अजय बोकिल
देश की आर्थिक राजधानी और महाराष्ट्र प्रदेश की राजधानी मुंबई से बॉलीवुड ‘छीनने’ और उत्तर प्रदेश के नोएडा में ‘प्रति-बॉलीवुड’ खड़ा करने को लेकर जैसा सियासी लट्ठमलट्ठा मचा है, वह हैरान करने वाला है। इसलिए, क्योंकि न तो बॉलीवुड को राजनेताओं ने बनाया है और न ही यूपी के नोएडा में प्रस्तावित (उसे नॉलीवुड कहें?) फिल्म सिटी नेताओं के दम पर पनपने वाली है। भले ही सरकार नई फिल्म सिटी की अधोसरंचना मुहैया करा दे, लेकिन उसे अद्वितीय कलानगरी के रूप में स्थापित करने और मान्यता दिलाने का काम तो कलाकारों और सिने कारोबारियों को ही करना है। बेशक बॉलीवुड की आड़ में राजनीति भी खेली जा रही है, लेकिन कला की दुनिया पर इसका बहुत ज्यादा असर न तो कभी हुआ है और न ही होगा। अगर यूपी में नई फिल्म सिटी बनने जा रही है तो बॉलीवुड को इससे क्यों डरना चाहिए? और उससे भी ज्यादा उन राजनीतिक दलों को क्यों बिफरना चाहिए, जो बॉलीवुड को अपनी जेब में समझते हैं?
फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत के बाद बॉलीवुड में उथल-पुथल का जो सिलसिला शुरू हुआ था, उसकी परिणति उत्तर प्रदेश में नई फिल्म सिटी के रूप में होने जा रही है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हालिया दो दिनी मुंबई यात्रा ने इस बवाल में नया उबाल ला दिया। योगी ने सितंबर में ऐलान किया था कि वो बॉलीवुड के मुकाबिल यूपी में नई फिल्म सिटी बनाएंगे। तभी से वो महाराष्ट्र की शिवसेनानीत महाआघाडी सरकार के निशाने पर हैं।
कांग्रेस नेता व महाराष्ट्र सरकार में मंत्री अशोक चह्वाण ने आरोप लगाया कि बीजेपी अब यूपी सरकार के नाम पर बॉलीवुड का एक टुकड़ा ले जाने की तैयारी कर रही है, हम वो नहीं होने देंगे। महाराष्ट्र कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने आशंका जताई कि इसके लिए महाराष्ट्र के उद्योगपतियों और बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं को धमकाया जा सकता है। लिहाजा राज्य सरकार प्रदेश के उद्योगपतियों और फिल्मकारों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दे।
एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने आरोप लगाया कि केंद्र की ओर से मुंबई का महत्व कम करने की कोशिशें हो रही हैं। बॉलीवुड और मुंबई का जो प्यार और विश्वास का नाता है उसको कोई भी ठेस नहीं पहुंचा सकता है। वहीं महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल को भी कहना पड़ा कि मुंबई बॉलीवुड नगरी है और इसे कोई उठा कर नहीं ले जा सकता। हालांकि अगर कहीं पर अच्छी सुविधा दी जाती है तो लोग वहां भी शूटिंग कर सकते हैं।
इनमें भी यूपी में नई फिल्मसिटी को लेकर सर्वाधिक आक्रामक शिवसेना रही है। अब उसे राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का साथ भी मिल गया है। शिवसेना और मनसे ने इसे योगी द्वारा मुंबई और प्रकारांतर से मराठी लोगों से बॉलीवुड को ‘छीनने की चाल’ बताया। इसी के चलते मनसे ने तो योगी को ‘ठग’ बताने वाले पोस्टर भी चिपका दिए, जिसे शिवसेना के कब्जे वाली मुंबई महानगरपालिका ने हटवा दिया। मनसे ने अपने एक पोस्टर में लिखा कि ‘दादासाहेब फालके द्वारा बनाई गई फिल्मसिटी को यूपी ले जाने का ये मुंगेरीलाल का सपना है।‘
शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि मुंबई की ‘फिल्म सिटी’ को कहीं और स्थापित करना आसान नहीं है, पहले भी ऐसी कोशिशें की गई हैं। मुंबई का अपना एक शानदार फिल्म इतिहास है।’ यूं कहने को योगी यूपी में निवेशको को आमंत्रित करने के लिए मुंबई गए थे, लेकिन साथ में उन्होंने फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार सहित कुछ अन्य फिल्मी हस्तियों से मुलाकात कर नए फिल्म सिटी प्रोजेक्ट को और हवा दे दी।
दरअसल योगी का यह मुंबई दौरा शिवसेना के बाघ को उसी की मांद में चुनौती देने जैसा था। उन्होंने लखनऊ नगर निगम के बांड बीएसई में लिस्टेड कराए। उद्योगपतियों को यूपी आने का न्योता दिया साथ ही फिल्म सिटी प्लान को और हवा दी। शिवसेना-मनसे इसलिए भी उखड़ीं कि योगी ने जता दिया कि वो केवल कह ही नहीं रहे बल्कि नोएडा में नई फिल्म सिटी बना भी रहे हैं। ये फिल्म सिटी यमुना एक्सप्रेस-वे से सटे ग्रेटर नोएडा सेक्टर-21 में 1000 एकड़ में बनने जा रही है। दावा है कि नई फिल्म सिटी देश के सबसे बड़े और निर्माणाधीन जेवर एयर पोर्ट के पास होगी। यह एयर पोर्ट 6 रन वे वाला होगा।
यूपी के उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य ने पिछले दिनों कहा था कि राज्य में बनने वाली फिल्म सिटी मुंबई फिल्म सिटी से भी बड़ी होगी। इसका निर्माण उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के तत्वावधान में होगा। मशहूर कामेडियन राजू श्रीवास्तव को इस परिषद का अध्यक्ष बनाया गया है। उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिवसेना-मनसे आदि के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि हम मुंबई फिल्म सिटी को कहीं नहीं ले जा रहे, हम तो केवल यूपी में नई फिल्म सिटी, नई आवश्यकताओं के अनुसार, एक नए वातावरण में विकसित करने जा रहे हैं।
योगी ने कहा कि यह फिल्म सिटी आगरा से 1 घंटे की दूरी पर होगी। इसमें बॉलीवुड कलाकारों को भी अपना योगदान देना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि यह फिल्म सिटी महज सरकारी प्रोजेक्ट बनकर रह जाए। तो क्या नई फिल्म सिटी बॉलीवुड का विकल्प बन सकती है? इस बारे में जानकारों की अलग अलग राय हैं। कुछ का मानना है कि यह केवल राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का फिल्म सिटीकरण है। अगर सियासी होड़ और राजनीतिक दखलंदाजी की गरज से कोई नई कलानगरी खड़ी करने का प्लान है तो फेल ही होगा।
लेकिन इसी के साथ यह भी सच है कि फिल्में, टीवी सीरियल्स और अब वेब सीरीज निर्माण के चलते बॉलीवुड पर दबाव काफी बढ़ गया है। इसके लिए मुंबई से बाहर अच्छी लोकेशन, स्टूडियो, डबिंग, मिक्सिंग और गानों की रिकॉर्डिंग आदि सुविधाएं एक ही छत के नीचे मिल सकें तो कई निर्माता बॉलीवुड के बजाए यहीं फिल्म बनाना ज्यादा पसंद करेंगे।
यूं भी मुंबई से बाहर कई शहरों और अन्य लोकेशन्स पर आज भी शूटिंग होती है। उन्हें नई फिल्म सिटी का लाभ मिल सकता है। उत्तर भारत के कई कलाकार, तकनीशियन जो बॉलीवुड में काम करते हैं, यहां आ सकते हैं। बॉलीवुड पर इससे काम का दबाव कम होगा। लेकिन बॉलीवुड जैसा काम करने का माहौल यहां मिल पाएगा या नहीं, यह देखने की बात है। उत्तर प्रदेश में सुरक्षा भी अहम सवाल है। अलबत्ता यूपी सरकार समुचित सुविधाएं देगी और यह क्रम निरंतर रहेगा तो फिल्म सिटी अपने मकसद में कामयाब भी हो सकती है। खासकर भोजपुरी, ब्रज आदि प्रादेशिक भाषाओं में बनने वाली कई फिल्मों की शूटिंग अभी भी यूपी में होती है।
नई फिल्म सिटी प्रादेशिक भाषा फिल्म निर्माण का बड़ा केन्द्र बन सकती है। इससे स्थानीय कलाकारों और तकनीशियनों की पूछ परख भी बढ़ेगी। लेकिन यह सब अभी संभावनाएं हैं। सच्ची फिल्म सिटी या बॉलीवुड केवल सरकारी योजनाओं और राजनीतिक मंशाओं से नहीं बनते। उसके लिए जुनूनी सृजनात्मकता, प्रतिभाओं का खून-पसीना, समर्पण और निरंतर कला साधना भी लगती है। कुछ नया करने के अनंत आकाश में उड़ते रहने की चाहत लगती है। पैसा लगता है, सुविधाएं लगती हैं। जोखिम उठाने का असमाप्त साहस लगता है। इस हिसाब से बॉलीवुड केवल एक ‘फिल्म सिटी’ भर नहीं हैं।
इसी स्तम्भ में 21 सितंबर को मैंने लिखा था कि ‘फिल्म सिटी बनाना आसान है, बॉलीवुड बनाना कठिन।‘ नई फिल्म सिटी को भी फिल्म और मनोरंजन जगत से जुड़े कलाकार और दूसरे लोग ही बनाएंगे। बशर्ते कि वैसी प्रतिभाएं इससे जुड़ें। उन्हें अपना हुनर दिखाने के मौके मिलें, हुनर की कदर हो। देश में पांच फिल्म सिटियां पहले से मौजूद हैं, लेकिन इनमें से कोई भी अब तक बॉलीवुड की बुलंदी को नहीं छू पाया है। नई फिल्म सिटी से ये उम्मीद की जा सकती है।
लेकिन यह सब केवल राजनीतिक लट्ठबाजी से नहीं हो सकता। फिल्म निर्माण तो एक तकनीकी काम है, लेकिन उसे सिनेमा की शक्ल देने के लिए उसमें जान डालनी पड़ती है। इसके लिए प्रतिभा, खून-पसीना, दृष्टि, समर्पण, पैसे के अलावा भी कुछ चाहिए, जिससे कोई बॉलीवुड आकार लेता है। यूं कोशिशें तो पाकिस्तान और बंगलादेश में भी खूब की गईं, लेकिन वहां ऐसा बॉलीवुड आज तक नहीं बन सका।
इसी संदर्भ में एक मराठी ब्लॉगर सौमित्र पोटे ने अपने ब्लॉग ‘किसके पास जाएगा बॉलीवुड’ में लिखा है कि योगी अपने राज्य में फिल्म सिटी बनाने बॉलीवुड की रेकी करने आए थे। लेकिन क्या सचमुच बॉलीवुड वहां स्थानांतरित हो जाएगा? नहीं। पोटे ने प्रख्यात मराठी कवि मंगेश पाडगांवकर की मशहूर कविता की पंक्तियां उद्धृत की हैं। इसका हिंदी अनुवाद है- ‘प्रेम मतलब प्रेम होता है, आपका मेरा सेम होता है।‘ पोटे की पैरोडी है- सिनेमा मतलब सिनेमा होता है, आपका, हमारा सेम नहीं होता है..। क्या आपको भी ऐसा ही लगता है?