ड्राइव थ्रू का युग और कोरोना

राकेश अचल

कलियुग की सबसे ज्यादा आतंक फैलानी वाली बीमारी कोरोना से सर्वाधिक 4, 54, 213 लोगों की जान गवां चुके अमेरिका में लोग कोरोना के प्रति लापरवाह कम, सतर्क ज्यादा हैं। कोरोना से बचने के लिए लोगों ने मास्क के साथ ही दो गज की दूरी का पालन बिना किसी शहंशाही विज्ञापन के किया है, बल्कि इसका विकल्प भी खोज लिया है और इसका नाम है ‘ड्राइव थ्रू’।

अमेरिका की आबादी 386.7 मिलियन है और यहां वाहनों की संख्या 281 मिलियन के आसपास है, अर्थात यहां नब्बे फीसदी लोगों के पास वाहन हैं, इसलिए यहां कार में बैठे-बैठे खानपान का सामान लेने, एटीएम से पैसे निकालने जैसे तमाम काम ‘ड्राइव थ्रू’ के जरिये पहले से होते आ रहे थे, लेकिन अब इसमें कोविड-19 की जांच की सुविधा को शामिल कर लिया गया है। इसके लिए केवल पूर्व से पंजीयन करना आवश्यक है। भारत से अमेरिका पहुंचने के बाद मैंने भी यहां कार में बैठे-बैठे अपनी कोरोना जाँच कराई।

अमेरिका में कोरोना जांच और उसकी रिपोर्ट पाने के लिए आपको न कतारों में लगना पड़ता है और न किसी के निहोरे करना पड़ते हैं। सब कुछ व्यवस्थित है। जांच परिणाम यथाशीघ्र आपके पास मोबाइल और ईमेल पर पहुँच जाते हैं। ये व्यवस्था हमारे भारत में भी है लेकिन भीड़ और प्रबंधन की कमी से इसके सु-फल दिखाई नहीं देते। मुझे ही भारत से रवाना होने के पहले कोरोना जांच रपट पाने के लिए दो दिन की प्रतीक्षा के बाद भी घंटों भटकना पड़ा और परिचितों की सिफारिश का उपयोग करना पड़ा था। अच्छी बात ये कि हम दोनों देशों में ‘निगेटिव’ ही पाए गए।

अमेरिका की पूर्व की यात्राओं में हमने ड्राईव्ह थ्रू के जरिये दवाएं, आइसक्रीम, कॉफी ही हासिल की थी। एक-दो ठिकानों पर कार में बैठे-बैठे ही एटीएम से पैसे भी निकाले। ये सुविधा बेहतर है। कोरोना संक्रमण फैलने के खतरे भी कम हो जाते हैं और सहूलियत भी होती है सो अलग। ये सुविधा हमारे यहां भी मुमिकन है, लेकिन हमारे यहां तो पार्किंग का ही संकट है ऐसे में ड्राईव्ह थ्रू का इंतजाम आसान नहीं है। इस सुविध से समय बचता है सो अलग।

मैंने देखा कि कोरोनाकाल में अमेरिका में अब दहशत का माहौल तो एकदम नहीं है। बाजार, पर्यटन स्थल, सिनेमाघर खूब आबाद हैं बावजूद इसके बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो ग्यारह महीने बाद भी खरीद-फरोख्त के लिए बाजारों में नहीं जा रहे। यहां आज भी बड़ी आबादी ‘होम डिलेव्हरी’ सेवाओं पर निर्भर है। खानपान के सामान से लेकर लगभग सभी सामान आपको घर बैठे मिल सकता है, मिल रहा है। हाँ इसकी कीमत कुछ ज्यादा होती है और दूसरे कभी-कभी सामान आपके मन का नहीं होता। हालांकि आपके पास ऐसे सामान को वापस करने के असीमित विकल्प मौजूद हैं।

संयोग से अमेरिका के फीनिक्स शहर में हमारा घर बेहद महत्वपूर्ण इलाके में है जहाँ चारों ओर देश के सभी ब्रांड्स के शोरूम और मॉल्स स्थित हैं, फिर भी हमारे यहां अधिकाँश सामान घर बैठे मंगाया जा रहा है। मुझे यहां बहुत से ऐसे परिवार मिले जिन्होंने कोरोनाकाल में अपने घर के बाहर की दुनिया देखी ही नहीं। और यदि दुनियादारी के लिए आना-जाना बहुत जरूरी हुआ तो कार से संबंधित के दरवाजे तक गए, दरवाजे पर दूर से ही खड़े-खड़े बतियाये और सामान देहलीज पर रखकर वापस लौट आये। यहां दरवाजे के बाहर रखा आपका कीमती से कीमती सामान गायब होने के नगण्य अवसर हैं। यानि ये क़ानून और व्यवस्था के लिए कोई समस्या नहीं है।

कोरोना काल में यहां हवाई यात्राओं पर जरूर असर पड़ा है, जैसा कि मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ, लेकिन सड़क यातायात पहले की ही तरह जारी है। जिम, पार्क, स्विमिंग पूल्स जैसे अधिकांश ठिकाने पहले की तरह आबाद हैं, भले ही यहाँ पहुंचने वालों की संख्या पहले के मुकाबले कम है। स्कूलों पर अभी पाबंदी बरकरार है इसलिए बच्चों का अधिकांश समय घरों में ही बीतता है। हमारी कॉलोनी में एक बच्चे की साइकल गैराज के बाहर से गायब हो गयी तो खबर मिलते ही आनन-फानन में पुलिस तफ्तीश के लिए मौके पर आ गयी। हमारे यहां सायकल चोरी को शायद पुलिस कभी इतनी गंभीरता से नहीं लेती। भारत में किसी मंत्री या नेता कि भैंस या कुत्ते के लिए पुलिस को जरूर सक्रिय होना पड़ता है।

जीवन को लेकर एकदम सतर्क और सावधान अमेरिका में हमारी मौजूदगी स्थानीय लोगों के लिए हैरानी का विषय जरूर है। उन्हें लगता है कि हमने 24 घंटे की उबाऊ और संक्रमण के खतरों से घिरी हवाई यात्रा करना कैसे स्वीकार कर लिया। वे हमारे दुस्साहस की सराहना करते हैं। वैसे आपको बता दूँ कि इस समय अमेरिका में बाहर से जो भी आ रहा है वो अपने साथ कोरोना मुक्त होने का प्रमाणपत्र लेकर आ रहा है। लेकिन रास्ते में उसके संक्रमित होने के खतरे तो हैं ही, इसलिए यहां आकर भी हर परदेशी को अपनी कोरोना जाँच कराना पड़ती है। आम धारणा है कि कोरोना हवाई यात्राओं और मॉल्स में जाने के कारण भी फैलता है।

इस विशेष संक्रमण काल में हम भी या तो घर में हैं या फिर अपनी बस्ती के आसपास सुबह-शाम लम्बी चहलकदमी कर लेते हैं। जरूरत पड़ने पर वालमार्ट जैसे सार्वजनिक स्थानों पर भी गए। कोशिश की कि किसी स्पर्श से बचे रहें। हाथों में मोमजामा के दस्ताने, चेहरे पर मास्क और सेनेटाइजर हमेशा हमारे साथ रहता ही है। लेकिन बहुत से अमेरिकी इन सबसे लापरवाह,  मस्ती करते भी देखने को मिल जाते हैं। इसलिए एहतियात किसी एक को तो बरतना ही पड़ती है। अच्छी बात ये है कि यहां पुलिस को डंडा लेकर मास्क लगाने के लिए नहीं कहना पड़ता। यानि आप अपनी जान की रक्षा स्वयं करें। पुलिस आपकी निजता में कोई दखल देने वाली नहीं है।

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