श्रेय की लड़ाई नई नहीं है भाई

राकेश अचल

विकास कार्यों का श्रेय लूटने की लड़ाई मध्यप्रदेश में भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले ग्वालियर में शुरू हो गयी है। सत्तारूढ़ दल भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता असमंजस में हैं कि ग्वालियर से मुंबई के लिए विमानसेवा शुरू करने का श्रेय किसे दें? इस काम के लिए स्थानीय सांसद विवेक नारायण शेजवलकर और राज्य सभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच अघोषित तकरार चल रही है। दोनों का दावा है कि इस काम के लिए खतो-किताबत सबसे पहले उनकी ओर से की गयी।

दरअसल पिछली सदी में ग्वालियर के विकास के मसीहा का ताज ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्वर्गीय पिता माधवराव सिंधिया के सर पर बंधा था। ग्वालियर को देश की मुख्यधारा में लाने का श्रेय भी उन्हें ही दिया गया, लेकिन ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से सिंधिया का नाता टूटने के बाद ग्वालियर के विकास के मसीहा आज के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर बन गए। प्रदेश में लगातार पंद्रह साल भाजपा की सरकार रहने के कारण ग्वालियर में जो कुछ नया जुड़ा उसका श्रेय तोमर ने अपने खाते में डाल लिया। मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने तक नरेंद्र सिंह तोमर न केवल ग्‍वालियर बल्कि पूरे अंचल में विकास के मसीहा बने हुए थे।

प्रदेश से साल भर पहले उखड़ चुकी भाजपा को दोबारा सत्ता में लाने के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया अघोषित रूप से भाजपा के लिए नरेंद्र सिंह तोमर के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। भाजपा में आने और राज्य सभा के लिए चुने जाने के बाद सिंधिया ग्वालियर को लेकर अचानक बेहद सक्रिय हो गए। पिछले तीन महीने से नरेंद्र सिंह तोमर किसान आंदोलन में उलझने के कारण ग्वालियर के मामलों से अपने आप दूर हो गए। स्थानीय सांसद विवेक शेजवलकर हालांकि लिखा-पढ़ी के मामले में सांसद बनने के बाद से ही सक्रिय हैं लेकिन सिंधिया की सक्रियता के बाद वे पिछड़ते दिखाई देने लगे हैं।

ग्वालियर में व्यापार मेले के आयोजन का मामला हो या शहर के समग्र विकास का मामला, सिंधिया हर छोटे-बड़े विषय में बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। चूंकि उनके कोटे से प्रदेश में एक दर्जन से अधिक मंत्री भी हैं इसलिए वे ग्वालियर में जब चाहे तब स्थानीय प्रशासन की क्लास भी लेते रहते हैं। ग्वालियर में अब सिंधिया के मुकाबले का कोई दूसरा नेता है भी नहीं। स्थानीय सांसद शेजवलकर सांसद बनने से पहले ग्वालियर के महापौर थे और तब भी वे सिंधिया के सामने नतमस्तक रहते थे। अब तो सिंधिया की स्थिति ही बदल गयी है।

भाजपा में प्रवेश के बाद कहने को सिंधिया अपने आपको एक आम कार्यकर्ता की तरह प्रस्तुत कर रहे हैं, लेकिन उनका अंदाज आज भी किसी केंद्रीय मंत्री से कम नहीं है। अब जयविलास महल का रानी महल वाला भाग एक बार फिर से आबाद हो गया है। शेजवलकर के कार्यालय पर लगने वाली भीड़ नदारद है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह के शासकीय बंगले पर लगने वाली भीड़ में भी अब पहले के मुकाबले कमी आयी है। राज्‍यसभा के सदस्य रहे प्रभात झा ने भी ग्वालियर में सरकारी बंगला हासिल कर लिया है, लेकिन वे अब ग्वालियर के मामलों में अक्सर मौन ही रहने लगे हैं। वे सिंधिया के सामने आकर अपना भविष्य चौपट करना नहीं चाहते, हालाँकि एक समय में उन्होंने सिंधिया का विरोध करके ही अपनी छवि चमकाने में कामयाबी हासिल की थी।

हाल ही में संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान विधेयकों पर विपक्ष के हमलों के जवाब में सिंधिया की तारीफ़ कर संकेत दे दिए हैं कि वे आज भी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण नेता हैं। सिंधिया समर्थकों को लगता है कि ग्वालियर के विकास का मसीहा बनने की क्षमता ग्वालियर के किसी दूसरे भाजपा नेता में है भी नहीं। सिंधिया का अपना आभा मंडल तो है ही साथ ही एक केंद्रीय मंत्री के रूप में पुराना अनुभव और जान-पहचान का दायरा भी है। वे वक्तृत्‍व कला में भी नरेंद्र सिंह तोमर पर इक्कीस ही बैठते हैं। नौकरशाही को नचाना उन्हें खूब आता है।

पिछले दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी सिंधिया के साथ ग्वालियर के विकास से जुड़े लंबित मामलों को लेकर अनेक बैठकें कीं और अनेक रुकी हुई परियोजनाओं के अवरोध दूर किये। इन बैठकों में सिंधिया ही सिंधिया हावी नजर आये। मजे की बात ये है कि नरेंद्र सिंह तोमर विकास की मसीहाई को लेकर शांत हैं। वे सिंधिया से किसी तरह का टकराव नहीं चाहते। उन्हें पता है कि सिंधिया चाहे कांग्रेस में रहें या भाजपा में, वे सिंधिया हैं और उनके सामने टिकना आसान नहीं है। वैसे भी तोमर महल के समर्थन से ही राजनीति में नीचे से ऊपर तक पहुंचे हैं। आने वाले कुछ दिनों में विकास के श्रेय को लेकर स्थानीय सांसद और सिंधिया के अलावा नरेंद्र सिंह तोमर में भी तलवारें खिंचेंगी या सबके सब सिंधिया के सामने हथियार डाल देंगे ये तय हो जाएगा। महापौर पद के प्रत्याशी के चयन में किसकी क्या भूमिका रहती है ये भी देखने की बात है।

ग्वालियर में शेजवलकर को छोड़ अब कोई पुराना नेता भाजपा के पास नहीं है। तोमर, डॉ. नरोत्तम मिश्रा, खुद भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा नयी पीढ़ी के नेता हैं। किसी के पास सियासत की कोई विरासत भी नहीं है। इसलिए भी सबके सब सिंधिया से हट-बच के रहना चाहते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो 2018 के चुनाव में महाराज बनाम शिवराज का स्वाद चख ही चुके हैं। वे अब छाछ भी फूंककर पीने लगे हैं।

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