आखिर क्यों बह रही है उलटी गंगा?

राकेश अचल

देश में गंगा सिर्फ लाशें ही नहीं उगल रही बल्कि उलटी बह भी रही है। गंगा एक जगह नहीं पूरे देश में उलटी बह रही है। गंगा को उलटा बहता देखकर कलेजा मुंह को आता है,  लेकिन कोई कुछ करने को तैयार नहीं है। सब उलटी बह रही गंगा में बहने को राजी हैं, लेकिन गंगा का बहाव सही करने के बारे में नहीं सोचते।

यकीनन ये विषय आपकी पसंद का नहीं होगा, लेकिन होना चाहिए। गंगा दूषित हो या उलटी बहे,  आपको,  हम सबको गंगा की फ़िक्र होना चाहिए, आखिरकार गंगा इस मुल्क की पहचान है। गंगा सिर्फ नदी होती तो कोई बात ही न थी, गंगा एक संस्कृति है, सभ्यता है,  लहजा है जीवन का। अगर काशी में कोई छन्नूलाल रोते हैं तो गंगा भी रोती है। अगर बनारस में कोई बिरजू नाचते है तो गंगा नाचती है। गंगा शहनाई की अनुगूंज है,  उमंग है इसलिए गंगा को उलटा नहीं बहना चाहिए।

गंगा का उलटा बहना बहुत कुछ कह जाता है। गंगा के उलटे बहने का मतलब गंगा की धारा का विपरीत दिशा में बहना भर नहीं है। बल्कि गंगा का उलटा बहना यानी सब कुछ उलटा-पुल्टा हो जाना है। गंगा के उलटे बहने का मतलब है कि संविधान अपना काम नहीं कर रहा, संसद सो गयी है, जन प्रतिनिधि स्वार्थी हो गए हैं और जनता का तो कहना ही क्या? गंगा के उलटे बहने का अर्थ ये भी है कि तेली का काम तमोली कर रहे हैं, कोरी की मार कडेरे पर पड़ रही है  या धोबी का कुत्ता न घर का रहा और न घाट का।

छत्तीसगढ़ में कोरोना कर्फ्यू के दौरान एक कलेक्टर एक नागरिक को थप्पड़ मार सकता है क्योंकि देश में गंगा उलटी बह रही है। एक पुलिसकर्मी मास्क न होने पर किसी से दंड-बैठक लगवा सकता है, कॉपी पर राम-राम लिखने को कह सकता है,  किसी महिला को घसीटकर पुलिस वेन में डाल सकता है, उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सकता है,  कोई मंत्री या विधायक खुद सड़क सेनेटाइज कर सकता है, झाड़ू लगा सकता है, अस्पताल में अपने वोटरों के लिए पलंग आरक्षित करा सकता है,  क्योंकि गंगा उलटी बह रही है।

देश में गंगा कोई आज से ही उलटी नहीं बह रही है। ये तो न जाने कब से उलटी बह रही है, केवल हमारी नजर इसके प्रवाह पर नहीं जाती। देश जबसे आजाद हुआ है तब से अब तक किसी ने गंगा को सीधा बहने की सुविधा दी ही नहीं। सबने सत्ता हाथ में आते ही हालात ऐसे कर दिए कि गंगा अपने आप, बिना मर्जी के उलटी बहने लगती है। गंगा का उलटा बहना एक तरह का अपशकुन है। गंगा जब उलटी बहती है तो अराजकता की दस्तक साफ़ सुनाई देने लगती है। जनता में निराशा घर करने लगती है गंगा को उलटा बहता देखकर।

भारत में गंगा से प्रेम करने वाला एक भी इंसान ऐसा नहीं है जो गंगा को उलटा बहते हुए देखना चाहता हो। सब चाहते हैं कि गंगा सीधी बहे,  एकदम सीधी। दुर्भाग्य ये है कि गंगा के उलटे बहने पर दुखी होने वाले लोग खुद कभी सीधे नहीं बहना चाहते। सबको गंगा की तर्ज पर उलटा बहने में मजा आता है। क़ानून तोड़ना गंगा के उलटे बहने का प्रतीक है,  रिश्वत देना या लेना भी गंगा के उलटे प्रवाह की गवाही देता है। भ्रष्‍टाचार,  अनैतिकता, भाई-भतीजावाद,  लूट-खसोट सब गंगा को उलटा बहने पर विवश करते हैं। बेचारी गंगा चाहकर भी सीधी नहीं बह पाती।

गंगा भगवान शिव की जटाओं से धरती पर आयी थी। भगीरथ का आग्रह था इसलिए आई थी। जब गंगा धरती पर आयी थी तब एकदम सीधी बहती हुई आई थी लेकिन देश जैसे ही आजाद हुआ सबने मिलकर ऐसे हालात बना दिए कि गंगा हर दिशा में उलटी बहने लगी। गंगा को सीधा बहने के लिए कोई मौक़ा ही नहीं बचा। बेचारी सीधी बहे तो कैसे बहे?

दरअसल गंगा जिधर भी बहती है सबके पाप धोते हुए आगे बढ़ती है। गंगा ठहरी पतित पावनी वो उलटी बहे या सीधी उसका काम सबको पतित से पावन करना है, सो करती है। चूंकि लोग सीधी बहती गंगा में अपने आपको सहज अनुभव नहीं करते इसलिए सब मिलकर गंगा को उलटा बहने पर मजबूर कर देते हैं। उलटी बहती गंगा शिकायत नहीं कर सकती। अपने प्रदूषित होने की शिकायत, अपने दूषित होने की शिकायत, अपने सूखने की शिकायत, अपने बाँधने की शिकायत। गंगा की और इस देश के आम आदमी की दशा एक जैसी है। दोनों दुखी है लेकिन शिकायत नहीं कर सकते। दोनों की कोई सुनता नहीं,  जबकि कसम हर कोई खाने को तैयार रहता है।

गंगा की तकलीफ ये है कि आधे से ज्यादा भारत गंगाजल हाथ में लेकर नाना प्रकार की कसमें खाता है लेकिन बिरले ही हैं जो गंगा की लाज रखते हैं। गंगा का अदि और अंत दोनों एकदम से अलग चरित्र का है। निर्मल गंगा समुद्र में मिलने के समय कलुषित गंगा होती है। वो तो समुद्र का दिल बड़ा है इसलिए वो दूषित/प्रदूषित गंगा को भी अपने आंचल में छिपा लेता है। समुद्र की जगह कोई और हो तो गंगा को तड़ीपार कर दे। आखिर दूषित और उलटी बहती गंगा को कौन अपनाना चाहेगा?

गंगा उलटी न बह रही होती तो देश में कोविड का टीकाकरण लंगड़ा न होता। गंगा उलटी न बहती तो सत्ता में संत नहीं सियासतदां ही बैठे होते। गंगा उलटी न बह रही होती तो अब तक लोकपाल बन गया होता। गंगा उलटी न बह रही होती तो देश में कोविड का एक भी मरीज बिना इलाज के दवाओं के अभाव में नहीं मरता। एक भी पार्थिव देह गंगा और उसकी सहोदर नदियों में प्रवाहित न की जाती। लेकिन मानना पडेगा की गंगा उलटी बह रही है और कोई गंगा पुत्र गंगा के प्रवाह को सीधा करने का साहस नहीं दिखा पा रहा है।

अगर मै अपना अनुभव कहूँ तो इस देश में लोकतंत्र तभी कामयाब हो सकता है जबकि गंगा सीधी बहे, शुद्ध बहे, अबाध बहे। गंगा को बचाने के लिए किसी को आमरण अनशन न करना पड़े,  जान न देनी पड़े। इस देश में एक गंगा ही है जो धरती पर बहने के साथ हर भारतीय के भीतर भी बहती है। दूसरी कोई नदी किसी के भीतर नहीं बहती, सब बाहर बहती हैं। चूंकि गंगा भीतर और बाहर दोनों तरफ बह लेती है इसलिए सबको इसी गंगा की चिंता करना चाहिए।

यदि गंगा सीधे बहने लगे तो सब कुछ सामान्य हो जाये। बीमारी का इलाज मिल जाये। वर्गभेद मिट जाये,  जीवन का संचार आसान हो जाये। अगर आपकी समझ में गंगा का उलटा बहना आ गया हो तो कृपाकर गंगा को सीधा बहाने में मदद कीजिये। गंगा यानि सिर्फ वो गंगा नहीं बल्कि देश की तमाम नदियां हैं। गंगा जंगल है, गंगा जमीन है और गंगा बक्स्वाहा का जंगल भी है और डालर के मुकाबले लगातार लड़खड़ाता भारतीय नोट भी। हमें सबको बचाना है। यदि गंगा बचेगी तो देश बचेगा और संस्कृति बचेगी,  दावानल वजूद में नहीं रहेगा। तो आईये राम की गंगा को मिलकर बचाएं। गंगा काशी और इलाहबाद के अलावा वहां भी मौजूद है जहां उसे नहीं होना चाहिए। (मध्‍यमत)
डिस्‍क्‍लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।
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नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।संपादक

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