रात का कर्फ्यू, दिन में ढील

राकेश अचल

कोरोना से निपटने के लिए ‘वैक्सीन’ अभी तक ‘सीन’ से बाहर है लेकिन सरकारों की उलटबांसियां रोज नजर आ रही हैं। मध्यप्रदेश में विधानसभा उपचुनावों के दौरान जबरन खदेड़ दिया गया कोरोना दोबारा ‘फुलफार्म’ में वापस लौटा तो सरकार ने प्रदेश के पांच बड़े शहरों में रात का कर्फ्यू लगाने का ऐलान कर दिया। मध्यप्रदेश सरकार को ये प्रेरणा गुजरात से मिली। गुजरात वैसे भी आजकल भाजपा शासित हर सरकार का प्रेरणास्रोत है।

रात के कर्फ्यू लगाने के पीछे सरकार का क्या सोच है ये तो सरकार ही जाने लेकिन आम आदमी तो इतना जानता है कि शहरों में भीड़-भाड़ दिन में होती है और संक्रमण का खतरा भी दिन में ज्यादा होता है। मुमकिन है कि सरकार को किसी खुफिया एजेंसी ने बताया हो कि कोरोना संक्रमित लोग रात के वक्त कोरोना फैलाने के लिए निकलते हैं, इसलिए उन्हें रात का कर्फ्यू लगाकर रोका जाना चाहिए।

इस मामले में हम सरकार के किसी फैसले को चुनौती नहीं दे सकते। जनहित का मामला जो ठहरा। पता चला कि हमने या आपने अभी कोई तर्क-वितर्क किया और आप, हम राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिए जाएँ! कायदे से तो सरकार को कोरोना को देशद्रोही घोषित करना था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। होता भी कैसे हमारे यहां कोई कायदा चलता ही कहाँ है? कायदा-क़ानून तो केवल किताबों तक सीमित है। अरे यदि जनता इस कोरोनाकाल में कायदे से रहने लगे, ‘मास्क’ लगाए, दो गज की दूरी रखे तो किसी को क्यों दो गज जमीन के नीचे जाना पड़े या अग्निस्नान करना पड़े।

कहते हैं कि जब जनता नहीं मानती, तब सरकार जनता को मनवाना सिखा देती है, सरकार अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के जनादेश से गदगद है इसीलिए उसने जनसुविधा को देखते हुए दिन के बजाय रात का कर्फ्यू लगाने का निर्णय किया है। रात का कर्फ्यू एक जनहितैषी निर्णय है। किसी को इसका विरोध नहीं करना चाहिए, खिल्ली तो बिलकुल नहीं उड़ाना चाहिए अन्यथा ऐसा करने पर भी जुर्माना लग सकता है।

मैं तो कहता हूँ कि मध्यप्रदेश की सरकार ‘लव-जिहाद’ के खिलाफ क़ानून लाने के बजाय ‘मास्क’ न लगाने के खिलाफ क़ानून लाये तो ज्यादा बेहतर हो, क्योंकि ‘लव-जिहाद’ करने वालों से ज्यादा संख्या ‘मास्क’ न लगाने वालों की है। ये भी देखना चाहिए कि ‘लव-जिहाद ‘ से ज्यादा लोग ‘मास्क’ न लगाने से मर रहे हैं

दरअसल सरकार को मुफ्त की सलाह पसंद नहीं आती। सरकार केवल उसी सलाह को पसंद करती है जो आईएएस और आईपीएस देते हैं। अखिल भारतीय सेवा के लोगों के पास अखिल भारतीय दृष्टि होती है। वे उदारता से विस्तृत परिप्रेक्ष्य में सोचते और देखते हैं। उनके जैसा दृष्टिकोण न नेताओं का होता है और जनता का। कलियुग में अखिल भारतीय सेवाओं के लोग ही भगवान हैं। ये चाहें तो जनता को, सरकार को बचा लें,  और न चाहें तो दोनों को डुबो दें। रात का कर्फ्यू लगाने का फैसला इन्हीं अखिल दृष्टि वालों का फैसला है जिसे हमारे दरियादिल मामू ने विनम्रता से स्वीकार कर लिया है।

रात का कर्फ्यू गुजरात वाले न लगाते तो मध्यप्रदेश वाले इस बारे में सपने में भी न सोचते। मध्यप्रदेश वाले सपने देखते ही नहीं है तो सोचते कहाँ से? यहां सपने देखने और सोचने का काम जनता का नहीं सरकार का है। सरकार जो देखती है और सोचती है उसी पर जनहित में अमल किया जाता है। मामू ने सरकार का सपना देखा और देखिये जोड़तोड़ कर चौथी बार सरकार बना ली। अब सपना देखा कि कोरोना रात के कर्फ्यू से कम हो जाता है तो रात का कर्फ्यू लगाने का फैसला कर लिया। अब कोरोना दिन में कुछ भी करे, किसी को कोई चिंता नहीं, फ़िक्र नहीं।

हकीकत ये है कि प्रदेश के गृहमंत्री से लेकर तमाम मंत्री और अफसर कोरोना से डरते ही नहीं हैं। जब मंत्री नहीं डरते तो जनता क्यों डरने लगी? नेता ‘मास्क’ नहीं लगाते तो जनता क्यों ‘मास्क’ लगाए। नेता जब ‘सोशल डिस्टेंस’ नहीं पालते तो जनता ऐसा क्यों करे भला? कहते हैं न ‘महाजनो येन गत: स पंथा:’। यानि महान लोग जो करते हैं जनता उसी का अनुसरण करती है। नेता तो नेता होता है बच जाता है,  लेकिन जनता फंस जाती है। संक्रमित हो जाये तो राम-नाम सत्य ही समझिये जनता का। क्योंकि जनता के लिए सरकारी अस्पतालों में इंतजाम नहीं है और निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर लूट-खसोट जारी है।

हाँ तो मैं रात के कर्फ्यू का स्वागत करना भूल गया। मुझे यकीन है कि सरकार के इस कदम से प्रदेश में कोरोना विस्फोट पर रोक लगेगी। मेरी तरह आपको भी सरकार पर यकीन करना चाहिए। एक-दूसरे पर यकीन से ही दुनिया चलती है, सरकार चलती है, व्यवस्थाएं चलती हैं। हमारे मनसुख कहते हैं कि सरकार कभी गलत हो ही नहीं सकती। सरकार सच्चाई का दूसरा नाम है। सरकार ने कहा है कि रात के कर्फ्यू से कोरोना रुकेगा, तो रुकेगा। कोरोना के पिताश्री को भी रुकना होगा। सरकारी फरमान भी आखिर कोई चीज होती है!

देश दुनिया में जहाँ-जहां भी कोरोना रफ्तार पकड़ रहा है, वहां भी कोरोना रोकने के इस गुजराती फार्मूले यानि ‘रात के कर्फ्यू’ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। रात के कर्फ्यू से जनता भी खुश और कोरोना भी खुश। सबको खुश रखना ही सरकारों का उद्देश्य होता है। लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकारों का ये नैतिक दायित्व है कि वे जो भी करें, फैसले लें वे सबको खुश करने वाले हों। हमारे प्रधान जी ने भी कहा ही है- ‘सबका साथ, सबका विकास’ जो काम सबके लिए किया जाता है वो सराहनीय होता ही है। कोई यदि ऐसे कामों की आलोचना करता है उसे या तो देशद्रोही कहा जाना चाहिए या फिर ‘ खिसका’ हुआ। समझदार आदमी सरकार के किसी भी लोकहितकारी फैसले का विरोध कर ही नहीं सकता।

रात के कर्फ्यू के साथ ही अगर सरकार दिन में पुलिस को सोने की छूट और दे दे तो सरकार का भला हो। हमारी पुलिस वैसे भी दिन में सोती ही है। अगर ऐसा न होता तो क्यों सत्तर साल की वृद्धा नृशंसता का शिकार होती? बहरहाल अब रात को पुलिस कर्फ्यू लागू करने के लिए जागरण करेगी तो उसे दिन में सोने का अवसर मिलना ही चाहिए। ये मानवाधिकारों के लिए भी जरूरी है और पुलिस के स्वास्थ्य के लिए भी। दिन के इंतजाम जनता खुद देख लेगी। वैसे भी हमारे सूबे में दिन-दहाड़े होता भी क्या है? जो होता है रात के अँधेरे में होता है। दिन के उजाले में तो सिर्फ पुतले जलाये जाते हैं। वे भी माफिया नेताओं के, किसी लोकसेवक के नहीं। पुतले जलाने के लिए रात की जरूरत नहीं होती।

चलते-चलते आपको बता दें कि देश में अभी कोरोना से 9, 050, 613 लोग संक्रमित हुए हैं और कुल 132, 764 मरे हैं। हमारे सूबे में जहाँ रात का कर्फ्यू लगाया जा रहा है कोरोना केवल एक लाख अठासी हजार लोगों को ही संक्रमित कर पाया है, मरे तो केवल 3129 ही हैं। इतने तो सड़क हादसों में ही मर जाते हैं, आत्महत्याएं कर लेते हैं सो चिंता की कोई बात नहीं है। दिन में चैन से घूमो और रात को कर्फ्यू के साथ सो जाओ। कोरोना कुछ भी नहीं बिगाड़ पायेगा आपका।

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