रवि भोई
महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव जगजाहिर है, अब छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसूईया उइके को विगत 10 फ़रवरी को बस्तर जाने के लिए सरकार से हेलीकॉप्टर न मिल पाने को भी लोगों ने इसी कड़ी में देखना शुरू कर दिया है। वैसे बताया जाता है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत को उसी दिन अरपा उत्सव में शामिल होने के लिए पेंड्रा जाना था, इस कारण राज्यपाल को हेलीकॉप्टर नहीं मिल पाया और उन्हें नियमित फ्लाइट से बस्तर जाना पड़ा। पर लोगों का मानना है कि राजभवन और सरकार में यदि मधुर संबंध होते तो राज्यपाल को प्लेन या हेलीकॉप्टर न मिलने की घटना सामने नहीं आती। सरकार के लिए अपने संवैधानिक प्रमुख का प्रोटोकाल बनाए रखना कोई बड़ी बात नहीं है। आदिवासी समाज की महिला और पुरानी कांग्रेसी सुश्री अनुसूईया उइके का कांग्रेस सरकार से मनभेद लोगों को समझ नहीं आ रहा है। कहते हैं, धुंआ तभी उठता है, जब आग लगी हो। राजभवन में अब भी सरकार के कई विधेयक लंबित हैं। कुछ लोग इसका कारण राजभवन और सरकार के बीच छाए टकराव के बादल को मान रहे हैं। कारण जो भी हो, उम्मीद करें महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसी स्थिति यहाँ न बने।
व्यास ने बाजी मारी
बार के कोटे से सीनियर वकील नरेंद्र कुमार व्यास का छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का जज बनना सबको चौंका गया। न्यायिक सेवा कोटे से छत्तीसगढ़ विधि विधायी विभाग के प्रमुख सचिव नरेश कुमार चंद्रवंशी का हाईकोर्ट जज बनना काफी दिनों से तय माना जा रहा था। राज्य के महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा का नाम भी बार कोटे से पैनल में शामिल होने की चर्चा थी, लेकिन नरेंद्र कुमार व्यास ने बाजी मार ली। नरेंद्र कुमार व्यास राज्य में वरिष्ठ वकील होने के साथ मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल रहे। इनके पिता एच.एन. व्यास भी जाने-माने वकील थे। कहते हैं एन.के. व्यास का नाम सीधे दिल्ली से आया। बार कोटे से हाईकोर्ट जज बनाए जाने के लिए राज्यपाल, मुख्यमंत्री और हाईकोर्ट केंद्रीय विधि मंत्रालय और सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को नाम भेजते हैं। सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने नए जजों की नियुक्ति का आदेश जारी कर दिया है। अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में 13 जज हो जाएंगे। फिर भी यहाँ नौ पद खाली रहेंगे। एक जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में 70 हजार से अधिक प्रकरण लंबित हैं।
बाउंसर के बूते माइनिंग ठेका
चर्चा है कि राज्य कांग्रेस के एक बड़े नेता ने पॉलिटिकल और मसल पॉवर के बूते कांकेर जिले के आरीडोंगरी आयरन ओर (लौह अयस्क) का ठेका अपने भाई को दिलवा दिया। बताया जाता है कि इस लोहे की खदान की नीलामी ऑनलाइन की जगह ऑफलाइन हुई थी और नीलामी वाले सरकारी दफ्तर में बाउंसर तैनात किए गए थे। हल्ला तो यह भी है कि नीलामी प्रक्रिया में दूसरे दावेदारों को शामिल ही नहीं होने दिया गया। राइस मिल बहुल जिले के निवासी और कोष एकत्र करने में माहिर नेताजी को लेकर अब लोग भले सिर पीटते रहें, पर नेताजी ने तो दम दिखा ही दिया।
कमीशन नहीं, तो काम भी नहीं
क्या इस साल हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट में ‘कमीशन’ नहीं तो ‘काम’ नहीं की अवधारणा लागू हो गई है? एक जमाना था जब राज्य में बागवानी की खेती के लिए किसान लालायित रहा करते थे और सप्लायर्स हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट को मधुमक्खी के छते की तरह देखते थे। पर डीबीटी (किसानों के खाते में सीधे सब्सिडी ट्रांसफर) ने हार्टिकल्चर को सूखा बना दिया। राष्ट्रीय बागवानी मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट को करीब 200 करोड़ का बजट मिला था, जिसमें से केवल 20 फीसदी ही अब तक खर्च हो पाया है। माना जा रहा है कि पुराने व अनुभवी सप्लायर्स की विदाई और नौसिखिए लोगों की एंट्री से भी मामला गड़बड़ा गया। नए लोगों में होटल और राईस मिल चलाने वाले, सब्जी का बीज, फल के पौधे और खाद व दवाई सप्लाई करने वाले बन गए। इस साल बजट पूरा खर्च न होने से अगले साल के लिए खतरा मंडराने लगा है। चर्चा है कि कुछ लोगों ने कृषि मंत्री रविंद्र चौबे से डीबीटी से छूट की गुहार लगाई, लेकिन मंत्री जी व्यवस्था बदलने के लिए तैयार नहीं हुए।
इस बार सवालों की झड़ी
इस बार विधानसभा के बजट सत्र में विधायकगण कुछ ज्यादा ही सवाल लगा रहे हैं। सवालों के जरिए अलग-अलग विभागों के काम की जानकारी और अपने क्षेत्र के विकास का हाल जानना विधायकों का अधिकार है, लेकिन पिछले सत्रों के मुकाबले विभागों में जवाब के लिए ज्यादा सवाल पहुंचने से अधिकारियों के कान खड़े होने लगे हैं। विधायकों के कई प्रश्नों से अधिकारियों-कर्मचारियों के माथे पर चिंता की लकीरें उभरना स्वाभाविक है। विधानसभा में मामला उठने से कभी-कभी उन पर गाज भी गिर जाती है। जानकारी के अनुसार इस बजट सत्र के लिए अब तक विधानसभा में 1300 के करीब सवाल पहुँच चुके हैं। सत्र 22 फ़रवरी से शुरू होना है और 02 मार्च तक सवाल जमा कराए जा सकते हैं। पिछले साल बजट सत्र में 3345 सवाल पूछे गए थे। अब देखते हैं इस सत्र में क्या रिकार्ड बनता है।
शैलेश नहीं, तो बैठक नहीं
कहते हैं छत्तीसगढ़ कांग्रेस के संचार विभाग की बैठक प्रभारी महासचिव पीएल पूनिया लेने वाले थे, लेकिन संचार विभाग के प्रमुख शैलेश नीतिन त्रिवेदी उसी दिन असम के दौरे पर चले गए तो पूनिया जी ने बैठक रद्द कर दी, जबकि बैठक की पूरी तैयारी ही गई थी। संचार विभाग के लोग बैठक का इंतजार कर रहे थे और उस दिन पुनिया जी रायपुर में ही थे। अब कांग्रेसी ही कह रहे हैं- शैलेश नहीं तो मीटिंग नहीं, यह तो कोई बात नहीं हुई। कहा जाता है मोहन मरकाम के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अब तक एक भी बार संचार विभाग की बैठक नहीं हुई है। इस कारण नए लोगों को इस बैठक का बेसब्री से इंतजार था। बैठक के बहाने ही वे पूनिया जी से रूबरू होना चाहते थे।
नेता और जन्मदिन
नेता जब सत्ता में रहते हैं, तब जन्मदिन के जलवे अलग ही होते हैं। सत्ता से दूर होते ही जन्मदिन का जोश भी चला जाता है और बधाई देने वाले भी छिटक जाते हैं। छत्तीसगढ़ में जब भाजपा की सरकार थी, तब भाजपा के नेता और मंत्री के जन्मदिन के पोस्टर दिखते थे। अब कांग्रेस की सरकार है तो कांग्रेस के नेता और मंत्री के जन्मदिन के पोस्टर छाए दिखते हैं। कसडोल की कांग्रेस विधायक सुश्री शकुंतला साहू संसदीय सचिव बन गईं तो लोगों को जन्मदिन याद आ गई और जनपद पंचायत पलारी के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने जाने-अनजाने में उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित कर दिया। मुख्य कार्यपालन अधिकारी कार्यक्रम की व्यवस्था के लिए लिखित आदेश जारी न करते तो शकुंतला साहू का जन्मदिन उनके क्षेत्र के लोगों को ही पता नहीं चल पाता। गलती के लिए सरकार ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी को निलंबित कर दिया, पर सीईओ ने तो बिना विज्ञापन के ही पब्लिसिटी दिला दी।
(लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)