आकाश शुक्ला
आज के समाज में भी एकलव्य से गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांग कर उसे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनने से रोकने वाले गुरु द्रोण की कमी नहीं है। यह समाज की एक प्रवृत्ति है, जो आदिकाल से अनवरत चली आ रही है। आज भी समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं जो अपने किसी प्रिय पात्र को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए एकलव्य जैसे योग्य लोगों के अंगूठे कटवा कर अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनवाते है।
जब क्षेत्रीय क्रिकेट में 1009 रन की पारी खेलने वाले ऑटो चालक के बेटे प्रणव धनावडे के स्थान पर अर्जुन तेंदुलकर का चयन होता है, तब एकलव्य की कहानी याद आती है। ऐसे कई एकलव्य अपने आसपास से लेकर राष्ट्रीय पटल पर वर्तमान में देखने में आते हैं।
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के वर्तमान हालात भी ऐसी ही कहानी का समर्थन करते दिखते हैं, नई पीढ़ी के योग्य राजनेता राष्ट्रीय पटल पर परिवारवाद के प्रतीक नेता को चुनौती न दें, इसीलिए योग्य होते हुए भी उनके स्थान पर बुजुर्ग और थक चुके नेताओं को आगे बढ़ाया जाता है, जो भविष्य की उम्मीद किसी भी स्थिति में नहीं कहे जा सकते। ऐसी स्थिति में वर्तमान एकलव्य या तो अंगूठा कटे धनुर्धर की तरह पार्टी में रहते हैं,या गुरु बदलने वाला दूसरा रास्ता अपनाते हुए पार्टी छोड़ देते हैं।
यदि जगन मोहन रेड्डी को उचित सम्मान कांग्रेस में मिलता तो आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की दुर्दशा नहीं होती। यदि ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने सही सम्मान दिया होता तो वहां कांग्रेस वर्तमान हालात का सामना करने से बच जाती। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को सम्मान कांग्रेस में मिलता तो कांग्रेस को सत्ता से मोहताज नहीं होना पड़ता। वर्तमान में सचिन पायलट को राजस्थान में उचित सम्मान नहीं देना भविष्य में राजस्थान में भी कांग्रेस को भारी पड़ेगा। ऐसे कई उदाहरण हैं जो आज कांग्रेस की दुर्दशा का कारण है।
ऐसे ही कई उदाहरण देश की अन्य क्षेत्रीय पार्टियों में भी देखने को मिलते है, जहां शीर्ष नेतृत्व अपने पुत्रों और परिवार के लोगों को अपनी पार्टियों की कमान सौंपते हैं, जिसके कारण उनकी पार्टियों के योग्य नेताओं के अवसर समाप्त हो जाते हैं। और उनकी पार्टियां योग्य नेतृत्व की अनदेखी करने का परिणाम भुगतती है। समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, तेलुगू देशम, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, शिवसेना, एनसीपी जैसे कई उदाहरण हैं जो परिवारवाद को आगे बढ़ाने के कारण अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं।
योग्य नेतृत्व को आगे बढ़ाना बीजेपी से अन्य पार्टियों को सीखना चाहिए बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा जैसे कई बड़े नेता, सब अपनी योग्यता और संगठनात्मक क्षमता के आधार पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर पहुंचे हैं। परिवारवाद से दूरी बीजेपी को अन्य पार्टियों से अलग बनाती है, जो बीजेपी की मजबूती का मुख्य आधार है।
ऐसे ही वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था है जो आरक्षण का समर्थन करती है। योग्यता की जगह आरक्षण की बैसाखी पकड़ाना, अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए, योग्य व्यक्ति का अंगूठा काटकर उसे एकलव्य की तरह असहाय बनाने जैसा है। ऐसी व्यवस्था से योग्यता का पलायन ही होता है, और योग्यता के पलायन से देश का नुकसान होता है।
हरियाणा सरकार ने प्रदेश की जनता को प्राइवेट संस्थानों के रोजगार में 75 फीसदी आरक्षण देने संबंधी विधेयक पास किया है। क्षेत्रीयता के आधार पर योग्यता को तिलांजलि देना क्या देश हित में है? क्या योग्यता को नकारने से निवेश पर हरियाणा में असर नहीं पड़ेगा? क्या ऐसी क्षेत्रीयता बढ़ाने से राष्ट्रीय हित प्रभावित नहीं होंगे? क्या देश भर के योग्य व्यक्तियों को हरियाणा से दूर करने का यह प्रयास उचित है? क्योंकि योग्यता पर पहला अधिकार देश का रहता है।
प्रतिभा की सही पहचान करके, उसके साथ न्याय कर उसे उचित सम्मान देना, हमें आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य की कहानी से सीखना चाहिए। आचार्य चाणक्य ने जंगल में चंद्रगुप्त मौर्य को बच्चों के बीच राजा का खेल खेलते देखकर उसकी प्रतिभा को पहचाना और उसे शिक्षा दीक्षा देकर सक्षम बनाया। मगध पर आक्रमण कर जीत हासिल की और विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
जब नेतृत्व अर्जुन के लिए एकलव्य के अंगूठे काटने लगे तो यह समाज के लिए कभी सही नहीं हो सकता, इससे प्रतिभा का दमन ही होता है। नेतृत्व को आचार्य चाणक्य की तरह प्रतिभा का उचित सम्मान करने वाला होना चाहिए जिससे समाज, देश, राजनीतिक पार्टी सभी को प्रतिभा का लाभ मिल सके। हम सभी आचार्य चाणक्य द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य के निर्माण की कहानी को पसंद करते हैं, परंतु सार्वजनिक जीवन में जब हमें अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ बनाना होता है तो हम द्रोण बनने से नहीं हिचकते, इस प्रवृत्ति का त्याग होना चाहिए।