जीएसटी नियम में बदलाव से व्‍यापारियों की परेशानी बढ़ी

बैतूल/ व्यापारियों की देशव्यापी संस्था 26 फरवरी को GST कानून के विरोध में देशव्यापी बन्द का आह्वान कर रही है। मप्र के चार्टर्ड अकाउंटेंट व कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स CAIT के सक्रिय सदस्य व सलाहकार सीए सुनील हिरानी ने बंद के कारणों का खुलासा करते हुए बताया कि लागू होने के बाद से ही जीएसटी कानून में लगातार बदलाव हो रहा है इसके बावजूद यह सरल होने के बजाय जटिल, उलझता हुआ और व्यापारिक समझ से परे होता जा रहा है। अब तो यह आलम है कि सीए व कर सलाहकारों को भी इस कानून में हुए बदलाव को समझना मुश्किल हो रहा है। जनवरी 2021 से जीएसटी कानून में बदलाव व बजट के अनुसार जो बदलाव हुए हैं वे व्यापारियों के लिए काफी जटिल व अव्यावहारिक हैं-

  1. जीएसटी में इस समय सबसे चर्चा में है जीएसटीआर 2A एवं जीएसटीआर 2B जो कि व्यापारियों के लिए सबसे बड़ा सरदर्द बने हुए हैं। 2A इनवर्ट सप्लाई की जानकारी वाला होता है जबकि 2B इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने से संबंधित है इसमें काफी विवाद, काफी समस्या है जो कि एक व्यापारी के लिए किसी अन्य व्यापारी से माल खरीदी करने पर एवं उसके रिटर्न भरने के लिए प्रतिबद्धता से संबंधित है। पूरी प्रक्रिया बड़ी जटिल है उस पर किसी प्रकार का कोई नियंत्रण विक्रेता का नहीं है। बावजूद इसके सरकार विक्रेता पर ही टैक्स का बोझ लादे जा रही है।

नियम 36 (4) के अनुसार अब 2A से अधिकतम इनपुट की सीमा को 10 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया गया है साथ ही इनपुट तब मिलेगी जब क्रेता ने अपनी gstr-1 दाखिल कर दी हो। बगैर दाखिल किए अब इनपुट टैक्स क्रेडिट लेना कठिन हो जाएगा। सबसे बड़ी विडंबना है कि सामने वाले पर रिटर्न भरने के लिए दबाव डालना या उस पर नियंत्रण करना हमारे लिए कैसे संभव हो सकता है।

  1. ईवे बिल की वैधता एक दिन के लिए 200 किलोमीटर तक होगी जबकि पहले 100 किलोमीटर थी। पहले ईवे बिल के प्रावधानों के उल्लंघन पर 10 परसेंट की पेनल्टी जमा करने पर अपील की जा सकती थी अब पेनल्टी व टैक्स दोनों को मिलाकर कुल 25 फीसदी जमा करने पर ही अपील की जा सकेगी।

नियम 138 (10) के अनुसार ई वे बिल में माल पहुंचाने की अवधि को कम या ज्यादा करना हो तो 4 घंटे पहले या 4 घंटे बाद, अवधि समाप्ति के पहले या बाद में बढ़ाई जा सकती है इससे ट्रांसपोर्टर, व्यापारी व इससे संबंधित लोगों को अधिक परेशानियों का सामना करना होगा।

नियम 138 E के अनुसार यदि व्यापारी के द्वारा अपनी 2 माह की जीएसटी रिटर्न दाखिल नहीं हो पाई तो उसे ई वे बिल से वंचित कर दिया जाएगा वह ई वे बिल जनरेट नहीं कर सकता।

  1. 3B व GSTR-1 में अंतर अधिक मिलता है या आईटीसी में 3B, 2A व 2B में अधिक अंतर आता है तो जीएसटी ऑफिसर को अधिकार दिया गया है कि वे ई वे बिल को ब्लॉक कर सकते हैं। नियम 21 व 21A के तहत उन्‍हें पंजीयन को रद्द या बर्खास्त करने के पावर दिए गए हैं जो व्यापारियों के हित में ना होकर विभाग के हित में अधिक लगता है।
  2. नियम 86 B के अनुसार किसी माह में कर योग्य टर्नओवर 50 लाख से अधिक होने पर उस माह के कर दायित्व का 1 फीसदी तक नगद में भरना होगा भले ही क्रेडिट लेजर में बकाया हो। इससे व्यापारियों की इनपुट ज्यादा आती हो या उसका टैक्स कम बनता हो या आने वाले समय में भी कोई कर दायित्व आधारित नहीं होता हो तो वह परेशानी वाला होगा, उन्‍हें नगद भुगतान करना होगा।
  3. सरकार की मंशा प्रारंभ से ही रिटर्न्स के फॉर्म लागू करने, उनको बार-बार चेंज करने, कभी नए फार्म की व्यवस्था करने फिर उन फॉर्म को वापस लेने की रही है। सरकार फिर एक बार रिटर्न दाखिल करने की नई स्कीम लाई है। यह छोटे व्यापारियों की सुविधा के लिए है पर इसमें भी बहुत सारी परेशानियां हैं जिन का निदान होना चाहिए जैसे-

– 5 करोड़ से अधिक के वार्षिक टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए नियम 59 (5) के अनुसार यदि किसी व्यापारी ने पिछले 2 माह की जीएसटीआर 3b दाखिल नहीं की है तो वह gstr-1 दाखिल नहीं कर पाएंगे इस नियम से जीएसटीआर 3b को 1  से जोड़ दिया गया है।

– इसी तरह 5 करोड़ से कम टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए QRMPS स्कीम लागू की गई है जो छोटे व्यापारियों के लिए तो ठीक है परंतु जिन का व्यापार बिल टू बिल रहता है उनके लिए यह फायदेमंद कम सरदर्द वाला ज्यादा है, क्योंकि इसमें टैक्स भी भरना है, इनवॉइस की प्रविष्टि भी करना है, तो फिर यह कैसा बदलाव? इसमें 13 तारीख के बाद पिछले माह के इनवॉयस की जानकारी प्रस्तुत भी नहीं की जा सकेगी।

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