मुख्यमंत्री ने दबाई मंत्रियों की नस

रवि भोई

राजनीति में कब कौन पाला बदल ले और कब कौन क्या दांव खेल जाए, कहा नहीं जा सकता। दो साल पहले छत्तीसगढ़ में सरकार गठन के वक्त संतुलन के लिए अलग-अलग खेमे से मंत्री बनाए गए थे। इन दो सालों में खारुन नदी में काफी पानी बह गया। इक्के–दुक्के मंत्री को छोड़कर बाकी मुख्यमंत्री की छत के नीचे आ गए हैं। एक मंत्री विधानसभा चुनाव में टिकट दिलाने और मंत्री बनाने वाले अपने आका को छोड़कर मुख्यमंत्री के कैंप में आ गए। एक मंत्री के खिलाफ दर्ज पुराने मामलों का रिकार्ड तैयार करवाया गया तो वे भी शरणागत हो गए। कहा जा रहा है कि पुलिस ने मंत्री जी के खिलाफ 24 मामले दर्ज होने का ब्‍योरा मुख्यमंत्री को भेजा। चर्चा है कि भूपेश बघेल ने राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए विधायकों को संसदीय सचिव और निगमों में पद देकर जो दांव चला, उससे उनके विरोधी चित दिखने लगे हैं। सरगुजा संभाग के 14 विधायकों में से 12 मुख्यमंत्री के करीबी बन गए हैं, वहीं पुलिस के खिलाफ कड़वा बोलने वाले बिलासपुर संभाग के एक विधायक की निष्ठा बदलनी शुरू हो गई है।

भूपेश बघेल के ईश्वर दर्शन
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इन दिनों दौरों के साथ ईश्वर दर्शन में भी लगे हैं। वर्धा में कांग्रेस के कार्यक्रम में भाग लेने से पहले शिरडी में साईंबाबा के दर्शन किए। वहीँ गुवाहाटी में कांग्रेस की बैठक लेने से पहले ‘मां कामाख्या’ की पूजा की। वैसे भी फ़िलहाल देश में भगवान श्रीराम के नाम पर राजनीतिक गरमी दिखाई पड़ रही है। भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के चंद्रखुरी में भगवान श्रीराम की माता कौशल्या का भव्‍य मंदिर बनवाने का ऐलान कर और राज्य में राम वनगमन पथ का दांव चलकर भाजपा के लिए जमीन को कठोर बना दिया है। भूपेश की रामनीति को जानने और समझने वाले उनके साईं दर्शन और ‘मां कामाख्या’ की पूजा को भी राजनीतिक नजरिए से भी देख रहे हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार में टेलीकाम अफसर
छत्तीसगढ़ सरकार में प्रतिनियुक्ति पर आए इंडियन टेलीकम्युनिकेशन सर्विस के अफसर पिछले साल से बड़े पॉवरफुल बने हुए हैं। मजेदार बात यह है कि ये तीनों ही एक-एक विभाग में जब से आए हैं, तब से जमे हुए हैं। इनमें एके त्रिपाठी आबकारी विभाग में, वीके छबलानी उद्योग विभाग में और मनोज कुमार सोनी खाद्य विभाग में विशेष सचिव के पद पर पदस्थ हैं। टेलीकाम अफसर एके त्रिपाठी के खिलाफ पिछले साल ईडी और आयकर विभाग ने छापे मारे थे। त्रिपाठी अब भी बेवरेज कार्पोरेशन में महत्वपूर्ण पद पर बैठे हैं। आमतौर पर आईएएस और राज्य प्रशासनिक सेवा के सीनियर अफसरों वाले पदों पर जमे टेलीकाम अफसरों के खिलाफ आईएएस और डिप्टी कलेक्टर तो खफा हैं ही, चर्चा है कि इनकी प्रतिनियुक्ति के खिलाफ राज्य के कर्मचारी नेताओं ने भी मोर्चा खोल लिया है। इसके कारण सरकार में मलाईदार पदों पर बैठे टेलीकाम अफसरों की कुर्सी हिलने लगी है।
भारत सरकार ने वीके छबलानी की प्रतिनियुक्ति अवधि बढ़ाने पर सहमति देने से इंकार कर दिया है, ऐसे में अब कहा जाने लगा है कि सरकार से टेलीकाम अफसरों की जल्दी विदाई होने वाली है। एक जमाना था जब टेलीकॉम डिपार्टमेंट के अफसर और कर्मचारियों के जलवे हुआ करते थे। टेलीकॉम सेक्टर में प्राइवेट आपरेटरों के आ जाने से दूरसंचार विभाग का भाव गिर गया है और यहाँ काम करने वालों की भी पूछपरख घट गई है। माना जा रहा है रुतबा बनाए रखने के लिए ये राज्य सरकार में दांवपेंच चलकर जम गए और सरकार की आँखों के तारे भी बन गए।

सत्ता और संगठन की मलाई साथ-साथ
सत्ता और संगठन को एक-दूसरे का पूरक माना जाता है, लेकिन जब सत्ता और संगठन में एक ही व्यक्ति काबिज हो जाता है तो फिर दोनों के साथ न्याय नहीं हो पाता और दावेदारों में भी असंतोष की भावना पनपती है। ऐसा ही माहौल कुछ-कुछ छत्तीसगढ़ कांग्रेस में दिखाई पड़ रहा है। मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेश बघेल ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया, लेकिन कांग्रेस संगठन में ऐसे कई लोग हैं जो निगम-मंडल में पद मिलने के बाद भी कांग्रेस के पदाधिकारी बने हुए हैं। मसलन नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष बनने के बाद भी रामगोपाल अग्रवाल प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष हैं। गिरीश देवांगन प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष और खनिज विकास निगम के अध्यक्ष हैं। शैलेश नीतिन त्रिवेदी पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष के साथ कांग्रेस के संचार विभाग की जिम्मेदारी अपने पास रखे हुए हैं। राज्य कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा और कई लोग अब भी संगठन में बने हुए हैं। सरकार या संगठन में पद के दावेदार बदलाव की राह देख रहे हैं, लेकिन ब्लाक कांग्रेस अध्यक्षों की नियुक्ति में ही जूतमपैजार से दो-चार होने वाले कांग्रेस नेता नए चेहरे लाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं और पुराने जमे लोग सत्ता और संगठन की मलाई साथ-साथ खा रहे है।

सुब्रत साहू पर पदों की बारिश
कहते हैं न भगवान देता है तो छप्पर फाड़कर देता है, ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू के साथ देखने को मिल रहा है। 1992 बैच के आईएएस सुब्रत साहू मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव हैं ही, साथ ही उनके पास गृह, आवास-पर्यावरण, जल संसाधन और आईटी के अलावा कुछ और भी विभाग हैं। अब उन्हें प्रभारी मुख्य सचिव की भी जिम्मेदारी मिल गई है। मुख्य सचिव अमिताभ जैन और अपर मुख्य सचिव रेणु पिल्लै के कोरोना संक्रमित हो जाने से मंत्रालय में पदस्थ राज्य के सीनियर अफसर सुब्रत साहू ही हैं। सुब्रत साहू को मुख्यमंत्री का विश्वासपात्र भी माना जाता है। वैसे राज्य में सबसे सीनियर अफसर सीके खेतान हैं, लेकिन वे मंत्रालय से बाहर राजस्व मंडल के अध्यक्ष हैं।

चल गया डीएम अवस्थी का दांव
कुछ महीने पहले चर्चा थी कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से जुड़ी एक लॉबी डीएम अवस्थी की जगह अशोक जुनेजा को डीजीपी बनाने की कोशिश में लगी है। तब राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में भी यह चर्चा सुर्ख़ियों में थी। कहते हैं सुगबुगाहट के बीच डीएम अवस्थी ने अपनी छवि चमकाने का दांव चला और अपने काम को सरकार की नजरों में लाने के लिए नई रणनीति अपनाई। इसमें शहीद और मृतक पुलिसकर्मियों के आश्रितों को फटाफट अनुकंपा नियुक्ति देने से लेकर गलत काम करने वाले पुलिस वालों पर सख्त कदम उठाकर नई छवि बना ली। माना जा रहा पुलिस कर्मचारियों और उनके परिजनों के दुख-दर्द सुनकर निवारण की शैली भी काम कर गई। अब डीजीपी डीएम अवस्थी को कोई खतरा नहीं है और कांग्रेस सरकार ने उनको पद पर बने रहने देने का मन बना लिया है, पर फील्ड में पुलिस अधीक्षक और दूसरे अफसरों की पोस्टिंग में तो मुख्यमंत्री की ही इच्छा चलेगी।

सीनियर पीछे, जूनियर आगे
छत्तीसगढ़ में करीब डेढ़ साल तक जल संसाधन विभाग के स्वतंत्र सचिव रहे 2003 बैच के आईएएस अविनाश चंपावत के ऊपर अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू हैं, वहीँ कुल मिलाकर 20-25 फाइलों और विधानसभा सत्र के वक्त ही हरकत में आने वाले संसदीय कार्य विभाग में 1999 बैच के आईएएस सोनमणि बोरा सचिव और डॉ. आलोक शुक्ला प्रमुख सचिव हैं। लेकिन सहकारिता विभाग के सचिव का काम 2007 बैच के आईएएस हिमशिखर गुप्ता को स्वतंत्र रूप से सौंपा गया है। राज्य में 2004 बैच के आईएएस सचिव बन गए हैं, 2005 बैच के आईएएस इंतजार में हैं। 2005 व 2006 बैच के आईएएस अभी विशेष सचिव हैं, पर कुछ को स्वतंत्र प्रभार नहीं मिला है, ऐसे में 2007 बैच के आईएएस को सचिव की जिम्मेदारी दे देने को कार्य संचालन नियमों के प्रतिकूल कहा जा रहा है।

झींगा और चिकन से दिल जीतने का फार्मूला
अफसरों को समय के साथ पाला बदलने और दांवपेंच में माहिर कहा जाता हैं, वहीँ कुछ ऐसे भी होते हैं, जो अपने से सीनियर अफसर या फिर राजनेता के करीबी बनने के लिए नए-नए जुगाड़ तलाशने में सिद्धहस्त होते हैं। जोगी राज में एक अफसर तो अजीत जोगी के करीबी रिश्तेदार को ‘झींगा’ खिलाकर मुख्यमंत्री के करीबी बन गए थे, वहीं रमन राज में एक ताकतवर अफसर को ‘चिकन’ खिलाकर कुछ अफसर लगातार कलेक्टरी हासिल करते रहे या फिर प्राइम पोस्टिंग लेते रहे। चिकन खिलाने वाले अफसर भूपेश सरकार में भी मलाईदार पदों पर तैनात हैं और सरकार के विश्वस्त हैं। अब पता नहीं ये पुराने फार्मूले से सरकार के गुडबुक में आए या फिर कोई और तरकीब लगाई है।
(लेखक छत्‍तीसगढ़ के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।)

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