एक गणतंत्र, दो परेड

अजय बोकिल

आजाद और सार्वभौम भारत का यह 72 वां गणतंत्र कई मायनों में अलग है। इसलिए नहीं कि वैश्विक महामारी कोरोना की छाया इस गणतंत्र दिवस पर है, बल्कि इसलिए भी कि इस गौरवपूर्ण दिवस पर देश की राजधानी में पहली बार दो परेड देखने को मिलेंगी। पहली राजपथ पर सत्ता की परेड, जिसे जनता ने ही राज सिंहासन सौंपा है, दूसरी जनता के रूप में किसानोंं की ट्रैक्टर परेड, जो कृषि कानून रद्द कराने की अपनी मांगों के लिए सड़कों पर उतरे हैं और खुद सत्ता ने उन्हें समांतर परेड निकालने की मजबूरी में ही सही, इजाजत दी है।

दोनोंं में कोई टकराव नहीं है, लेकिन किसानों की इस परेड का प्रतीकात्मक महत्व है और वो ये कि किसानों से प्यार और सम्मान के साथ तो ‘डील’ किया जा सकता है, लेकिन दबाव से नहीं। किसान को अन्नदाता कहने भर से काम नहीं चलेगा, उसकी किस्मत भी उसी की इच्छा से तय करनी होगी। कृषि कानूनों का मसला जटिल और बहुआयामी है, लेकिन स्वतंत्र गणराज्य में पहली दफा किसान और उसकी आवाज इतनी मुखर हुई है कि सरकार को उसे रैली के रूप अभिव्यक्त करने की इजाजत देनी पडी है।

यही नहीं, इस साल का गणतंत्र अपने पूर्ववर्ती 71 गणतंत्रों से कई मायनों में अलग है। खूबियों में भी और खामियों में भी। सात दशको में यह तीसरा मौका है, जब भव्य गणतंत्र दिवस परेड में कोई विदेशी मेहमान नहीं होगा। इसके पहले ऐसी स्थिति 1952 और 1953 के गण‍तंत्र दिवस पर बनी थी, जब किसी विदेशी मेहमान को परेड के मुख्य अतिथि का न्यौता नहीं दिया गया था। बरसों बाद यह पहली बार होगा कि पूरी परेड लाल किले तक नहीं जाएगी। सोशल डिस्टेसिंग के चलते दर्शकों की संख्या भी घटाकर मात्र 25 हजार कर दी गई है, जो पिछले साल के मुकाबले छठा हिस्सा भी नहीं है।

इन सबके बावजूद यह गणतंत्र दिवस परेड कई अनूठी बातें  लिए हुए भी होगी। पहली बार बांग्ला देश की सेना का दस्ता भारत के गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होगा। भारतीय वायु सेना की शान राफेल लड़ाकू विमान परेड का हिस्सा और आकर्षण का केन्द्र होंगे। पहली दफा फ्लाइट लेफ्‍टिनेंट भावना कांत के रूप में प्रथम महिला फाइटर पायलट वायुसेना की झांकी में शामिल होंगी। परेड में शामिल झांकियों में यूपी की झांकी में निर्माणाधीन ‘राम मंदिर’ का माॅडल भी होगा।

उधर देश की राजधानी की दो सरहदों पर एक लाख ट्रैक्टरों की रैली निकालने की तैयारी है। कहा जा रहा है कि यह रैली शांतिपूर्ण होगी, लेकिन देश की निगाहें उस पर भी रहेंगी। 26 जनवरी का महत्व इसलिए है कि 72 साल पहले हमने अपना संविधान आत्मार्पित कर उसे लागू किया। सांस्कृतिक राष्ट्र के साथ साथ हम एक सुसंगठित राष्ट्र राज्य में रूपांतरित हुए। हमने अपने देश को एक ऐसे गणराज्य को साकार करने का संकल्प लिया, जो कल्याणकारी, सर्व धर्म समभाव, न्याय, समता व स्वतंत्रता की भावना से प्रेरित हो।

हमारे संविधान को श‍क्ति जनता से मिलती है। इसके उद्देश्यों को हमने किस हद तक पूरा किया, यह बहस का विषय है, लेकिन आश्वस्ति की बात यह है कि हम उसे पूरा करने के संकल्प पर कायम हैं। संविधान निर्माता डाॅ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था- ‘संविधान केवल एक वकीली दस्तावेज भर नहीं है, यह जीवन का संवाहक है और इसकी आत्मा अपने समय की आत्मा है।’ यह आत्मा अमर रहेगी, इस गणतंत्र दिवस का भी यही संदेश है।

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