गिरीश उपाध्याय
मध्यप्रदेश के सीधी में हुए सड़क हादसे ने एक बार फिर राज्य में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं से लेकर सड़कों की दुर्दशा, सार्वजनिक परिवहन की स्थिति, परिवहन विभाग के अमले की लापरवाहियों और वाहनों के रखरखाव जैसे मुद्दों को रेखांकित किया है। सीधी हादसे में एक यात्री बस नहर में गिर जाने से 51 लोगों की मौत हुई। मरने वालों में ज्यादातर वो लोग थे जो नौकरी के लिए परीक्षा देने जा रहे थे।
हादसे के बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने घटनास्थल का दौरा किया और पीडित परिवारों से मिलकर उन्हें ढाढस बंधाया। सरकार ने मृतकों के परिवारों को आर्थिक सहायता देने के साथ साथ संबंधित आरटीओ और सड़क विकास निगम के तीन अधिकारियों को निलंबित करने और मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने के भी आदेश दिए हैं। इस बीच परिवहन विभाग ने एक बार फिर वाहनों की चैकिंग करने, उनकी फिटनेस जांचने आदि का अभियान चलाने का ऐलान किया है।
जब भी कोई बड़ी दुर्घटना होती है तात्कालिक तौर पर ये सारी बातें एक कर्मकांड की तरह होती ही हैं। लेकिन उसके बाद सब कुछ अपने पुराने ढर्रे पर लौट आता है। सीधी हादसे की प्रारंभिक जांच को लेकर जो आधिकारिक बयान आए हैं उनमें इसे मानवीय गलती के कारण हुई दुर्घटना बताया गया है। पुलिस ने बस के ड्रायवर को गिरफ्तार कर लिया है और उससे पूछताछ भी हो रही है। हो सकता है पूछताछ और जांच में दुर्घटना का कोई और कारण भी सामने आ जाए।
लेकिन बड़ी बात यह है कि प्रदेश में सार्वजनिक परिवहन की हालत दिनों दिन खराब होती जा रही है। जब से मध्यप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम बंद हुआ है, सड़क के जरिये यात्रा करने वाले लोग, निजी परिवहन साधनों से यात्रा करने को मजबूर हैं। साधन संपन्न लोग तो अपने स्वयं के वाहनों से यात्रा कर लेते हैं, लेकिन गरीब और साधनहीन लोग यात्रा के लिए इन्हीं निजी वाहनों का सहारा लेने को मजबूर होते हैं।
मध्यप्रदेश में सड़क से यात्रा करना लोगों की मजबूरी इसलिए भी है कि आज भी यहां के कई इलाके पुख्ता और पर्याप्त रेल सुविधा से वंचित हैं। जब सरकारी परिवहन की बसें चला करती थीं तो लोगों के पास एक विकल्प होता था। लेकिन उनके न रहने से यात्री निजी बस सर्विस वालों के पास जाने को मजबूर हैं। राजमार्गों और अन्य महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ने वाली सड़कों पर तो फिर भी निजी बस मालिक ठीक ठाक बसें चलाते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इन बस सेवाओं का बहुत बुरा हाल है।
ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली बसों में न तो परिवहन नियमों का पालन होता है और न ही बसों का नियमित रखरखाव। ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में यात्रियों की संख्या भी वाहन की क्षमता से दो-तीन गुना हो जाती है। ऐसे में दुर्घटनाओं का खतरा और बढ़ जाता है। कायदे से परिवहन और पुलिस विभाग को ऐसे मामलों में नियमित मॉनिटरिंग के साथ कार्रवाई भी करनी चाहिए लेकिन यह कार्रवाई भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है।
एक बड़ा मामला सड़कों के रखरखाव का भी है। ग्रामीण इलाकों में सड़कों से लेकर पुल पुलियों तक के रखरखाव पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना दिया जाना चाहिए। इसके लिए धन की कमी अपनी जगह है, लेकिन उसके अलावा भी यदि नियमित रूप से जांच और निगरानी होती रहे तो ऐसे हादसों को काफी हद तक टाला या कम किया जा सकता है। कोरोना काल में सड़कों और पुल पुलियों के रखरखाव के काम की और भी ज्यादा उपेक्षा हुई है। अब इस काम को युद्धस्तर पर पूरा किया जाना चाहिए। लॉकडाउन की अवधि में भी पलायन करते मजदूर ऐसी सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए थे और अब लॉकडाउन खुलने के बाद भी सड़कें सुरक्षित नहीं हैं।
चूंकि कोरोना के चलते परिवहन की सुविधाएं अभी पूरी क्षमता के साथ संचालित होना शुरू नहीं हुई हैं, इसलिए इस दिशा में बहुत ज्यादा सावधानी बरते जाने की जरूरत है। ट्रेन सेवाएं पूरी क्षमता के साथ न चलने से सड़क यात्रा पर बहुत ज्यादा दबाव आ गया है। चूंकि सड़कों पर यात्री बसें अभी उतनी संख्या में नहीं है इसलिए यात्री न चाहते हुए भी क्षमता से अधिक भरी जाने वाली बसों में यात्रा करने को मजबूर हैं। यात्रा करना पारिवारिक कारणों के साथ साथ आजीविका संबंधी कारणों से भी जुड़ा है। लोग कोरोना काल में छिन गए रोजगार के कारण आजीविका तलाशने दूसरी जगहों पर जाने को मजबूर हैं। सीधी दुर्घटना का शिकार हुए ज्यादातर लोग अपनी नौकरी के सिलसिले में ही जा रहे थे।
मुख्यमंत्री ने दुर्घटना के तत्काल बाद अधिकारियों को सख्त चेतावनी देते हुए सुरक्षित यात्रा के हरसंभव उपाय करने को कहा है। लेकिन इन निर्देशों का जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन जब तक नहीं होगा तब तक सीधी जैसी दुर्घटनाओं की आशंका हमेशा बनी रहेगी। सड़क यातायात और परिवहन को सुगम बनाने के लिए एक ओर राजमार्गों पर फास्टैग जैसी व्यवस्थाएं अनिवार्य की जा रही हैं और दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में यात्री बसों का सड़कों पर सामान्य गति से चलना भी दूभर है। यात्रा के इस विरोधाभास को जितनी जल्दी हो सके, दूर करने की कोशिश होनी चाहिए। जीवन और समय सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्गों पर चलने वालों का ही नहीं, गांव कस्बों की कच्ची-पक्की सड़कों पर चलने वालों का भी उतना ही कीमती है।