बीड़ी पर बवाल, पेट भरने का सवाल 

रवींद्र व्यास

देश के औद्योगिक मानचित्र पर बीड़ी उद्योग का अपना एक अलग ही स्थान रहा है। देश में बीड़ी कारोबार से लगभग 4 करोड़ लोगों की रोजी रोटी चलती है। अकेले बुंदेलखंड इलाके में ही इस उद्योग से लगभग 8 लाख से ज्यादा लोगों का परिवार पलता है। इस उद्योग पर सरकार की निगाहें पहले से ही टेढ़ी चल रही हैं, जिसके चलते बुंदेलखंड के अनेक बीड़ी निर्माता अपना कारोबार समेट कर दूसरे राज्यों में चले गए हैं। हाल ही में सरकार द्वारा लाये गए सिगरेट एन्ड अंडर टोबेको प्रोडक्ट एक्ट (कोटपा) 2003 में संशोधन कर उद्योग के सामने एक और बड़ा संकट खड़ा कर दिया गया है।

बुंदेलखंड में रोजगार के जो बड़े साधन माने जाते हैं उनमें बीड़ी निर्माण भी एक है। बुंदेलखंड के सागर, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, दमोह और दतिया के अलावा उत्तरप्रदेश वाले बुंदेलखंड इलाके के महोबा, बांदा, हमीरपुर, झाँसी, चित्रकूट, और ललितपुर में भी बड़ी संख्या में लोगों की आय का एक प्रमुख स्रोत बीड़ी निर्माण, तेंदूपत्ता तुड़ाई और तम्बाकू की फसल का उत्पादन रहा है। सागर इसका बड़ा केंद्र माना जाता रहा है।

पिछले दिनों सरकार ने सिगरेट एंड अंडर टोबेको प्रोडक्ट एक्ट (कोटपा) 2003 में संशोधन कर नई नियमावली जारी की है। फरवरी 2021 से लागू होने वाले इन संशोधनों के कारण बीड़ी कारोबारियों की चिंता बढ़ गई है। मध्यप्रदेश बीड़ी उद्योग संघ के अनिरुद्ध पिंपलापुरे ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर फरवरी से लागू होने वाले इस नियम को 31 मार्च तक लागू नहीं करने और बीड़ी उद्योग से जुड़े लोगों की बात सुनने की मांग की है, ताकि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय इस नियमावली को व्यावहारिक बना सके। पिंपलापुरे ने स्पष्ट किया है कि  कोटपा के नए नियमों से बीड़ी कारोबार बंद होने की कगार पर पहुंच जाएगा, जिसका सीधा असर यहां के रोजगार पर पड़ेगा और बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो जाएंगे।

बीड़ी कारोबार पूरी तरह मानव श्रम आधारित कारोबार है, जो नए संशोधन किए जा रहे हैं उससे बीड़ी कारोबार को गुटका और सिगरेट के बराबर लाकर खड़ा किया जा रहा है। इसके अलावा, बीड़ी विक्रेता को पंजीयन कराना अनिवार्य बनाया जा रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा कोपटा कानून 2003 के तहत 31 दिसंबर 2020 को नई नियमावली जारी की गई है, जिसमें संशोधन के लिए केवल 31 जनवरी तक ही सुझाव स्वीकृत होंगे।

नए नियमों के तहत बीड़ी निर्माता बीड़ी के बंडल पर अपने ब्रांड या लेबल नहीं लगा सकते हैं। दुकानदार अपनी दुकान पर बीड़ी-बण्डलों को प्रदर्शित नहीं कर सकते हैं। खुली बीड़ियों का विक्रय प्रतिबंधित रहेगा। हर बंडल 25 बीड़ी का ही होना चाहिए। हर बंडल पर एमआरपी और निर्माण की तारीख़ छपी होना अनिवार्य होगा। हर बीड़ी निर्माता, ठेकेदार, व्यापारी, डीलर, डिस्ट्रिब्यूटर, पनवाड़ी एवं दुकानदार को कोटपा के तहत पंजीयन करवाना अनिवार्य होगा। कोटपा के किसी भी नियम को तोड़ना दण्डनीय अपराध माना गया है और ऐसा होने पर सात वर्ष तक का कारावास और जुर्माना भी लग सकता है। एटक के राज्य महासचिव कामरेड अजीत जैन ने कोटपा के संशोधन को अनुचित और कुटीर उद्योग को बंद करने वाला बताया है। वे कहते हैं- ऐसा लगता है जैसे कुटीर उद्योग को बंद करके मशीनी उद्योग को सरकार बढ़ावा देना चाह रही है।

बुंदेलखड का कुटीर उद्योग है बीड़ी
बीड़ी उद्योग एक तरह से बुंदेलखंड का कुटीर उद्योग है इससे लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। सागर संभाग के छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, दमोह, सागर और दतिया में बड़ी संख्या में लोग इस कारोबार से जुड़े हुए हैं। दरअसल बुंदेलखंड वह इलाका है जहां तेंदूपत्ता भरपूर मात्रा में पाया जाता है। तेंदूपत्ता तोड़ने, बीड़ी बनाने, तम्बाकू की फसल लगाने और बीड़ी विक्रय से लोगों को बड़ी संख्‍या में रोजगार मिलता है। नए नियमों के कारण अब इस उद्योग पर गंभीर असर दिखाई देगा जिसके चलते यह उद्योग ठप हो सकता है। तेंदूपत्ता के सहकारीकरण के कारण भी मध्यप्रदेश के कई बड़े उद्योगपति यहां से अपना कारोबार समेट कर दूसरे राज्यों में चले गए। कोरोना काल मैं भी यह कारोबार काफी प्रभावित हुआ। जहां तक टैक्स की बात है तो जीएसटी के बाद बीड़ी पर 28 फीसदी टैक्स लगता है और तेंदूपत्ता पर भी 18 फीसदी टैक्स लगने लगा है। जबकि वेट टैक्स के समय इस पर 20 फीसदी टैक्स ही लगता था।

देश में बीड़ी के काम में 4 करोड़ लोग लगे हुए हैं, इस कानून को बनाने की वजह से उनके रोजगार में बेशक कमी आएगी। 60 लाख तम्बाकू किसानों, 20 लाख कृषि मजदूर, 2 करोड़ से ज्यादा तेंदूपत्ता तोड़ने वालों के अलावा रिटेल शॉप तथा ट्रांसपोर्ट वगैरह में काम करने वाले लोग भी इस उद्योग से जुड़े हैं। नियमों में संशोधन का असर इन सबकी रोजी रोटी पर पड़ेगा। जिन क्षेत्रों में सरकार की नीतियों के कारण रोजगार समाप्त हो रहे हैं, वहां ऐसे लोगों के लिये वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था कराना भी सरकार का दायित्व है।(मध्‍यमत)
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