परम-पूज्य करवा के लिए व्रत

राकेश अचल

कहने को आज है तो गणेश चौथ, लेकिन पूजे जा रहे हैं ‘करवे’। ये वे करवे हैं जिनमें कुछ मिट्टी के बने हैं तो कुछ शक्कर के। किस्मत वाले वे हैं जो फैन्सी करवे हैं। एक हमें छोड़कर टीवी के तिवारी जी से लेकर हप्पू सिंह तक आज अपनी घराड़ियों के साथ करवा-चौथ का उपवास कर रहे हैं। मन तो हमारा भी हुआ लेकिन हमने उपवास की योजना स्थगित कर दी।

आप शायद नहीं जानते कि ‘स्थगन’ में कितना आनंद है। आनंद ही नहीं परमानंद है सर! हम तो देखते हैं अपनी सरकार को, जो कोरोना की आड़ में बीते मार्च से सब कुछ स्थगित किये बैठी है। ऐसे में क्या हम आम आदमी एक व्रत स्थगित नहीं कर सकते? लोकतंत्र में जो अधिकार सरकार को हैं वे ही अधिकार आम आदमी को भी हैं। दोनों एक ही संविधान से बंधे हैं भाई। तो हमने व्रत स्थगित कर दिया। हमारी श्रीमती भी जानती हैं कि हम सदा से उनके वामांग रहे हैं। वे भी कम वामी नहीं हैं। यदि हम उत्तर को जाते हैं तो वे दक्षिण की ओर चल पड़तीं हैं लेकिन कृपा है ऊपर वाले की कि बीते चार दशक से हम अपनी-अपनी दिशा से भटके नहीं हैं।

आजकल करवा चौथ का व्रत चौथ वसूली का व्रत हो गया है। पत्नियां इस व्रत के मौके पर अपने पतियों से जो भी मन में आता है मांग लेती हैं। व्रत के बहाने आप इसे चौथ वसूली कह सकते हैं। मैं इस मामले में सदा सतर्क रहता हूँ इसलिए इस चौथ वसूली से बचने के दर्जनों उपाय खोज कर रखता हूँ। मान लीजिये फिर भी पकड़ा जाऊं तो हल्के में छूटने का प्रयास करता हूँ। इस बार मैंने कोरोना काल को अपनी ढाल बनाया है। सरकार इस मामले में मेरी प्रेरणा स्रोत है। मैंने श्रीमती जी को अनेक अख़बारों,पत्रिकाओं की कतरनें दिखाकर बता दिया है कि जब देश की अर्थव्यवस्था बेपटरी है तो मुझ नाचीज की अर्थव्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है।

मेरी तरकीब तो काम कर गयी है, मैं चौथ वसूली से बच गया हूँ। श्रीमती जी गए साल की साड़ी को ही नयी साड़ी मानकर पहन रही हैं आज। गहने निकालने हम आलस में बैंक गए नहीं। हमने श्रीमती जी को समझा दिया कि वाणी के आभूषण से बड़ा दुनिया में कोई दूसरा आभूषण नहीं। सोने-चांदी, हीरे-मोती के आभूषण तो क्षीण हो जाते हैं, किन्तु वाणी का आभूषण कभी क्षीण नहीं होता, इसलिए वाणी का आभूषण ही धारण कीजिये। श्रीमती जी ने भी प्रायमरी में ‘केयूरा न विभूषयन्ति पुरुषं’ वाला श्लोक पढ़ा था, इसलिए मन मारकर मेरी बात मान ली। इसीलिए कहता हूँ कि पत्नी थोड़ी-बहुत पढ़ी हो तो ठीक रहता है।

आपको पता है ही कि मैं एक भावुक लेखक हूँ, मैं करवाचौथ पर एक ‘मस्त’ उपन्यास लिखना चाहता था, लेकिन तमाम रिसर्च के बाद भी मैं इस व्रत के निर्धारणकर्ता की खोज नहीं कर पाया। मैंने तमाम पुस्तकालय और गूगल खोज मारा, मुझे कहीं भी ये पता नहीं चला कि आखिर इस व्रत के करने से करवों की उम्र कैसे बढ़ जाती है। मुझे इस बारे में भी कोई सूचना नहीं मिली कि इस व्रत को करने वालियां आखिर छलनी लगाकर ही चन्द्रमा और अपना करवा क्यों देखती हैं। मेरी कमजोरी है कि मैं बिना आधिकारिक जानकारी के कुछ लिखता नहीं इसलिए मैंने फिलहाल उपन्यास ‘करवा चौथ’ लिखने की योजना स्थगित कर दी है।

करवा चौथ व्रत की तैयारियों के लिए श्रीमतियाँ अपनी सुमति और कुमति से बड़ी व्यापक तैयारियां करती हैं, इसमें हैसियत ज्यादा महत्वपूर्ण रोल निभाती है। कोरोनाकाल में जमीन पर आ चुकी अर्थव्यवस्था के कारण साठ फीसदी आबादी सड़क छाप मिट्टी के करवे खरीद रही है। तीस प्रतिशत ने शक्कर के मीठे करवे खरीदे हैं। दस फीसदी ने ही सोने-चांदी से मढ़े करवे या जेवर खरीदे हैं।

मेरे ख्याल से कोरोनाकाल को देखते हुए सरकारों को महिलाओं के लिए करवा खरीदने के लिए कुछ न कुछ राज-सहायता (सब्सिडी) जारी करना चाहिए थी। यदि सरकार ये प्रगतिशील कदम उठा लेती तो उसे बिहार विधानसभा के चुनावों के साथ ही मध्यप्रदेश समेत तमाम राज्यों में होने वाले उप चुनावों में भी खासा फायदा हो जाता। लेकिन अब क्या? रात गयी, बात गयी। अब इस बारे में आने वाले बजट में प्रावधान करना चाहिए।

हमारे पड़ोस में एक पंडित जी रहते हैं, 86 के हो गए हैं, बड़े दुखी हैं, कहते हैं कि उनकी श्रीमती जी के करवा प्रेम की वजह से उन्हें मुक्ति नहीं मिल पा रही है। वे हर साल एक साल के लिए ‘रिन्यू’ हो जाते हैं। पंडित जी अध्ययनशील हैं, अक्सर सवाल करते हैं ‘क्यों राकेश जी! करवों की भी ‘एक्सपायरी’ होना चाहिए कि नहीं?’ ये तो नहीं हो सकता कि आप साल में एक दिन का व्रत रखकर अपने करवे को पूरे साल प्रताड़ित करो?’ मैं पंडित जी का दर्द समझता हूँ लेकिन उनकी कोई इमदाद नहीं कर पाता। उनकी तो क्या मैं अपनी ही इमदाद नहीं कर पाता। इसलिए हमेशा पंडित जी के सामने निरुत्तर रहता हूं, बिलकुल अपनी सरकार की तरह। अपनी सरकार भी जनता के सवालों के उत्तर कब देती है भला?

करवाचौथ के दिन मैं अक्सर सोचता हूँ कि जनकी पत्नियां मोक्ष को प्राप्त हो गयी हैं या जिन्होंने अपनी पत्नियों का परित्याग कर दिया है, उनकी लम्बी उम्र के लिए कौन प्रार्थना करता है? बिना इस व्रत के प्रभाव के कोई कैसे दीर्घायु हो सकता है? हमारे आयुर्विज्ञान में भी व्रत के फायदे गिनाये गए हैं। मुझे लगता है कि ऐसे विधुरों की कुछ आभासी या ‘हिडन’ पत्नियां अवश्य होंगी। यदि न होतीं तो ये विधुर या सेमी-विधुर करवे, इतनी मौज-मस्ती से रह ही नहीं सकते थे। हालांकि ऐसे विधुरों को दुनिया में तोते उड़ाते देखा जाता है। वे या तो खुद तोते उड़ाते हैं या फिर उनके खुद के तोते उड़ जाते हैं।

बहाल मैं जैसे होली-दीवाली, पंद्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी पर सबको शुभकामनायें देता हूँ, उसी तरह देश की तमाम सधवाओं को उनके सौभाग्यवती बने रहने के लिए इस करवाचौथ पर अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ। भगवान से प्रार्थना है कि सबके करवे सुरक्षित और सुखी रहें फिर चाहे वे मिट्टी के बने हों या शक्कर के। उन्हें किसी की नजर न लगे।

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