राकेश अचल
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने संस्मरण ‘ए प्रॉमिस्ड लैंड’ में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बारे में अपना मत व्यक्त कर कोई बम नहीं फोड़ा है। उन्होंने कहा है कि- ‘’उनमें एक ऐसे ‘घबराए’ हुए और अनगढ़ छात्र के गुण हैं जो अपने शिक्षक को प्रभावित करने की चाहत रखता है, लेकिन उसमें ‘विषय’ में महारत हासिल करने की योग्यता और जूनून की कमी है।’ ओबामा की इस टीप से कांग्रेसियों को भड़कने के बजाय इस टीप का स्वागत करना चाहिए, एक प्रतिष्ठित लेखक का सम्मान करने का यही सम्मानजनक तरीका है।
मुझे हैरानी है कि ओबामा की किताब में राहुल गांधी का इस तहर से जिक्र करना भारतीय सोशल मीडिया यूजर्स को रास क्यों नहीं आया। इस टीप से दुखी राहुल के प्रशंसकों ने ट्विटर पर ओबामा के खिलाफ कैंपेन चला दिया है, जो #माफ़ी_माँग_ओबामा हैशटैग से ट्रेंड कर रहा है। एक यूजर ने लिखा कि जिस तरह से ओबामा ने राहुल गांधी के लिए भाषा का इस्तेमाल किया है, उसकी हम निंदा करते हैं। लेकिन मुझे इस टीप में कुछ भी निंदनीय नहीं लगता, कम से कम उन्होंने राहुल को हमारे देश के नेताओं की तरह ‘पप्पू’ तो नहीं कहा। ओबामा की टीप के मुकाबले ‘पप्पू’ शब्द ज्यादा अपमानजनक है।
मैंने अभी ये किताब पढ़ी नहीं है। मैं आज ही इस किताब के लिए आर्डर कर रहा हूँ। मुझे खुशी है ओबामा ने पदमुक्त होने के बाद कम से कम लिखने-पढ़ने का एक गंभीर काम तो किया। हमारे नेता तो इस मामले में बड़े कृपण हैं। एक मामूली लेखक होने के नाते मुझे पता है कि संस्मरणों की किताब में सब मनचीता नहीं होता। मैंने जब अपनी स्थानीय स्तर की एक किताब लिखी थी तो मुझे एक मंत्री ने अदालत में घसीट लिया था। लेकिन बाद में उन्हें अपनी गलती समझ आ गयी और मामला रफा-दफा हो गया। मतलब संस्मरणों में ईमानदारी होती है, वे किसी को आहत करने के लिए नहीं लिखे जाते। हर लेखक का अपना मूल्यांकन होता है। उसे चुनौती नहीं देना चाहिए, वो भी तब जबकि लेखक और संबंधित पात्र सवाल-जवाब के लिए मौजूद हों।
ओबामा की टीप पर राहुल के चाहने वालों को प्रतिक्रिया करने से पहले राहुल से ही पूछ लेना चाहिए कि वे ओबामा सर की टीप से इत्तफाक रखते हैं या नहीं? वे ओबामा की टीप से आहत हुए हैं या नहीं? यदि राहुल गांधी सचमुच ओबामा की टीप पर अपनी प्रतिक्रिया देकर उसका प्रतिवाद करें तो उनका समर्थन किया जा सकता है। लेकिन राहुल गांधी तो मौन हैं। उन्होंने इस बारे में एक शब्द नहीं कहा। मुमकिन है कि उन्होंने भी मेरी तरह ओबामा की किताब अभी न पढ़ी हो और यदि पढ़ी भी हो तो उस पर प्रतिक्रिया देना मुनासिब न समझा हो।
ओबामा ने अकेले राहुल गांधी के बारे में ही अपने अनुभव नहीं लिखे, उन्होंने अमेरिका के पूर्व रक्षा मंत्री बॉब गेट्स और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में भी लिखा है और दोनों में बिल्कुल भावशून्य सच्चाई/ईमानदारी बताई है। इसमें कहा गया है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ओबामा को शिकागो मशीन चलाने वाले मजबूत, चालाक बॉस की याद दिलाते हैं। पुतिन के बारे में ओबामा लिखते हैं, ‘शारीरिक रूप से वह साधारण हैं।’ ओबामा का 768 पन्नों का यह संस्मरण 17 नवंबर को बाजार में आने वाला है। अमेरिका के पहले अफ्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने अपने कार्यकाल में दो बार 2010 और 2015 में भारत की यात्रा की थी।
जाहिर है कि भारत के लोग जितना राहुल गांधी के बारे में जानते हैं उतना ओबामा के बारे में नहीं जानते होंगे। ओबामा की टीप उन्हें इसलिए भी बुरी लग सकती है क्योंकि ये भारत के एक बड़े नेता के बारे में की गयी है। लेकिन हकीकत ये है कि ओबामा एक सुलझे हुए नेता हैं और वे तब भारत आये थे जब कांग्रेस की सरकार थी। वे दूसरी बार भारत तब आये थे जब यहां भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन की सरकार थी। वे दोनों बार राहुल गांधी से मिले थे, क्योंकि राहुल एक राष्ट्रीय नेता थे। वे यदि ऐसी ही टीप आज के प्रधानमंत्री के बारे में करते तो मुमकिन है कि बखेड़ा इससे भी ज्यादा बड़ा होता। भक्तगण अब तक ओबामा के पुतले जला चुके होते। गनीमत है कि कांग्रेसियों ने अभी तक ओबामा के पुतले नहीं जलाये।
राहुल गांधी ओबामा की नजरों में कैसे हैं इसका भारत के लोगों पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। जैसे हमारे प्रधानमंत्री जी ट्रम्प के लिए वोट मांगकर भी उन्हें नहीं जिता पाए वैसे ही ओबामा भी राहुल को कम जुनूनी बता देने से वे हारने या जीतने वाले नहीं हैं। भारत के लोग अपने नेताओं के बारे में जाहिर है ओबामा से अधिक जानते हैं और उसी के अनुरूप फैसले करते हैं। हमें तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री जी जिस राहुल को फूटी आँख नहीं देखना चाहते उसके बारे में अमेरिका के एक पूर्व राष्ट्रपति की कोई धारणा तो है।
मेरा तो सुझाव है कि राहुल गांधी को भी अपने अनुभवों पर कोई संस्मरणात्मक किताब लिखना चाहिए। वे भले ही प्रधनमंत्री नहीं बने किन्तु उनके पास दुनिया के तमाम नेताओं से मिलने, बैठने और गपशप करने का अनुभव तो है ही। राहुल चाहें तो अपने देश के नेताओं के बारे में भी लिख सकते हैं। लेकिन मैं जानता हूँ कि लिखना कोई आसान काम नहीं है। लिखकर आप या तो लोकप्रिय होते हैं या अलोकप्रिय। ये जोखिम लेने वाला ही लेखक हो सकता है। लिखना और तोते पालना दो अलग-अलग काम हैं, अलग-अलग पसंद भी, मैं सभी का समान रूप से सम्मान करता हूँ, क्योकि पसंद अपनी-अपनी, ख्याल अपना-अपना होता है, होना भी चाहिए।