कौन उत्तेजित कर रहा है सिंधिया को?

राकेश अचल

भाजपा के नए-नए महाराज और राज्‍यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया को आखिर कौन उत्तेजित कर रहा है जो वे आपे से बाहर जा रहे हैं। उनके भाषणों को सुनकर लगने लगा है कि वे आपा खो रहे हैं। पिछले बीस साल में ये पहला मौक़ा है जब सिंधिया का ऐसा रौद्र रूप दिखाई दे रहा है, अन्यथा वे बेहद विनोदी, विनम्र और संस्कारवान राजनेता के रूप में अपनी पहचान बनाये हुए हैं।

विधानसभा उपचुनावों के सूत्रधार ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस उत्तेजना के कारणों की पड़ताल की जाये तो पता चलता है कि जिन लोगों ने उन्हें कांग्रेस छोड़ने पर विवश किया वे तो उन्हें उकसा ही रहे हैं, साथ ही भाजपा में उनके प्रवेश से क्षुब्ध लोग भी बे-सिर-पैर के बयान देकर सिंधिया को उत्तेजित कर रहे हैं। दुर्भाग्य ये है कि सिंधिया इस मकड़जाल में उलझ भी गए हैं।

सिंधिया को पहले तो भाजपा ने ही उकसाया। भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची में उन्हें दसवें नंबर पर रखा, जबकि वे जब कांग्रेस में थे तब प्रचार अभियान समिति के प्रमुख थे। भाजपा में सिंधिया से आतंकित नेताओं ने बाद में ग्वालियर अंचल में भाजपा की चुनाव प्रचार सामग्री से भी गायब कर दिया। चुनाव रथों, पोस्टर, झंडों से सिंधिया इरादतन गायब कर दिए गए। सिंधिया ने फिर भी खुद पर काबू रखा लेकिन जब केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सार्वजनिक रूप से कह दिया कि सिंधिया आखिर हैं क्या, न विधायक,  न सांसद तो उनकी तस्वीरों का चुनाव प्रचार सामग्री में क्या काम, तो सिंधिया आहत हो गए,  लेकिन उन्होंने फिर भी अपने आपको रोका।

दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जब उनकी समर्थक मंत्री इमरती देवी को आयटम कहकर अपमानित किया तो सिंधिया फट पड़े। उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर पूरे जोर से ये कहना शुरू कर दिया कि ये चुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच नहीं बल्कि उनके और दूसरे लोगों के बीच है। सिंधिया के इस बयान के अनेक अर्थ निकाले जा रहे हैं। सिंधिया आज भी भाजपा की सरकार को उसी तरह चेतावनी दे रहे हैं जिस तरह उन्होंने कमलनाथ की सरकार को दी थी,  इससे लगता है कि अब सिंधिया की सहनशक्ति जवाब दे गयी है।

सिंधिया की टिप्‍पणियां अब उनके ही खिलाफ जाती दिखाई दे रही हैं। भाजपा के नेता उनकी टिप्पणियों का संज्ञान ले रहे हैं लेकिन अभी सब कुछ परदे के पीछे चल रहा है। सिंधिया के भक्त प्रद्युम्न सिंह तोमर जैसे पहले उनके चरणों में लोट लगाते थे, वैसे ही अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के चरणों में लगा रहे हैं,  शायद सिंधिया को ये भी रास नहीं आया। लेकिन वे अब न किसी को रोक सकते हैं, न टोक सकते हैं। भाजपा और कांग्रेस में सिंधिया के विरोधी उन्हें इतना उत्तेजित कर देना चाहते हैं ताकि वे किसी काम के न रहें।

जानकार कहते हैं कि इस समय सिंधिया एकदम अकेले हैं। उनके पास महल के भीतर और बाहर ऐसा कोई सलाहकार नहीं है जो कि उनकी पीड़ा बाँटने के साथ ही उन्हें रणनीति बनाने में इमदाद कर सके। ‘शाक आब्जरवर’ की तरह तो काम करने वाला है ही नहीं। एक जमाने में महल में हर समय एक न एक चाणक्य जरूर हुआ करता था,  लेकिन इस समय कोई नहीं है। और यही सिंधिया के लिए तकलीफदेह है। सिंधिया को जान्ने और समझने वालों का कहना है कि- ‘महाराज जिस पिच पर खड़े होकर बोल रहे हैं, वो असुरक्षित है,  साथ ही उनका इतना तीखा बोलना भी उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।‘

ये पहला मौक़ा है कि चुनाव अभियान में वे एकदम अकेले हैं अन्यथा उनके साथ उनकी पत्नी और बेटा तो नजर आता ही था। सिंधिया की माताजी ने पहले से ही अपने आपको राजनीति से अलग रखा है। बुआ श्रीमती यशोधरा राजे भी इस उप चुनाव में परिदृश्य से बाहर हैं। बची मामी जी यानि श्रीमती माया सिंह,  वे भी सिंधिया की कितनी मदद करती होंगी, भगवान ही जानें। ये पहला मौक़ा है जब महल में सरदार आंग्रे जैसा कोई घाघ रणनीतिकार नहीं है ऐसे में आवश्यक है कि सिंधिया अपनी वाणी पर संयम रखें, किसी के उकसाने से उत्तेजित न हों,  अपने आपको विदूषक न बनने दें,  अन्यथा ये उनका ही नुकसान होगा,  भाजपा या कांग्रेस का नहीं।

आने वाले दिनों में भाजपा का सिंधिया के प्रति कैसा व्यवहार होगा और कैसा नहीं,  कहना कठिन है। क्योंकि भाजपा की अपनी कार्यशैली है और सिंधिया की अपनी। दोनों में कोई मेल नहीं है। जब तक दोनों के सुरताल एक ऐसे नहीं होते तब तक असमंजस बना ही रहेगा। देश-प्रदेश की राजनीति को अभी सिंधिया से तमाम आशाएं हैं। वे जनाकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व भी करते हैं, इसलिए जरूरी है कि सिंधिया स्थितिप्रज्ञ होकर रहें। आपको याद दिला दें कि स्वर्गीय माधवराव सिंधिया भी विषम परिस्थितयों से गुजरे थे, लेकिन उन्होंने अपना आपा एक बार भी नहीं खोया था। राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने तो जेल यात्रा के बाद भी अपना संयम बनाये रखा था।

प्रदेश में अगले महीने उप चुनावों के नतीजे आने के बाद राजनीतिक परिदृश्य साफ़ होगा। उप चुनावों के नतीजे बताएँगे कि जनता का मूड क्या है? जनादेश आने तक उत्तेजना से बचे रहना सबसे बड़ा काम और जरूरत है।

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