्वपूर्ण जिलों का प्रभार देकर प्रमोट किया जाए। वरना अभी तो जिलों के प्रभार राजनीतिक रसूख और दबदबे से मिलते हैं, आपकी योग्यता, क्षमता और नवाचार कर सकने की काबिलियत के आधार पर नहीं। तय आपको करना है कि आपको जिले का अभिभावक चाहिए या फिर जिले की तबादला इंडस्ट्री का सीईओ…(मध्यमत)
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