रवि भोई
आमतौर से संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ शिकायतों को पुलिस संज्ञान में नहीं लेती है, लेकिन छिंदवाड़ा पुलिस ने छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके के खिलाफ शिकायत लेकर जाँच शुरू कर दी है। बताया जाता है गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के कार्यवाहक जिला अध्यक्ष कपिल सोनी ने छिंदवाड़ा कोतवाली में सुश्री उइके के खिलाफ प्रोटोकाल के उलंघन की शिकायत की है। शिकायत की जांच छिंदवाड़ा के एडिशनल एसपी को सौंपी गई है। कहते हैं एडिशनल एसपी ने 25 फ़रवरी को दस्तावेजों के साथ शिकायतकर्ता को तलब भी किया था। कहा जा रहा है शिकायत का मुद्दा बड़ा नहीं है, पर शिकायत के पीछे के कारणों की तलाश जरूरी है। जांच में ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ हो जायेगा।
1991 में हीरा सिंह मरकाम के नेतृत्व में गठित गोंडवाना गणतंत्र पार्टी आदिवासी वर्ग और उनकी राजनीति के लिए काम करती है। गोंगपा का राजनीतिक प्रभाव महाकौशल और मालवा अंचल के साथ छत्तीसगढ़ के बिलासपुर संभाग में माना जाता है। राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके छिंदवाड़ा जिले की निवासी और आदिवासी वर्ग से हैं। ऐसे में शिकायत के राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं।
गृहमंत्री और पुलिस महकमा
कहते हैं गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को पुलिस महकमे में जैसा तवज्जो मिलना चाहिए, वैसा नहीं मिल रहा है। पुलिस विभाग के भूमिपूजन और दूसरे कार्यक्रमों में गृहमंत्री को याद नहीं किया जा रहा है, वहीँ विधानसभा में जवाब की तैयारी की ब्रीफिंग में भी बड़े पुलिस अफसरों की अनुपस्थिति चर्चा का विषय है। खबर है कि ब्रीफिंग को भाव न देने वाले अफसरों पर गृहमंत्री की तल्खी के बाद माहौल कुछ बदला है। आमतौर पर विधानसभा में ज्यादातर स्थगन और ध्यानाकर्षण के प्रस्ताव पुलिस महकमे से जुड़े होते हैं और जवाब गृहमंत्री को देने पड़ते हैं। ऐसे में सदन में उत्तर के लिए अफसरों को गृहमंत्री का ‘आँख’ और ‘कान’ माना जाता है। लेकिन छत्तीसगढ़ में गृहमंत्री को ‘बिना नाख़ून वाला शेर’ कहा जा रहा है, क्योंकि नई व्यवस्था में गृहमंत्री के पास व्यापक अधिकार बचे नहीं है। कई कामों के लिए डीजीपी पर निर्भर रहना पड़ता है तो कई कामों के लिए मुख्यमंत्री से आग्रह करना पड़ता है। गृहमंत्री के पास आईपीएस की पोस्टिंग की फ़ाइल जाती ही नहीं है।
श्रेय लेने की होड़
दुर्ग और भिलाई के बीच रेलवे फाटक पर बना ओवरब्रिज राजनीतिक कलह का कारण बनता दिख रहा है। 71 साल पुराने ठगड़ा बांध के निकट दुर्ग से तालपुरी भिलाई की ओर जाने वाले मार्ग पर करीब 41 करोड़ की लागत से बने इस ओवरब्रिज का श्रेय लेने के लिए राज्यसभा सांसद व भाजपा की नेता सरोज पाण्डे और दुर्ग के विधायक व राज्य भंडारगृह निगम के अध्यक्ष अरुण वोरा ने वहां अपना-अपना पोस्टर चस्पा कर दिया है। दो साल के रिकार्ड समय में तैयार ओवरब्रिज का अभी उद्घाटन नहीं हुआ है। इसके शुरू होने से दुर्ग और भिलाई के लाखों लोगों को आवाजाही में आसानी होगी। ओवरब्रिज बनवाने को लेकर कांग्रेस नेताओं का अपना तर्क है तो भाजपा नेताओं का अपना। कहते हैं कि स्व. मोतीलाल वोरा ने ओवरब्रिज के लिए पहल की थी। राज्य में कांग्रेस सरकार आने पर अरुण वोरा ने भी हाथ-पैर चलाए। ओवरब्रिज बनाने की मंजूरी भारत सरकार ने दी। केंद्र में भाजपानीत सरकार है। ऐसे में श्रेय की लड़ाई लाजमी है। अब देखते हैं ओवरब्रिज बनवाने का श्रेय जनता किसे देती है?
फलते-फूलते कृषि कर्मचारी
किसानों की दशा सुधारने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। प्रयास किसानों के लिए कितने फलीभूत हो रहे हैं, यह तो सर्वे और आंकड़ों से ही पता चल पाएगा, लेकिन सरकारों के प्रयासों का प्रसाद कृषि विभाग के कर्मचारी जमकर खा रहे हैं, इसका नमूना राजनांदगांव कृषि दफ्तर में काम करने वाले सहायक ग्रेड के एक कर्मचारी के जलवे से झलकता है। कहते हैं यह कर्मचारी 70 एकड़ जमीन और 25 गायों की एक डेयरी का अघोषित मालिक है। 15 साल से राजनांदगांव में पदस्थ इस कर्मचारी के लिखे को कोई काट नहीं सकता है और न ही उसकी सहमति के बिना कोई फैसला ले सकता है। कहा जाता है इस कर्मचारी को राजनांदगांव की चाशनी इतनी भा गई है कि उसने प्रमोशन पर बेमेतरा जाना भी ठुकरा दिया।
क्या पीएचई में दो सचिव रहेंगे?
2005 बैच के आईएएस अफसरों के प्रमोशन के बाद लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचई) में अब दो सचिव हो गए हैं। 2003 बैच के आईएएस सिद्धार्थ कोमल परदेशी पहले से पीएचई के सचिव हैं। 2005 बैच के एस. प्रकाश पीएचई के विशेष सचिव और जल जीवन मिशन के संचालक थे। प्रमोशन के बाद भी सरकार ने उन्हें उसी पद पर बनाए रखा है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार पीएचई में सचिव स्तर के दो अफसरों को बनाए रखना चाहती है या फिर जल्द बदलाव करेगी। जल जीवन मिशन के तहत गांवों में पानी पहुँचाने की टेंडर प्रक्रिया से बवाल के बाद सरकार ने एस. प्रकाश को मिशन संचालक बनाया था। छत्तीसगढ़ कैडर के 2005 बैच के सात में से छह अफसर सचिव बन गए हैं। जाँच के चलते इस बैच के अफसर राजेश टोप्पो को सरकार ने सचिव नहीं बनाया।
पुलिस अफसर के काम का नया अंदाज
भारतीय प्रशासनिक और राज्य सेवाओं के अफसर इधर से उधर होते रहते हैं। कहीं सीनियर अफसर जूनियर को चार्ज देता है, तो कहीं लेता है। ऐसा ही जूनियर अफसरों और एक ही बैच वालों के साथ भी होता है, लेकिन कोई किसी के काम के बारे में सार्वजानिक तौर पर कुछ नहीं कहता या मीन-मेख नहीं निकालता। लेकिन राज्य में पुलिस महकमे में एक अफसर अपने से सीनियर से चार्ज लेने के बाद उनके कार्यकाल के काम की जांच का फरमान जारी कर सुर्ख़ियों में आ गए हैं। हर अफसर के काम करने का अपना अंदाज होता है। शायद वे भी अपने अंदाज से काम कर रहे हैं। कहते हैं दोनों ही पुलिस महकमे के वरिष्ठ अफसर हैं और अलग-अलग विंग के मुखिया भी। अब देखते हैं सरकार इसे किस रूप में लेती है।
उद्योगपतियों की उड़ी नींद
‘सी-फार्म’ के चक्कर में आजकल राज्य के करीब दो दर्जन से अधिक छोटे-बड़े उद्योगपतियों की नींद उडी हुई है। सी-फार्म’ राज्य का वाणिज्यिक कर विभाग जारी करता है। इस फार्म के आधार पर उद्योगपति औद्योगिक गतिविधियों और खनन कार्य के लिए, जिन राज्यों में ‘वैट’ की दरें कम है, वहां से डीजल खरीद सकते है। इससे उद्योगपतियों को कुछ बचत और कुछ मुनाफा हो जाता है। केंद्र सरकार ने ही उद्योगपतियों को यह छूट दी है। कहा जा रहा है वाणिज्यिक कर विभाग ने राज्य को नुकसान का हवाला देकर करीब दो महीने से ‘सी-फार्म’ जारी करना बंद कर दिया है और कुछ शर्तें भी रख दी हैं। उद्योगपतियों ने सरकार के नुमाइंदों से बात की, लेकिन अब तक राहत नहीं मिली है। बिना ‘सी-फार्म’ के तेल कंपनियों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। इससे खनन कार्य पर असर पड़ा है। कहते हैं नुकसान सहने की जगह दो उद्योगपतियों ने वाणिज्यिक कर विभाग की शर्तें मान लीं। इसमें एक रायपुर और एक कोलकाता का उद्योगपति है, जो छत्तीसगढ़ में एक बड़ी कंपनी के लिए खनन का ठेका लिए हुए था। चर्चा है कि कोलकाता का उद्योगपति अब यहाँ से अपना काम ही समेटने की तैयारी में है। दूसरी तरफ कुछ अन्य उद्योगपति शर्त मानने की जगह हाईकोर्ट जाने के मूड में हैं।
अंत में अपनी बात
पिछले हफ्ते मैंने अपने इसी कालम में दादा साहब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड्स
कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ की एक महिला आईएएस के गेस्ट बनने की जानकारी दी थी। महिला आईएएस का कहना है- ‘’दादा साहब फाल्के अवार्ड्स का आयोजन सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा स्थापित संगठन फिल्म महोत्सव निदेशालय ने किया था। आयोजन हर साल होता है। सरकारी कार्यक्रम था, केबीसी जैसा नहीं था। सरकारी आयोजन के नाते वे गईं। जाने के लिए विभाग के सचिव ने अनुमति दी थी।”
(लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।