भाजपा को तेल की धार का इंतजार

रवि भोई

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के भीतर ढाई-ढाई साल का फार्मूला जिन्न की तरह आता है, फिर वैसा ही लुप्त हो जाता है। जून में कांग्रेस सरकार को ढाई साल हो जाएंगे, ऐसे में कहा जा रहा है यहाँ भाजपा तेल देखो, तेल की धार देखो, कहावत की तर्ज पर कदम बढ़ा रही है। वह मानकर चल रही है कि जून के बाद यहां खिचड़ी तो पकेगी। चर्चा है कि राज्य के एक कद्दावर ओबीसी नेता पर भाजपा के रणनीतिकार निगाह लगाए हुए हैं, बताया जाता है कि ओबीसी नेता की भाजपा वालों से दो बार मुलाक़ात भी हो चुकी है। यह नेता जिस वर्ग से आते हैं, उसका बड़ा वोट बैंक है, 2018 के पहले तक इस वर्ग के वोट पर भाजपा का ही कब्जा हुआ करता था। भाजपा के पास वर्तमान में इस वर्ग से केवल एक ही विधायक है।
वैसे भी धारणा है कि कांग्रेस में फूट के बिना राज्य में भाजपा की नैय्या पार नहीं लगती। कांग्रेस के गढ़ छत्तीसगढ़ में पार्टी से स्व. विद्याचरण शुक्ल अलग हुए तो 2003 में भाजपा आई। 2008 और 2013 में भाजपा की जीत का कारण बहुत हद तक कांग्रेस के भीतर की आग को माना जाता है। यह अलग बात है कि 2018 में स्व. अजीत जोगी का जादू नहीं चल पाया और भाजपा में गुस्से का गुबार फट पड़ा। 2023 में जीत की फसल के लिए भाजपा ने जमीन की जुताई शुरू कर दी है। नए राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में नेताओं को कई नसीहत भी दे गए हैं।

बिलासपुर में गंगा उल्टी
बिलासपुर को छत्तीसगढ़ का न्यायधानी कहा जाता है, पर कहते हैं न्यायधानी में ही न्याय के लिए जनता दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर हो रही है। लोग सबसे ज्यादा निचले स्तर के राजस्व अमले से परेशान बताए जाते हैं। यहां चर्चा है कि राजस्व अमला तो जिला प्रशासन से ऊपर है। याने गंगा उल्टी बह रही है। आम जनता ही नहीं, कांग्रेस के लोग भी राजस्व अमले से त्राहिमाम कर रहे हैं। राजस्व अमले की शिकायत लेकर कुछ लोग जिला प्रशासन के वरिष्ठ अफसरों से मिले थे। एक अफसर तो पीड़ितों के सामने एक्शन में आए और तत्काल ही जनता के दुख-दर्द दूर करने का फरमान भी दिया। लेकिन राजस्व अमले के दफ्तर में उनकी ख़ुशी काफूर हो गई। वहां तैनात लोगों ने साफ़ कह दिया, वे तो वही करेंगे, जो उन्हें पसंद होगा। जिला प्रशासन में बैठे लोगों के फरमान तो आते रहते हैं। कहा जा रहा है बिलासपुर के राजस्व अमला पर प्रदेश के एक मंत्री की कृपा है। जब प्रभु की कृपा हो, तो फिर किसी को डर काहे का।

असम में गला तर करने का आनंद
असम में चुनाव प्रचार के लिए गए छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता और कार्यकर्त्ता लोगों को कितना मोल्ड कर पा रहे हैं, यह तो चुनाव नतीजों से ही पता चलेगा। लेकिन वहां चुनाव प्रचार के लिए गए नेता और कार्यकर्त्ता गदगद बताए जाते हैं। खुश इस बात से नहीं हैं कि प्रचार के बहाने उन्हें असम घूमने का मौका मिल गया या फिर उनकी वहां खूबआवभगत हो रही है, उनके चेहरे खिलने का राज कुछ अलग ही है। कहते हैं वे वहां गला तर करने का आनंद उठा रहे हैं। वह भी सस्ते में और बिना रोक-टोक के। जो सामान छत्तीसगढ़ में 1500 -2000 रुपए में मिलता है, वह वहां आसानी से 500 में ही मिल जा रहा है, ऐसे में दिल खोलकर गला तर करने का लुत्फ़ उठाना लाजिमी है।

सरकार से पहले संगठन में पद की कवायद
कहते हैं निगम-मंडलों में बचे पदों पर नियुक्ति से पहले अब कांग्रेस संगठन में रिक्त पदों को भरा जाएगा। संगठन में महामंत्री, सचिव और कई प्रकोष्ठों-विभागों में पद खाली हैं। कुछ संगठन और सत्ता के दोहरे भार में हैं। एक पद के सिद्धांत पर स्वाभाविक है वे संगठन का ही पद छोड़ेंगे। कहा जा रहा है कि संगठन में सौ-सवा सौ नियुक्तियां होनी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम की दो दिन पहले अचानक दिल्ली यात्रा से संगठन में नियुक्ति की हवा तेज हो गई है। चर्चा है कि डेढ़ दशक के संघर्ष के बाद भी अब तक पद न मिलने से मुरझाए चेहरों में रौनक लाने के लिए कुछ लोगों को संगठन में पद देने की कवायद में पार्टी लगी है। मानकर चला जा रहा है कि पांच राज्यों का चुनाव या फिर राष्ट्रीय स्तर पर संगठन चुनाव निपटने के बाद ही निगम-मंडलों में नियुक्ति की अगली लिस्ट निकलेगी।

अकबर के कंधे सीमेंट का बोझ
छत्तीसगढ़ में सीमेंट बनाने वाली कई छोटी-बड़ी कंपनियां हैं, पिछले कुछ दिनों से सीमेंट के लिए हाहाकार मचा हुआ था। लोगों को सीमेंट मिल नहीं रहा था। मिल भी रहा था तो ऊँचे दाम पर। सीमेंट की किल्लत से आम लोग ही नहीं, बल्कि केंद्र और राज्य सरकार की निर्माण एजेंसियों को भी दो-चार होना पड़ रहा था। माहौल ऐसा हो गया था कि लोगों को कोटा-परमिट के दिन याद आने लगे थे। यह स्थिति बनी थी सीमेंट कंपनियों और ट्रांसपोर्टरों के विवाद के चलते। डीजल के दाम बढ़ने की वजह से ट्रांसपोर्टर परिवहन की दरें 25 फीसदी तक बढ़ाने के लिए कंपनियों पर दबाव बनाए हुए थे। सीमेंट कंपनियां इसके लिए तैयार नहीं थी। वे संयंत्र में ताला लगाने के मूड में आ गए थे। एक नामी कंपनी ने तो उत्पादन बंद ही कर दिया। यहाँ से सीमेंट अन्य राज्यों में भी जाता है, ऐसे में हल्ला-गुल्ला बढ़ने के मद्देनजर असम से लौटते ही परिवहन मंत्री मोहम्मद अकबर ने विवाद सुलझाने का भार अपने कंधे पर ले लिया। अकबर ने सीमेंट कंपनियों के प्रतिनिधियों और ट्रांसपोर्टरों की बैठक लेकर विवाद सुलझा दिया। कहते हैं 12 फीसदी पर बात बनी,पर कुछ लोग सीमेंट कंपनियों और ट्रांसपोर्टरों के विवाद की कहानी कुछ और ही बता रहे हैं। चर्चा है कि कुछ लोग सीमेंट कंपनियों से तेल निकालना चाहते थे। वह हो नहीं पाया तो परिवहन दर का दांव चला गया। दांवपेंच से स्थिति बिगड़ते देख सरकार को मैदान में कूदना पड़ा।

अप्रैल में कलेक्टर-एसपी की लिस्ट?
चर्चा है भूपेश सरकार होली के बाद कलेक्टर-एसपी की एक लिस्ट जारी कर सकती है। मई 2020 में सरकार ने कलेक्टरों के व्यापक तबादले किए थे। मई 2020 की सर्जरी में बचे कलेक्टरों के इस बार इधर-उधर होने की खबर है। वहीँ एक साल वाले भी कुछ बदल जाएंगे। कुछ जिलों के कलेक्टर और मंत्री में पटरी नहीं बैठ रही है, उनका हटाना तय माना जा रहा है। खबरों के मुताबिक करीब दस जिलों के कलेक्टर प्रभावित हो सकते हैं। एसपी की ट्रांसफर लिस्ट बनने की भी खबर है। विधानसभा सत्र के कारण यह रोक दी गई थी। होली के बाद कई जिलों को नए कप्तान मिल सकते हैं।

लीजेंड्स क्रिकेट मैच से मंत्री की दूरी
कहते हैं राज्य के एक मंत्री गुस्से में लीजेंड्स क्रिकेट मैच ही देखने नहीं गए। राज्य में खेलकूद कराने का जिम्मा खेल विभाग का ही होता है, लेकिन रोड सेफ्टी से जुड़े होने के कारण लीजेंड्स क्रिकेट मैच के आयोजन का कर्ताधर्ता परिवहन विभाग रहा। वैसे इस आयोजन के लिए खेल विभाग ने आयोजकों से मैदान की फ़ीस और साफ-सफाई का खर्च वसूल ही लिया, रियायत देने से मना कर दिया। आईपीएल के वक्त भी आयोजकों से फ़ीस ली गई थी। चर्चा है कि मंत्री जी उचित सेवा सत्कार न मिलने से खफा हो गए और मैच देखने न जाने का फैसला कर लिया।
(लेखक, छत्‍तीसगढ़ के वरिष्‍ठ पत्रकार है।)

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