राकेश अचल
सीधी बस हादसे में मरने वाले चार दर्जन से अधिक यात्रियों की मौत के बाद मृतकों के परिजनों को मुआवजे और कथित दोषियों के निलंबन की घोषणा हो गयी। बस चालक भी गिरफ्तार हो गया, मामले की जांच का ऐलान भी कर दिया गया, लेकिन इस हादसे से जुड़े टेढ़े सवालों के सीधे जवाब देने के लिए अब तक कोई सामने नहीं आया है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या प्रदेश में इस मर्माहत कर देने वाले हादसे के बाद प्रदेश की सरकार और जनता चेतेगी?
जब मैं ऐसे किसी हादसे के बारे में लिखता हूँ तो मुझे सरकार विरोधी समझा जाता है, क्योंकि मुझे सवाल करने की आदत है। बिना सवाल किये कोई हल निकलता भी नहीं है, लेकिन मुश्किल ये है कि पिछले कुछ दिनों से देश की ज्यादातर सरकारों को सवाल सुनने की आदत नहीं है और सवाल करने वाले लोग सरकार को देशद्रोही लगते हैं। सीधी बस हादसे से जो सवाल वाबस्ता हैं वे प्रदेश की परिवहन नीति और सरकार की नीयत को उजागर करने वाले हैं।
करीब साढ़े सात करोड़ की आबादी वाले मध्यप्रदेश में पिछले कई दशकों से कोई सरकारी बस सेवा नहीं है। मध्यप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम को वर्षों पहले विघटित कर दिया गया था, तब से अब तक इसका कोई विकल्प सरकार तलाश नहीं कर सकी। प्रदेश की एक लाख उन्नीस हजार किमी सड़कों के लिए आवागमन का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है। प्रदेश का समूचा परिवहन निजी बस ऑपरेटरों के हाथों में है। ये निजी बस ऑपरेटर कैसे बसों का संचालन करते हैं ये सीधी बस हादसे से उजागर हो चुका है। जाहिर है कि किसी बस के पास फिटनेस नहीं है तो किसी के पास बीमा नहीं है। यानि मध्यप्रदेश में आप बस से सवारी अपनी जान हथेली पर रखकर करते हैं।
दूसरे राज्यों से अजब मध्यप्रदेश में राज्य परिवहन निगम बंद हुए डेढ़ दशक से ज्यादा हो चुका है लेकिन प्रदेश की उदार सरकार अब तक निगम के तीन सौ लोगों को पगार दे रही है। इन तीन सौ में से 120 को इधर-उधर दूसरे विभागों में पदस्थ कर दिया गया है। इस बंद निगम के अमले को बिना काम के छह करोड़ रुपये देने हैं, वित्त विभाग हाथ खड़े कर चुका है। परिवहन विभाग निगम की बेशकीमती जमीनें कौड़ियों के दाम बेचने में लगा हुआ है। परिवहन विभाग की नौकरशाही और बाबूराज सीधी हादसे के लिए सीधे जिम्मेदार हैं लेकिन आप किसी से कुछ कह नहीं सकते।
सीधी बस दुर्घटना में वे लोग मारे गए हैं जो मिडवाइफ तथा नर्स की परीक्षा देने जा रहे थे। परीक्षार्थियों के साथ अनेक के अभिभावक भी थे। जो सात-आठ लोग बचे हैं वे खुशनसीब थे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक संवेदनशील व्यक्ति की तरह पीड़ितों के बीच पहुंचे और उन्हें ढाढस बंधाया। मुख्यमंत्री इतने दुखी हुए कि उन्होंने अनेक सरकारी कर्मचारियों को निलंबित भी कर दिया लेकिन इस सबसे मरने वालों की घर वापसी तो मुमकिन नहीं हो जाएगी। मध्यप्रदेश में संचालित कुल बसों की तादाद 773 है जिनमें से भी मुश्किल से 150 यात्री बसें चल रही हैं। सवाल ये है कि क्या इतनी यात्री बसें प्रदेश की आबादी की जरूरत के हिसाब से पर्याप्त हैं?
सवाल ये भी है कि प्रदेश कि भाजपा सरकार ने इस गंभीर मामले में अब तक कुछ सोचा क्यों नहीं? सब कुछ राम भरोसे क्यों चल रहा है? क्यों लोगों को भेड़-बकरियों की तरह यात्रा करने के लिए विवश किया जा रहा है। कोरोनाकाल में प्रदेश की बस सेवा पूरे छह माह बंद रही और जब लॉकडाउन खुला तब जनता मजबूरन खटारा बसों से यात्रा करने के लिए विवश हुई। सीधी का हादसा भी इसका एक कारण है। दुर्भाग्य ये है कि गांवों में तो दूर, शहरों तक में सरकार यात्री बसों का इंतजाम नहीं कर पायी। उलटे जिन शहरों को स्मार्ट सिटी योजनाओं में शामिल किया था उनमें भी नगर बस सेवाएं सुचारू रूप से शुरू नहीं हो पाईं जबकि बसें आने से पहले शहरों में बसअड्डे थोक में बना दिए गए।
सीधी के इस हादसे के बाद प्रदेश के परिवहन मंत्री की न नैतिकता जागी और न अंतरात्मा। सो वे शोक जताकर घर बैठ गए, इस्तीफा देने का तो सवाल ही नहीं। बड़ी मुश्किल से तो मंत्री पद मिला है। हास्यास्पद ये है कि इस हादसे की जांच एक डिप्टी कमिश्नर करेगा। जिस मामले में जिम्मेदारी परिवहन आयुक्त तक की साबित की जाना है, उस मामले में एक डिप्टी कमिश्नर क्या कर पायेगा, आप खुद सोच सकते हैं। इस हादसे के बाद जो सरकारी अमला निलंबित किया गया है वो 90 दिन बाद अपने आप बहाल हो जाएगा, क्योंकि इस बीच अधिकांश को आरोप पत्र तक नहीं दिए जा सकेंगे। नब्बे दिन बाद मृतकों के परिजनों के अलावा सब इस हादसे को भूल ही जायेंगे।
ये आलोचना का विषय नहीं है कि घनी आबादी वाले प्रदेश को सार्वजनिक परिवहन सुविधा की जितनी ज्यादा आवश्यकता है उसे सरकार पूरी तरह अनदेखा किए हुए है। सरकार की परिवहन नीति भी निजी बस ऑपरेटरों को गुणवत्ता वाली बस सेवा उपलब्ध कराने के लिए प्रेरित नहीं करती। परमिट सिस्टम में तो छेद पहले से हैं ही। ऐसे में मध्यप्रदेश में रोज यात्री बसें हादसों का शिकार हों तो कोई हैरानी की बात नहीं है।
मध्यप्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। लेकिन आंकड़े कहते हैं कि दुर्घटनाएं कम हुई हैं। प्रदेश में जून 2019 की तुलना में जून 2020 में सड़क दुर्घटनाओं में 20.60 प्रतिशत की कमी आई है। पिछले साल जून में 4 हजार 582 सड़क दुर्घटनाएं हुईं थीं। इसकी तुलना में इस वर्ष 944 दुर्घटनाओं की कमी के साथ 3 हजार 638 सडक दुर्घटनाएं हुईं। घायलों की संख्या में भी 24.28 प्रतिशत की कमी आई। गत वर्ष सड़क दुर्घटनाओं में 4 हजार 712 लोग घायल हुए थे, जबकि इस वर्ष कुल 3 हजार 568 लोग घायल हुए। इस प्रकार गत वर्ष की तुलना में घायलों की संख्या में 1144 की कमी हुई है। मृतकों की संख्या में भी 3.46 प्रतिशत की कमी रही।
जहां तक भारत की बात है तो भारत के आज तक के युद्धों में जितने सैनिक शहीद नहीं हुए, उससे ज्यादा लोग सड़कों पर दुर्घटना में एक साल में मारे जाते हैं, इसलिए चिंतित सुप्रीम कोर्ट को यहां तक कहना पड़ा कि देश में इतने लोग सीमा पर या आतंकी हमले में नहीं मरते जितने सडकों पर गड्ढों की वजह से मर जाते हैं। पिछले एक दशक में ही भारत में लगभग 14 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए हैं। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार भी वर्ष 2018 में वर्ष 2017 की तुलना में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में 0.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई। हमें उम्मीद करना चाहिए की सीधी बस हादसे के बाद प्रदेश की सरकार जमीनी स्तर पर सड़क सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम उठाकर अपनी गलतियों का प्रायश्चित करेगी।