नया संसद भवन किसकी जरूरत?

राकेश अचल

नया भारत बनाने के बजाय सरकार नया संसद भवन बनाने पर आमादा है। लेकिन सवाल ये है कि इस देश को नए संसद भवन की जरूरत क्यों है? क्या मौजूदा संसद भवन अब बीमार है या उसमें बैठने से जनहानि की आशंका है? नया संसद भवन 2022 तक बनाया जाना है और इसका शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 दिसंबर को करने वाले हैं। नए संसद भवन पर 20 हजार करोड़ रुपये की लागत अनुमानित है। मूल भवन के निर्माण पर 971 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

भारत का मौजूदा संसद भवन अभी सौ साल का नहीं हुआ है। अभी उसे सौ साल का होने में 7 साल बाक़ी हैं। उपलब्ध रिकार्ड बताता है कि हमारा मौजूदा संसद भवन 1921 में बनना शुरू हुआ और 1927 में बनकर तैयार हो गया था। कहते हैं कि यह विश्व के किसी भी देश में विद्यमान वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसकी तुलना विश्व के सर्वोत्तम विधान-भवनों के साथ की जा सकती है। यह एक विशाल वृत्ताकार भवन है। जिसका व्यास 560 फुट तथा जिसका घेरा 533 मीटर है। यह लगभग छह एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। भवन के 12 दरवाजे हैं, जिनमें से पाँच के सामने द्वार मंडप बने हुए हैं। पहली मंजिल पर खुला बरामदा हल्के पीले रंग के 144 चित्ताकर्षक खंभों की कतार से सुसज्‍जित हैं। जिनकी प्रत्येक की ऊँचाई 27 फुट है।

भारतीय संसद भवन का डिजाइन भले ही विदेशी वास्‍तुकारों ने बनाया था किंतु इस भवन का निर्माण भारतीय सामग्री से तथा भारतीय श्रमिकों द्वारा किया गया था। तभी इसकी वास्‍तुकला पर भारतीय परंपराओं की गहरी छाप है। और अब हमारी मौजूदा सरकार इस भवन से ऊब गयी है, इसलिए उसने नया संसद भवन बनाने की ठान ली है। भला हो भारत के सर्वोच्च न्यायालय का जो उसने एक याचिका की सुनवाई करते हुए इस परियोजना से जुड़े किसी भी काम को शुरू करने या तोड़फोड़ करने पर रोक लगा दी है।

भारत को दरअसल नए संसद भवन की नहीं बल्कि नयी संसदीय संस्कृति की जरूरत है। बीते कुछ दशकों में भारतीय संसद लगातार क्षीण हुई है। कांग्रेस के समय में भारतीय संसद को कमजोर करने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वो भाजपा के शासन में और तेज हो गया है। आज संसद का जो स्वरूप है उससे जनता बेहद निराश है। संसद कभी मूक दिखाई देती है तो कभी बधिर लगती है। पहली संसद में जितने तपे-तपाये लोग चुनकर आये थे उसके विपरीत आज की संसद में दागदार लोग ज्यादा हैं, अरबपति, खरबपति ज्यादा हैं, आम जनता के लोग कम हैं।

नए संसद भवन की परियोजना को सेंट्रल विस्टा नाम दिया गया है। आपको जाकर हैरानी होगी कि इस परियोजना पर एक-दो नहीं पूरी 1200 आपत्तियां की गई हैं। इनमें से अनेक आपत्तियां याचिकाओं के रूप में देश और दिल्ली की अनेक अदालतों में लंबित हैं, सबसे बड़ी आपत्ति सबसे बड़ी अदालत में है। आपत्ति ये है कि सरकार ने इस परियोजनाक लिए 86 एकड़ भूमि का उपयोग ही बदल दिया। तकनीकी भाषा में इसे ‘लैंड यूज’ कहा जाता है। सरकार ने इसी साल 20 मार्च को ये काम किया था। सरकार सर्वशक्तिमान होती है इसलिए उसे हक है कुछ भी काला-पीला करने का, लेकिन देश में उसे रोकने-टोकने वाली शक्ति अदालत के पास है और सुखद संयोग है कि अदालत ने अपना काम ईमानदारी से किया है।

नई सरकार को इतिहास रचने का शौक चर्राया हुआ है। सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई, इस शीर्ष राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाया, राम मंदिर निर्माण के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, न्यायपालिका को विवादित बनाया, संसद में जनमत की जगह ध्वनिमत को प्रधानता दी, देश के नवरत्नों को बेचा, यानि जो मन में आया सो किया। नया संसद भवन भी इसी तरह की सनक का एक नमूना है। नया संसद भवन देश का टाटा समूह बनाकर देगा। 65 हजार वर्ग मीटर परिसर में बनने वाला संसद भवन बीसवीं सदी में बने संसद भवन की आभा के सामने कितना टिकेगा अभी से कहना कठिन है।

देश में हम नए के विरोधी नहीं हैं, लेकिन नया कब और क्यों हो ये जानने का हक सबको है। आम आदमी सवाल कर सकता है कि देश को नए संसद भवन की जरूरत क्यों है? देश में आज भी ऐसी अनेक इमारतें हैं जो कई शताब्दी पुरानी होकर भी इस्तेमाल में आ रही हैं। पुरानी इमारतें इतिहास जैसी होती हैं और उन्हें तभी त्यागा जाता है जब वे सचमुच उपयोग के काबिल न बची हों। जैसे हमारा मौजूदा संसद भवन। संसद भवन भारतीय अस्मिता का प्रतीक है, इसी भवन में हमने आजादी के फलस्वरूप सत्ता का हस्तांतरण किया था। इसे त्यागने की अभी कोई वजह नहीं है। ये इमारत सिर्फ इसलिए नहीं त्यागी जा सकती कि इसे अंग्रेज वास्तुकार एडविन लुटियंस और हरवर्ट बेकर ने डिजाइन किया था। इन गरीबों ने भी अपने डिजाइन का आधार हमारे चंबल में स्थित चौंसठ जोगनी के मंदिर को बनाया था।

सरकार का कहना है कि मौजूदा भवन में पर्याप्त स्थान नहीं है, इसलिये नए संसद भवन की जरूरत है। अब सवाल ये है कि अचानक ये सब क्यों महसूस किया जाने लगा, तो जवाब आ जाएगा कि इसका प्रस्ताव तो कांग्रेस के जमाने का है। हो सकता है कि ये भी सही हो लेकिन हम सबका मानना है कि भारत की संसद उसी भवन में लगना चाहिए, जिसमें आजादी के बाद से लगती आयी है। आखिर संसद चलती कितने दिन है? संसद में स्टाफ को नियमित किया जा सकता है। जिस दिन जिस विषय पर बात हो उस दिन उस विभाग के स्टाफ को बुलाया जा सकता है। सवाल भवन में जगह की कमी का नहीं है दिल में कमी का है।

आपको बता दें कि जिस इंग्लैंड से हमने आजादी हासिल की थी उस इंग्लैंड का संसद भवन 1002 साल पुराना है, अंग्रेज इसी इमारत की मरम्मत कराकर अपना काम चला रहे हैं। अंग्रेजों ने अपनी संसद की मरम्मत 178 साल पहले कराई थी और फिर से इसकी मरम्मत कराई जा रही है। क्या हम ऐसा नहीं कर सकते? क्या हम अपनी धरोहर की मरम्मत कर इसका जीवन नहीं बढ़ा सकते? इंग्लैंड वाले अपनी संसद की मरम्मत पर इसी साल से काम शुरू कर रहे हैं और 2026 में इसे फिर से इस्तेमाल के लिए बना लेंगे हालांकि इस काम पर 32 हजार करोड़ रुपया खर्च होगा। लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हमारा धरोहरों के प्रति कोई अनुराग है ही नहीं। हम नया इतिहास गढ़कर उसमें अपने शिलालेख लगाने के हामी जो हैं।

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