पूरी तहकीकात की मांग करता है बड़वानी का मामला

गिरीश उपाध्‍याय

मध्‍यप्रदेश में चल रही राजनीतिक हलचल के बीच एक प्रशासनिक मुद्दे ने सभी का ध्‍यान अपनी ओर खींचा है। इस मुद्दे के साथ खास बात ये है कि इसने न सिर्फ प्रशासनिक स्‍तर पर होने वाले भ्रष्‍टाचार पर उंगली रखी है वरन उसमें राजनीति को भी लपेट लिया है। मामला बड़वानी जिले के एडिशनल कलेक्‍टर लोकेश जांगिड़ का है जिन्‍होंने अपने ही जिला कलेक्‍टर शिवराजसिंह वर्मा को भ्रष्‍ट बताते हुए उन पर सार्वजनिक रूप से अनेक आरोप लगा डाले हैं। लोकेश यहीं नहीं रुके, उन्‍होंने यहां तक कह दिया कि चूंकि उनके रहते कलेक्‍टर भ्रष्‍टाचार नहीं कर पा रहे थे इसलिए उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री के कान भरकर बड़वानी से मेरा तबादला करवा दिया।

उल्‍लेखनीय है कि लोकेश जांगिड़ 2014 बैच के आईएएस अधिकारी हैं उन्‍हें पिछले अप्रैल माह में ही बड़वानी का अपर कलेक्‍टर बनाया गया था और कलेक्‍टर से खटपट के बाद 31 मई को उन्‍हें वहां से हटाकर राज्‍य शिक्षा केंद्र में पदस्‍थ कर दिया गया। इस तरह वे बड़वानी में बमुश्किल 42 दिन ही रह पाए। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले चार सालों में उनके आठ तबादले हो चुके हैं, यानी औसतन हर छह माह में एक तबादला।

जांगिड़ ने सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया पर अपने कलेक्‍टर के भ्रष्‍ट होने का आरोप लगाया है और कहा है कि चूंकि उनके रहते कलेक्‍टर पैसा नहीं कमा पा रहे थे इसलिए मुख्‍यमंत्री से कहकर उन्‍हें बड़वानी से चलता कर दिया गया। मीडिया रिपोर्ट कहती हैं कि जांगिड़ ने कलेक्‍टर और मुख्‍यमंत्री के एक ही समाज का होने का हवाला भी दिया और यह भी कहा कि कलेक्‍टर की पत्‍नी उसी समाज की एक पदाधिकारी हैं। हालांकि कलेक्‍टर ने जांगिड़ के इन सारे आरोपों से इनकार किया है। लेकिन यह मामला इसलिए बहुत गंभीर हो जाता है क्‍योंकि अपने तबादले के कारणों को गिनाते हुए एक अफसर ने मुख्‍यमंत्री निवास तक को उलझा लिया है।

प्रशासनिक हलकों में अफसरों के बीच मनमुटाव से लेकर प्रतिद्वंद्विता तक के मामले नए नहीं हैं। कई बार इनके पीछे व्‍यक्तिगत कारण होते तो कई बार प्रोफेशनल, कई बार इसकी जड़ में भ्रष्‍टाचार होता है तो कई बार बड़े अफसरों या राजनेताओं की नजर में चढ़ने की होड़। अफसरों में एक दूसरे को नीचा दिखाकर या एक दूसरे की टांग खींचकर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति भी अकसर देखी गई है। लेकिन बड़वानी का मामला इन सभी बिंदुओं का मिलाजुला स्‍वरूप दिखाई देता है।

अभी यह कहना कठिन है कि इस मामले में कौन सही है और विवाद का असली मुद्दा क्‍या है, लेकिन जिस तरह से लोकेश जांगिड़ ने सार्वजनिक रूप से अपने ही कलेक्‍टर पर आरोप लगाए हैं उसके चलते सरकार के लिए यह लाजमी हो जाता है कि वो इस पूरे मामले की तत्‍काल जांच करवा कर असलियत को जनता के सामने लाए। प्रदेश में प्रशासनिक शुचिता और नैतिकता की बात आए दिन की जाती है, यदि हम सचमुच उसके पक्षधर हैं तो बड़वानी का मामला सरकार के लिए एक उदाहरण हो सकता है जिसमें वह निष्‍पक्ष और पारदर्शी जांच व कार्रवाई कर बता सकती है कि उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है।

इस प्रकरण का एक असर यह भी हुआ है कि जांगिड़ ने मध्‍यप्रदेश छोड़कर जाने की पेशकश भी कर डाली है। उन्‍होंने तीन साल के लिए महाराष्‍ट्र जाने का आवेदन सरकार को दिया है। हो सकता है मामले पर लीपापोती के लिए सरकार कुछ दिनों बाद उनका यह आवेदन स्‍वीकार कर ले लेकिन ऐसा करना हाराकिरी जैसा ही होगा। होना तो यह चाहिए कि सरकार जांगिड़ को मध्‍यप्रदेश में ही बनाए रखे और पूरे मामले में दूध का दूध और पानी का पानी करे।

यहां सवाल किसी को दोषी या निर्दोष ठहराने से ज्‍यादा इस बात का है कि प्रदेश में प्रशासनिक ढांचे और सुशासन की असली तसवीर क्‍या है। जांच के बाद यदि कलेक्‍टर दोषी पाए जाते हैं तो उन पर कार्रवाई हो और यदि एडिशनल कलेक्‍टर की गलती पाई जाती है तो उन पर भी एक्‍शन लिया जाए। अकसर देखा गया है कि सरकारें ऐसे मामलों को ठंडे बस्‍ते में डालकर या दरी के नीचे छुपाकर दबा देने का प्रयास करती हैं। जबकि होना यह चाहिए कि ऐसे मामलों की पूरी तहकीकात हो और कानून कायदे से जिसके खिलाफ जो भी एक्‍शन बनता हो वह सख्‍ती से अमल में लाया जाए।

अफसरों से जुड़े इस तरह के मामलों में आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन जैसी संस्‍थाओं की भूमिका भी लंबे समय से सवालों के घेरे में रही है। ये संस्‍थाएं नौकरशाही की नैतिकता और शुचिता को स्‍थापित करने और प्रदेश की जनता को सुशासन देने की अपनी प्रतिबद्धता से हटकर राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से स्‍टैंड लेने लगी हैं। जांगिड़ ने अपनी शिकायत आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन के वाट्सऐप चैट ग्रुप पर भी डाली थी लेकिन उनसे कहा गया कि वे तत्‍काल अपनी इस पोस्‍ट को हटाएं। जब जांगिड़ ने ऐसा नहीं किया तो उन्‍हें ग्रुप से बाहर करते हुए उस पोस्‍ट को डिलीट कर दिया गया।

सोशल मीडिया की दीवार से किसी इबारत को मिटाने और संबंधित व्‍यक्ति को उस समूह से बाहर कर देने से कोई भी संगठन पाक साफ साबित नहीं हो जाता। उसके लिए जरूरी है पूरी हिम्‍मत और निष्‍पक्षता के साथ मामले की तह तक जाना और सही को सही व गलत को गलत कहने और उस हिसाब से गलत करने वाले को दंडित करने के लिए पहल करना। जांगिड़ ने कई सारे सवाल उठाकर राजनीतिक और अफसरशाही दोनों हलकों के सामने एक चुनौती रख दी है। चुनौती यह है कि इन दोनों ही वर्गों के पास रीढ़ नाम की चीज है या नहीं… यदि है तो वे इसे साबित करें अन्‍यथा मान लिया जाएगा कि शुचिता, नैतिकता, सुशासन ये सब हाथी के दांत हैं… (मध्‍यमत)
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नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।संपादक

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