जी हां, देश में इस बार यह ‘वैक्सीन संक्रांति’ है!

अजय बोकिल

वर्ष 2021 की यह संक्रांति सचमुच सबसे अलग है। अलग इस मायने में कि अमूमन हर साल संक्रांति पर तिल-गुड़, पतंगबाजी, सूर्योपासना और शिव मंदिरों में खिचड़ी अर्पण करने की गहमागहमी होती है, लेकिन इस बार सिर्फ एक ही चीज की चर्चा सबसे ज्यादा है और वो है कोरोना वैक्सीन। सरकार इसे ‘आत्मनिर्भर भारत’ का ‘वैक्सीन उद्घोष’ मान रही है तो देश का एक बड़ा वर्ग इसे ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ की शक्ल में देख रहा है। सूर्य देव के उत्तरायण होते ही पूरे भारत में 16 जनवरी से दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण ‍अभियान शुरू होने जा रहा है।

यह बात अलग है कि इस वैक्सीन पर भी पॉलिटिक्स हो रही है और तीसरे चरण के ट्रायल के पूर्व ही मोदी सरकार द्वारा कोविड-19 की दो वैक्सीनों को लगाने की मंजूरी देने पर सवाल भी उठ रहे हैं। कुछ लोगों के मन में दोनों वैक्सीनों को लेकर आशंकाएं हैं तो बहुतों की नजर में यह कोरोना आंतक से राहत का पहला ‘हैल्थ पैकेज’ है। वैसे कोरोना वैक्सीनों को मंजूरी के मामले में दुनिया के अधिकांश देश जरा जल्दी में हैं। कारण यही कि इस महामारी पर लगाम कैसे लगाई जाए।

इस विश्वव्यापी महामारी में अब तक 19 लाख लोग जानें गंवा चुके हैं और 9 करोड़ से ज्यादा संक्रमित हुए हैं। केवल भारत में ही कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 1 करोड़ से ज्यादा और मौतें डेढ़ लाख के पार पहुंच चुकी हैं। वैसे दोनों भारतीय वैक्सीन कितनी कारगर हैं, इसका वास्तविक पता तो इनके पूरे डोज लगने पर ही चलेगा। फिर भी हम अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि दुनिया भर में जारी ‘वैक्सीन विकास की दौड़’ में हम पहली पंक्ति में हैं। वरना विश्व के तमाम देशों में कोरोना की कुल 57 वैक्सीनों पर काम चल रहा है।

अकेले भारत में ही 9 वैक्सीनों का परीक्षण जारी है, लेकिन इनमें कोवैक्सीन और कोविशील्ड ने बाजी मार ली है। इनमें से कोवैक्सीन भारत बायोटेक ने और कोविशील्ड सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने तैयार की है। इन दोनों की पूरे देश में सप्लाई भी शुरू हो गई है। इसमें भी कोवैक्सीन पूरी तरह स्वदेशी है। सरकार की प्राथमिकता सूची के अनुसार लोगों का टीकाकरण होने के बाद, ये वैक्सीनें बाजार में भी उपलब्ध होंगी। पहले चरण में 3 करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जाएगी। ये सभी स्वास्थ्यकर्मी होंगे। उसके बाद फ्रंटलाइन वर्कर्स और फिर उन 27 करोड़ लोगों का नंबर आएगा, जिनकी उम्र 50 वर्ष से अधिक है या फिर जिन्‍हें कोई गंभीर बीमारी है।

बीती एक सदी में कोरोना एक ऐसी महामारी है, जिसने लगभग पूरी दुनिया को हिला दिया, त्रस्त कर दिया है। पहली बार लगा कि एक अत्यंत सूक्ष्म वायरस पूरी मानवता पर इतना भारी पड़ सकता है। ऐसा वायरस, जिसके बारे में विज्ञान के पास भी ज्यादा जानकारी नहीं थी। कोरोना के शुरुआती हमले के बाद दुनिया के तमाम देशों में कोरोना के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता जगाने के लिए वैक्सीन की खोज पूरी बेताबी के साथ की जा रही है। वरना किसी भी रोग की वैक्सीन को ठीक से विकसित करने में बरसों लगते हैं।

ऐसे प्रयोगों के, परीक्षण और निरीक्षण की लंबी और चरणबद्ध प्रक्रिया होती है। उसे सफलता से पूरा करने के बाद ही किसी वैक्सीन को डब्लूएचओ और देशों की सरकारें मंजूरी देती हैं। चूंकि अभी तक फैली महामारियों में शायद ही कोई ऐसी थी कि जिसने कोरोना की तरह बहुत थोड़े समय में पूरी दुनिया को इस तरह अपनी चपेट में ले लिया हो, इसलिए वैक्सीनों की खोज पर हमारा ध्यान कम जाता रहा है। लेकिन कोरोना की जानलेवा तासीर ने पूरी दुनिया को बेचैन कर दिया कि इसकी वैक्सीन आखिर कब आती है। सरकारें इसलिए डरी हुई हैं कि कोरोना ने जानें तो ली हीं, विश्व की अर्थव्यवस्था को भी हिला कर रख दिया है।

बेशक इतनी कम अवधि में कोरोना वैक्सीन तैयार कर लेना और इतनी बड़ी आबादी को लगाने के इंतजाम करना कोई मामूली बात नहीं है। इसमें एक आश्वस्ति का भाव है तो जोखिम भी कम नहीं है। सब कुछ ठीक चला तो यकीनन सेहरा मोदी सरकार के सिर बंधेगा, लेकिन गाड़ी पटरी से उतरी तो जनाक्रोश भड़कने का अंदेशा भी है। भारत सरकार ने दो वैक्सीनों को इमर्जेंसी स्वीकृति दी है। इसमें से कौन सी लगाना है, इसका विकल्प नहीं दिया है। इसका अर्थ यही है कि जो मुहैया कराई जाएगी, आप को उसे लगाना होगा। हालांकि खुले बाजार में वैक्सीन आने के बाद शायद यह विकल्प भी मिले।

हमारे देश में इस विशाल वैक्सीनेशन कार्यक्रम के बरक्स ‘वैक्सीन पॉलिटिक्स’ भी जारी है। दो वैक्सीनों के समांतर उनके तीसरे चरण के ट्रायल को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। कांग्रेस ने कहा है कि भारत के लोग कोई ‘गिनी पिग’ नहीं हैं। लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि वैक्सीन का अंतिम परीक्षण तो मनुष्यों पर ही होगा। तभी उसे अंतिम रूप से मंजूरी मिलेगी। अलबत्ता यह आशंका जायज हो सकती है कि यदि तीसरे ट्रायल में ये वैक्सीने खरी नहीं उतरीं तो फिर देशव्यापी टीकाकरण का क्या होगा? उधर लोगों को वैक्सीन ‘फ्री’ देने और न देने पर भी सियासत जारी है। राजनीतिक दल इसे चुनावी दांव के रूप में भी देख रहे हैं।

बावजूद इन बातों के देश में कोरोना वैक्सीन तैयार होना और इतनी कम अवधि में तैयार होना अपने आप में उपलब्धि है। यह उस आत्म विश्वास का प्रतीक है कि ‘हम यह कर सकते हैं। हमने कर दिखाया है।‘ भारत की वैक्सीन पर दुनिया की नजर है और कई देश हमसे इसे मांग भी रहे हैं। हालांकि हमने जो बनाई है, वह दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन नहीं है। इसके पहले ब्रिटेन ने फाइजर बायोटेक कंपनी की कोविड 19 वैक्सीन को मंजूरी दे दी थी। उससे भी पहले रूस और चीन ने दावे किए थे कि उन्होंने कोरोना वैक्सीन रिकॉर्ड समय में तैयार कर ली हैं। लेकिन उन दावों की प्रति पुष्टि नहीं हो पाई।

विश्व की नजरें कोरोना वैक्सीन पर इसलिए भी लगी हैं, क्योंकि यह वैक्सीन बाजार की बहुत बड़ी फैक्टर साबित होगी। फाइनेंशियल टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में क‍ोविड वैक्सीन का बाजार 800 अरब रुपये प्रति वर्ष का हो सकता है। न्यूज वेबसाइट ‍’मिंट’ के मुताबिक अकेले भारत में ही कोविड वैक्सीन का बाजार (34 करोड़ लोगों को 2 डोज के हिसाब से) अगले तीन साल तक 480 अरब रुपये का होगा। अगर हमारी दोनों वैक्सीन तीसरे चरण के ट्रायल में भी पूरी तरह खरी उतरीं तो न सिर्फ भारत बल्कि वैक्सीन के वैश्विक बाजार में भारत की धाक बनेगी।

जरा गहराई से देखें तो अब तक हर संक्रांति पर बधाइयां तिल-गुड़ में पगी आती थीं। धान और मूंग की नई फसल की महक के साथ आती थीं। आकाश में पतंगों के साथ उड़कर आती थीं। ये सब चीजें इस बार भी हैं, लेकिन देश के लोगों के चेहरों पर सबसे ज्यादा खुशी और संतोष का मिश्रित भाव कोरोना वैक्सीन आ जाने के कारण ज्यादा है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार संक्रांति में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। उनका गमन दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर होता है। दक्षिण पारायण को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मक प्रतीक माना गया है।

लिहाजा इस संक्रांति को नए साल का मंगलाचरण मानें। सोचें कि सब शुभ-शुभ होगा। कोरोनासुर का नाश होगा। ज्योतिषियों ने हमें पहले ही बता दिया था कि इस बार संक्रांति सिंह पर सवार होकर आ रही है। पिछले साल वह गधे पर सवार होकर आई थी। शायद इसलिए भी बीता साल कुछ उसी भाव में व्यतीत हुआ। डरा-डरा, सहमा-सहमा सा। कोरोना के डर और उससे बचाव के लिए कोरोना व्यवहार में बदलाव की गुंजाइश अभी भी नहीं है। बहरहाल संक्रांति किसी पर भी सवार होकर आए, लेकिन आरोग्य की देवी मनुष्य की चेतना और आत्मविश्वास का हाथ पकड़कर ही आती है।

फिलहाल यही मानें कि इस बार संक्रांति आकाश में उन्मुक्त उड़ने वाली रंगबिरंगी पतंगों के बजाए वैक्सीन की शीशियों में जिजीविषा का पैगाम लेकर आ रही है। क्या नहीं?

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