राकेश अचल
हम भारतीयों की आदत में शुमार है कि हमें जब प्यास लगती है, हम तभी कुआं खोदने बैठते हैं। दूरदर्शी फैसले न करने की इसी आदत की वजह से हर मोर्चे पर हमारी हार होती है। सीबीएसई की 12 वीं कक्षा की परीक्षाएं रद्द करने के मामले में भी हमारा यही रवैया एक बार फिर सामने आ गया है। दुःख इस बात का है कि इस फैसले में भी राजनीति की जा रही है।
सीबीएसई की परीक्षाओं में 30 लाख से ऊपर परीक्षार्थी शामिल होते हैं। कोविड की दूसरी लहर आने के पहले से ये सब छात्र न तो ढंग से पढ़ पा रहे थे और न ही उनकी परीक्षाओं को लेकर ढंग की तैयारी थी। पिछले साल आई महामारी की वजह से ही पूरे देश में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक का ढांचा चरमराया हुआ है। पूरा साल बच्चों ने या तो लॉकडाउन में काटा या फिर ऑनलाइन पढ़ाई के जरिये। ऑनलाइन पढ़ाई भी कैसी हुई ये हम सब जानते हैं, क्योंकि न सब छात्रों के पास लेपटॉप हैं और न एंड्रोइड मोबाइल। जिनके पास हैं भी उनके पास भरपूर कनेक्टिविटी नहीं थी।
बहरहाल सरकार ने 12 वीं की परीक्षाओं को रद्द करने का फैसला बड़ी जद्दोजहद के बाद किया, जबकि कक्षा 10 की परीक्षाओं को रद्द करने का फैसला पूर्व में किया जा चुका था। इन परीक्षाओं को रद्द करने का फैसला प्र्धानमंत्री जी की अध्यक्षता में हुई एक उच्चस्तरीय बैठक में किया गया। ये फैसला कितना महत्वपूर्ण था कि इसकी घोषणा खुद प्रधानमंत्री जी ने की फिर भी इस फैसले का एक स्वर से स्वागत नहीं किया गया। यहां भी किश्तों में प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। सबसे पहले भाजपा शासित राज्य इस फैसले के साथ खड़े हुए हैं, बाद में कांग्रेस सहित दूसरे दलों के द्वारा शासित राज्य।
लाखों बच्चों की जिंदगी से जुड़े इस महत्वपूर्ण फैसले में वे सब विसंगतियां हैं जो कोविड की रोकथाम के लिए किये जाने वाले टीकाकरण अभियान में देश देख रहा है। यही विसंगतियां कोविड का टीका आयात करने के मामले में देखी गयीं। मुझे इस फैसले पर जरा भी ऐतराज नहीं है, मैं बिना किसी राजनीतिक धारणा के इस फैसले का स्वागत करता हूँ किन्तु मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि ये फैसला भी हमारी सरकार की नाकामी का एक बड़ा उदाहरण है। सरकार उचित इंतजाम कर इस फैसले को टाल सकती थी।
दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये है कि एक तरफ हम मनुष्यता की दुहाई देते हैं और दूसरी तरफ मनुष्यता को बलायेताक भी रख देते हैं। बंगाल विधानसभा के चुनाव हों या उत्तरप्रदेश में पंचायत के चुनाव इन्हें हमारी सरकारों ने कराया, भले ही इनकी वजह से हजारों लोग कोविड का शिकार बने और अकाल ही मारे गए। हमने चुनावों को टाला नहीं। हम सीबीएसई की परीक्षाएं भी शायद नहीं टालते यदि इनका सम्बन्ध सत्ता से होता। परीक्षाएं टालने से बेहतर था कि सरकार सभी परीक्षार्थियों और शिक्षकों के अलावा अन्य संबंधित लोगों के लिए कोरोना के टीके का पुख्ता इंतजाम करती, लेकिन ये हो नहीं सकता था।
केंद्र और राज्य सरकारें यदि टीकाकरण में इन छात्रों को प्राथमिकता देती तो परीक्षाएं रद्द करने की नौबत ही नहीं आती। परीक्षाएं रद्द करना आसान काम है लेकिन टीकाकरण की व्यवस्था करना कठिन काम। हमारी सरकार ने हमेशा की तरह आसान काम चुना। आसान काम चुनने में आसानी होती है, आसान काम करने के लिए बहाने भी हजार मिल जाते हैं। परीक्षाएं रद्द करने के जो साइड इफेक्ट हैं, उन पर भी हमारी सरकार ने बड़ी गहन बहस की है लेकिन निदान कुछ नहीं दिया। सवाल ये है कि क्या परीक्षाएं रद्द करने से 12 वीं के छात्रों को आगे की पढ़ाई करने में तकनीकी बाधाएं नहीं आएँगी? क्या सरकार तमाम विश्वविद्यालयों को इस खेप की सुविधा के लिए तैयार कर सकेगी? क्या ये छात्र भावी तैयारियों को लेकर भ्रम का शिकार नहीं होंगे? क्या इनकी अंकसूचियों को आने वाले दिनों में लोग वैसा ही महत्व देंगे जैसा नियमित परीक्षा के बाद दी जाने वाली अंक सूची को मिलता है? शायद नहीं।
कोविड-19 के दौरान जैसे देश में अराजक स्थितियां पैदा हुईं उन्हें देखते हुए तो 12 वीं की परीक्षाएं रद्द होने से अभिभावक खुश होंगे, होना भी चाहिए, क्योंकि कोई भी अपने बच्चों की जान जोखिम में नहीं डालना चाहता। दुःख उन लोगों को होगा जिन्होंने ने उच्च शिक्षा के लिए बड़े-बड़े सपने देख रखे थे। जो विदेशों में पढ़ना चाहते थे। उनके सामने फिलहाल अन्धेरा ही अन्धेरा है। देश के अनेक राज्य अभी भी अपने यहां 12 वीं की परीक्षाओं के बारे में फैसला नहीं ले सके हैं। कायदे से केंद्र को सभी राज्यों के साथ सभी बोर्ड परीक्षाओं के लिए एक समान फैसला करना था फिर चाहे वो केंद्रीय बोर्ड हो या राज्यों के बोर्ड।
पूर्व में केंद्र ने जिस तरह से टीका आयात करने के मामले में अविवेकपूर्ण फैसला किया था उसी की पुनरावृत्ति परीक्षाएं रद्द करने के फैसले में भी दिखाई दे रही है। क्या वजह है कि हम महत्वपूर्ण विषयों पर एकमत से फैसले नहीं कर पा रहे, हमारे प्रधानमंत्री जी का इकबाल इतना बुलंद नहीं है कि वे सर्वसम्मत फैसले करा सकें? इस स्थिति के लिए पिछले सालों में की जा रही राजनीति जिम्मेदार है। हमारी सरकार ने सबका साथ, सबके विकास की बात तो कही किन्तु हकीकत में इसे अमल में नहीं लाया। सरकार केवल और केवल कमल खिलाने की मुहिम में लगी रही।
बहरहाल कल की कल देखी जाएगी। अब राज्य सरकारों को चाहिए कि वे भी अपने यहां राज्य बोर्डों की 12 वीं की परीक्षाओं को रद्द कर दें ताकि छात्रों को किसी असामंजस्य का शिकार न होना पड़े। शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे विषयों पर कांच की तरह पारदर्शी नीति और नीयत के बिना इस देश का कल्याण होने वाला नहीं है। सियासत के लिए देश के भविष्य को दांव पर लगाने की आदत से सभी को बाज आना पडेगा। वरना लम्हों की सजा, सदियां भुगतने के लिए अभिशप्त हो जाएंगी। भगवान के लिए देश पर रहम कीजिये। (मध्यमत)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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