अजय बोकिल
इस दिवाली एक खबर यह भी पढ़ने मिली कि लोग पानी-पूरी खाने फिर निकल पड़े हैं। कोरोना लॉकडाउन में पानी पूरी वालों का धंधा भी बैठ गया था। अमूमन रोज ही पानी पूरी सूतने वालों के मुंह भी बेस्वाद हुए जा रहे थे। लोग सोचे बैठे थे कि कब कोविड 19 की दहशत कम हो और कब सड़क किनारे खड़े किसी ठेले पर दबाकर पानी पूरी खाएं। यूं पानी पूरी बरसों से अपने चटपटेपन की वजह से चटोरों की हिट लिस्ट में है। लेकिन इधर कोरोना काल में सोशल डिस्टेसिंग के चलते पानी पूरी में भी कुछ नवाचार देखने को मिल रहा है।
पंजाब के अमृतसर में एक चाट वाले ने गोल गप्पे (पानी पूरी) के साथ मनपसंद पानी के लिए मशीन तैयार की है, जिसमें हर नल से अलग स्वाद का पानी निकलता है। आप गोल गप्पा उठाइए। मनचाहा पानी भरिए और गप कर जाइए। हालांकि इस नवाचार पर कई परंपरावादी पानी पूरी प्रेमियों को ऐतराज हो सकता है कि चटपटे पानी से पूरी और चाट वाले की ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग’ पानी पूरी के स्वाद की ही हत्या है।
एक बात और। पानी पूरी सौ फीसदी स्वदेशी आयटम है। खाद्य इतिहासकार डॉ. पुष्पेश पंत के अनुसार पानी पूरी की ईजाद करीब सवा सौ साल पहले यूपी/ बिहार में हुई। किसी ने पहले छोटी पूरी बनाई होगी और उसे चटपटे पानी के साथ खाया होगा। डॉ. पंत का यह भी मानना है कि राज कचोरी ही पानी पूरी की पूर्वज है। पाकशास्त्र मानव विज्ञानी कुरुष दलाल का मानना है कि पानी पूरी का जन्म महाभारत काल में हुआ।
कहते हैं कि पांडवों के अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी ने अपनी सास कुंती को इम्प्रेस करने पूरे गुंधे हुए आटे को एक पूरी में तब्दील कर दिया। उसमें थोड़े उबले हुए आलू और पानी मिलाया अपने पांचों पतियों को खिलाया। इस तरह पानी पूरी की शुरुआत हुई। एक कहानी और प्रचलित है। 17 वीं सदी में मुगल बादशाह शाहजहां के शाही हकीम ने दिल्ली की अवाम को सलाह दी कि वो अपने खाने में तले हुए और मसालेदार व्यंजनों का इस्तेमाल ज्यादा करें ताकि यमुना नदी के पानी की क्षारीयता को बैलेंस किया जा सके। नतीजा यह रहा कि यमुना के किनारे पर चाट मसाले के साथ पूरी बेचने वालों की लाइन लग गई। यही आगे चलकर पानी पूरी कहलाई। प्रवासी मजदूर इसे देश के बाकी हिस्सों में ले गए।
जो भी हो, यह हकीकत है कि आज देश में पानी पूरी करोड़ो भारतीयों की खाद्य कमजोरी बन चुकी है। पानी पूरी के चाहने वालों में महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में काफी ज्यादा निकलेगी। पानी पूरी भारत ही क्यों, पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का पसंदीदा स्ट्रीट फूड है। हमारे देश में ही इसे कई नामों से पुकारा जाता है। मसलन गोल गप्पा, पानी पताशे, फुलकी, पुचका, गुपचुप आदि। इनके स्वाद में थोड़ा-थोड़ा फर्क होता है। अंग्रेजी में इसे वॉटर बॉल्स, फ्राइड व्हीटन केक, वॉटरी ब्रेड या क्रिस्प स्फीयर आदि कहते हैं। लेकिन उसमें ‘पानी पूरी’ वाली बात नहीं। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में ‘पानी पूरी’ शब्द को 2005 में जगह मिली।
नाम भले अलग-अलग हों, रेसिपी मूलत: एक ही है। इसकी पूरी सूजी, मैदा या गेहूं के आटे से बनती है। गोल, कड़क और फूल कर कुप्पा होना ही इस पूरी की खासियत है। इस पूरी में भरा तीखा चटपटा स्वादिष्ट मसालेदार पानी और साथ में उबले और मैश किए आलू का मिक्स्चर ही इस व्यंजन की जान है। पानी पूरी सीधे उंगलियों से खाई जाती है, जिसमें पूरी पूरे मुंह को घेर लेती है। इसे गपाने के बाद आदमी कुछ और नहीं कर सकता। पानी पूरीवाला भी धैर्यवान होता है। खाने वाले की ‘बस एक और…’ की फरमाइश वह बिना माथे पर सलवटें डाले पूरी रहता है।
दरअसल पानी पूरी स्वभावत: समानता और स्वच्छंदता के आग्रह से जन्मी डिश है। पानी पूरी का दोना हाथ में लिए हर अमीर गरीब, छोटा बड़ा इंसान पानी पूरी वाले के आगे यकसां याचक भाव से खड़ा दिखता है। कई लोग पानी पूरी को पाचक आयटम की तरह खाने के बाद खाते हैं तो बहुतों के भोजन का आगाज ही पानी पूरी से होता है। जब तक उसका चटपटा स्वाद भीतर तक न समा जाए, बाकी खाने में उनका मन ही नहीं लगता। कई महिलाएं पानी पूरी की इस कदर दीवानी होती है कि वो एक बार पति को छोड़ सकती हैं, लेकिन पानी पूरी को नहीं।
हर पानी पूरी वाला महिलाओं की इस कमजोरी को जानता है। इसलिए सामने कड़क पूरियों का ढेर इस तरह लगा के रखता है मानो गोवर्धन पर्वत हो। कई शहरों में पानी पूरी/गोल गप्पे खाने की प्रतियोगिताएं भी होती हैं यानी कौन कितनी पानी पूरी खा सकता है। पानी पूरी सूतने की लत मोबाइल गेम खेलने जैसी है। पता ही नहीं चलता कि कितनी अंदर चली गईं। उसके बाद भी ‘ये दिल मांगे मोर..’ वाली तलब बाकी रह जाती है। हालांकि जरूरत से ज्यादा पानी पूरी खाना सेहत के लिए हानिकारक भी हो सकता है।
इस देश में रोजाना औसतन कितनी पानी पूरियां खप जाती हैं, इसका कोई व्यवस्थित आंकड़ा मौजूद नहीं है। लेकिन इसकी तादाद करोड़ों में हो सकती है। पानी पूरी ने तो अब कई विदेशियों को भी अपने स्वाद-पाश में बांध लिया है। इसका बड़े पैमाने पर निर्यात भी हो रहा है। बाजार में पानी पूरी की बढ़ती मांग के मद्देनजर ऑटोमैटिक पानी पूरी मेकर और पानी पूरी फ्रायर आ गए हैं तो पानी पूरी किट भी उपलब्ध है।
पिछले दिनों गुजरात के बनासकांठा में भारत प्रजापति ने पानी पूरी एटीएम भी तैयार किया है। वजह यह थी कि पानी पूरी भारत प्रजापति की फेवरेट डिश है और लॉकडाउन में वो इसे बुरी तरह मिस कर रहे थे। मन नहीं माना तो जुलाई में कबाड़ से बना डाली पानी पूरी एटीएम मशीन। प्रजापति की खुद की मोबाइल रिपेयरिंग शॉप है। इस मशीन से मैश आलू और पानी से भरी पूरी बाहर आती है।
पाक सलाहकार कल्याण करमाकर ने अपनी पुस्तक ‘द ट्रेवलिंग बेली’ में पानी पूरी को ‘फूडी एडवेंचर स्पोर्ट’ (खवैयों के साहसिक खेल) की संज्ञा दी है। कल्याण का मानना है खोमचे वाले या ठेले वाले की पानी पूरी के स्वाद की नकल रेस्टारेंट वाले कभी नहीं कर सकते। किसी ने ठीक ही कहा है- जिन्दगी के गम में कुछ इस तरह लीन हो गए, पता ही नहीं चला, गोलगप्पे कब दस के तीन हो गए।