राकेश अचल
बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी हारे या जीते इससे उसे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि उसने अपनी असली ताकत अब लोकसभा के साथ ही राज्य सभा में भी बढ़ा ली है। राज्य सभा में हमेशा मात खाने वाली बीजेपी को अब किसी का मोहताज नहीं होना पडेगा। अब 242 सदस्यों वाली राज्य सभा में राजग के 104 सदस्य हो गए हैं। राजग की इस दिग्विजय का श्रेय येन-केन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिस्से में ही जाता है।
संसदीय इतिहास में कांग्रेस ने पहली बार राज्य सभा में अपनी ताकत को गंवाया है। कांग्रेस के पास अब कुल जमा 38 सदस्य रह गए हैं, इस संख्या के बल-बूते अब यूपीए, भाजपा गठबंधन की सरकार को एक पल के लिए भी नहीं रोक पाएगी, यानि आने वाले दिनों में भाजपा संसद में जो चाहे सो कर सकती है। अब शायद ही उसका कोई विधेयक समर्थन के अभाव में अस्वीकार हो। पिछले दिनों राज्य सभा में ध्वनिमत को लेकर लांछित हुए उप सभापति को भी अब कामकाज करने में कोई परेशानी नहीं होगी। क्योंकि अब उन्हें ध्वनिमत की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
भाजपा गत दिवस राज्यसभा की नौ सीटें जीतने के साथ ही संसद के ऊपरी सदन में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सदस्यों की संख्या 100 के पार चली गई। दूसरी तरफ, लंबे समय तक राज्यसभा में दबदबा रखने वाली कांग्रेस के सदस्यों की संख्या घटकर 38 तक पहुंच गई। यह सदन में कांग्रेस का अब तक का न्यूनतम आंकड़ा है। उत्तर प्रदेश में 10 और उत्तराखंड में एक सीट पर हुए चुनाव में भाजपा के खाते में नौ सीटें गईं।
केंद्रीय नागर विमानन मंत्री हरदीप पुरी समेत उसके नौ उम्मीदवार उत्तर प्रदेश से निर्विरोध चुने गए। इन नौ सीटों के साथ ही ऊपरी सदन में भाजपा की संख्या 92 हो गई। उत्तर प्रदेश में उसे कुल छह सदस्यों का फायदा हुआ है क्योंकि उसके तीन लोग फिर से निर्वाचित हुए हैं। भाजपा ने राज्य सभा में अपनी ताकत बढ़ने के लिए कुछ काम भी किया और कुछ उसकी किस्मत ने भी साथ दिया।
कांग्रेस इस मामले में बदनसीब निकली। उसके पास राज्य सभा में अपना संख्या बल बढ़ने का अवसर भी नहीं था और तकनीक भी। कांग्रेस नेतृत्व लगातार हर मोर्चे पर मात खा रहा है। और ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। आपको याद होगा कि बिहार में भाजपा की सहयोगी जद (यू) के राज्यसभा में पांच सदस्य हैं। इसके साथ ही राजग में शामिल आरपीआई-आठवले, असम गण परिषद, मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनल पीपुल्स पार्टी, नगा पीपुल्स फ्रंट, पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के सदन में एक-एक सदस्य हैं।
इस तरह से राज्यसभा में अब राजग के कुल सदस्यों की संख्या 104 हो गई है। वर्तमान समय में सदन में कुल सदस्यों की संख्या 242 है। भाजपा की बढ़ती ताकत को देखते हुए आवश्यकता पड़ने पर अब राजग अन्नाद्रमुक के नौ, बीजू जनता दल के नौ, तेलंगाना राष्ट्र समिति के सात और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के छह सदस्यों का समर्थन हासिल कर सकता है। ये पार्टियां पहले भी कई मौकों पर राजग के साथ खड़ी नजर आई हैं।
राज्यसभा के ताजा चुनाव में कांग्रेस को दो, समाजवादी पार्टी को तीन और बसपा को एक सीट का नुकसान उठाना पड़ा है। यानि अब भाजपा के अच्छे दिन शुरू हो गए हैं। संसद के उच्च सदन में संख्या बल बढ़ने से अब आने वाले दिनों में भाजपा का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और केंद्र सरकार अपने ठिठके एजेंडे पर तेजी के साथ आगे बढ़ेगी।
कोरोनाकाल ने देश की प्रतिरोध क्षमता को वैसे ही कम कर दिया है इसलिए सरकार को किसी भी मसले पर प्रतिपक्ष के विरोध की कोई चिंता नहीं है। बिहार विधानसभा चुनाव निपटते ही केंद्र सरकार अपने पिटारे में से सीआईए और एनआरसी जैसे विषयों को फिर से अमल में लाने का दुःसाहस कर सकती है। अब उसे किसी शाहीनबाग की फ़िक्र नहीं है।
जानकार कहते हैं कि राजस्थान सरकार न गिर पाने के कारण भाजपा को अपना दिग्विजय अभियान कुछ देर के लिए रोकना पड़ा था, लेकिन अब इस पर फिर से तेजी के साथ काम शुरू किया जा सकता है। भाजपा के पास आने वाले दिनों का एक भव्य-दिव्य खाका तैयार है, इसके सहारे ही भाजपा 2024 की और बढ़ने का प्रयास कर रही है।
दूसरी तरफ कांग्रेस अभी भी न तो अपने नेतृत्व संकट को हल कर पाई है और न ही पार्टी कार्यकर्ताओं के गिरते आत्मविश्वास को थाम पा रही है। लेकिन अंतत: आने वाले दिनों में मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही केंद्रित रहने वाला है। पिछले छह साल में कोई भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस का विकल्प नहीं बन पाया है।