लक्ष्‍मी जी और उल्‍लू की गौरवगाथा

राकेश अचल

दीपावली आयी और चली भी गयी, छोड़ गयी अपने पीछे हजारों टन कचरा और मनों-मन प्रदूषण। घर में जो चार पैसे बचाकर रखे भी थे वो भी लक्ष्मी जी ने अपने चुंबक से खींच लिए, अब जेब खाली है। जेब कब भरेगी? कोई नहीं जानता, जेब भी नहीं जानती। आम आदमी के सर पर चढ़ा लक्ष्मी जी का खुमार अब धीरे-धीरे उतरने लगा है।

लक्ष्मी जी के आने-जाने से कोई गौरवान्वित हो या न हो लेकिन उलूक जरूर गौरवान्वित अनुभव करते हैं। उलूक की सवारी जो करती हैं लक्ष्मी जी। लक्ष्मी जी की अपनी पसंद है वरना आजकल के सुपरसोनिक युग में कोई उलूक की सवारी करेगा भला? लक्ष्मी और उलूक कनेक्शन के बारे में पता करना जरूरी है लेकिन तमाम जरूरी काम ऐसे हैं कि हम आजतक इस विषय पर कोई शोधकार्य नहीं कर सके।

विसंगति देखिये कि दीपावली पर दीपक छप्पर से लेकर महलों तक में मिट्टी के दिए जलते हैं, लेकिन लक्ष्मी जी उन घरों में ज्यादा जातीं हैं जिनमें ज्यादा रोशनी होती है। हमने कभी भूले-भटके भी लक्ष्मी जी को झोपड़ियों में जाते नहीं देखा, जबकि असली कामना इन झोपड़ियों में रहने वाले लोग ही करते हैं। महलों और अटारियों में रहने वाले लोगों को लक्ष्मी की कामना नहीं होती, उन्हें भूख होती ही अपने आप है, और भूख भी ऐसी होती है कि लक्ष्मी जी भी हार मान जाती हैं।

आम आदमी की तरह हमने भी इस बार लक्ष्मी जी की पूजा की लेकिन उन्हें हमेशा की तरह नहीं आना था सो वे नहीं आयीं। कहने लगीं की वे तो आना चाहती थीं किन्तु उन्हें उल्लू ने भटका दिया। अब उल्लू में न गियर होता है और न ब्रेक इसलिए कोई कुछ नहीं कर सकता। उल्लू की मर्जी है कि वो लक्ष्मी को कहाँ ले जाये। जानकार बताते हैं कि उल्लू भी लक्ष्मी जी को लाने-ले जाने का कमीशन खाता है। उसे जिन घरों से से ज्यादा कमीशन मिलता है वो लक्ष्मी जी को वहीं ज्यादा ले जाता है। अब उल्लू के खिलाफ तो कहीं शिकायत की नहीं जा सकती?

वैसे हमारे घर में सरस्वती जी विराजती हैं। वे अक्सर कहती हैं कि आप बेकार लक्ष्मी की आराधना, कामना करते हो, वो जहां मैं होती हूँ, वहां नहीं आती। पता नहीं उसे मुझसे क्या परेशानी है? मैं हैरान दोनों बहनों के बीच का ये वैर देखकर। मुझे तो दोनों की चाह है। मैं तो दोनों को सम्मान देना चाहता हूँ, मेरी तरह दूसरे लोग भी सरस्वती के साथ लक्ष्मी को भी अपने घर में रखना चाहते हैं, लेकिन लक्ष्मी जी सुने तब न!

मुश्किल ये है कि दुनिया में सरस्वती से सबका काम नहीं चलता, लेकिन लक्ष्मी जी से चलता है। बिना लक्ष्मी के खाना-पीना, दवा, दारू, घर-मकान कुछ हासिल नहीं होता। सरस्वती तो ये सब दिला नहीं सकतीं। उनके पास देने के लिए यश है लेकिन यशस्वी लोग भी बिना धन-वैभव के पूजे नहीं जाते, वे केवल आदरणीय होकर रह जाते हैं। हमारे पास पिछले दिनों लखनऊ से एक सरस्वती पुत्र का संदेशा आया था कि उन्हें कहीं से भी पांच हजार रुपये भिजवा दूँ। मैं भिजवाना भी चाहता था किन्तु मेरे पास भी तो होना चाहिए।

लक्ष्मी जी के आने से पहले घरों से कचरा निकाला गया था और अब उनके जाने के बाद भी घरों से कचरा निकाला जा रहा है। लक्ष्मी जी को कचरा पसंद नहीं है और सरस्वती जी जिल्दों में बंधे कचरे से ज्यादा कुछ है नहीं। दीमक तक लक्ष्मी जी को हाथ नहीं लगाती, उसे भी सरस्वती जी पसंद हैं। किताबों की जिल्दों में कैद सरस्वती को चट कर जाती हैं। यानि दीमक हो या उल्लू सब गरीब से छीनना चाहते हैं, देना कोई नहीं चाहता।

सरस्वती जी को गायन-वादन पसंद है, लेकिन लक्ष्मी जी को इन कलाओं में कोई रुचि नहीं। उनका मानना है कि वे जहां विराजेंगी वहां गायन-वादन अपने आप चला आएगा अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए। बात सच भी है और कोरोनाकाल में सही साबित भी हो गयी। कोरोना भी वहां कम ही जाता है जहां लक्ष्मी जी होतीं हैं। कोरोना भी जानता है कि किन तिलों में तेल है और किन में नहीं।

कहने को हर घर में महिलाओं को गृहलक्ष्मी कहा जाता है लेकिन वे लक्ष्मी होती हैं इसमें मुझे संदेह है, क्योंकि उनके होने से लक्ष्मी की आवक कम निकासी ज्यादा होती है। गृहलक्ष्मियाँ एक बार शॉपिंग के लिए निकल पड़ें तो पूरा घर खाली कर दें। वे अपने पतियों को उल्लू समझती हैं और उल्लू उन्हें उल्लू समझता है। जबकि होता उलटा है। हमारे मनसुख दावे के साथ कहते हैं कि लक्ष्मी जी तो आम आदमी के पास रहना चाहती हैं किन्तु कोई लक्ष्मी जी को अकेले कहीं जाने ही नहीं देना चाहता। सबने लक्ष्मी जी को कैद करके रखा है। कहीं बेचारी तिजोरी में कैद है तो कहीं लॉकर में। उन्‍हें क्षणिक आजादी दीपावली के दिन ही मिलती है, अब इस क्षणिक आजादी में लक्ष्मी जी क्या कर सकती हैं?

लक्ष्मी की लोकप्रियता अपार है। आप देखिये कि आपको देश में लक्ष्मी नारायण मिल जायेंगे, लक्ष्मी दास मिल जायेंगे, लक्ष्मीपत मिल जायेंगे लेकिन कोई सरस्वती नारायण या सरस्वती प्रसाद या सरस्वतीपत नहीं मिलेगा। बेचारी सरस्वती, उसका न कोई दास है और न कोई नारायण, सब उसके बेटे हैं कंगाल बेटे। मंचों से दहाड़ते बेटे या किसी अस्पताल में इलाज करा रहे बेटे। सरस्वती अपने बेटों को लेकर सदैव चिंतित रहती हैं, लक्ष्मी को इस तरह की कोई फ़िक्र नहीं होती। देश में लक्ष्मी जी के न जाने कितने मंदिर हैं जबकि सरस्वती जी ज्यादा से ज्यादा स्कूलों और महाविद्यालयों के आंगन से आगे नहीं बढ़ पाई हैं।

कुल मिलाकर आज का युग सरस्वती का नहीं बल्कि लक्ष्मी का है। इसलिए सब लक्ष्मी के आगे-पीछे डोल रहे हैं। सबको लक्ष्मी की चाह है, सरस्वती जी की नहीं। हम जैसे कितने हैं जो सरस्वती जी का मान बनाये हए हैं , वरना कौन पूछता है सरस्वती जी को ?लक्ष्मी से सब कुछ खरीदा जा सकता है।

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