राकेश अचल
महाकाल की नगरी उज्जैन में भी काल ने जहरीली शराब का वेश धर कर एक दर्जन से अधिक लोगों की जान ले ली। प्रदेश की सरकार ने मामले की जांच के लिए फटाफट एसआईटी का गठन कर पुलिस के कुछ कर्मचारियों को निलंबित कर अपनी सक्रियता का प्रदर्शन किया है। लेकिन असल सवाल तो ये है कि प्रदेश में जहरीली शराब झिंझर आखिर बनाने वाले और उसे बिकवाने के लिए संरक्षण देने वाले लोग कैसे धड़ल्ले से अपना काम करते रहते हैं।
जहरीली शराब का कारोबार हर प्रदेश में है और स्थानीय पुलिस प्रशासन के संरक्षण में चलता है। इससे पहले आपको याद हो तो पंजाब में सात दर्जन से अधिक लोग जहरीली शराब पीकर मर गए थे, अर्थात जहरीले कारोबार का राजनीति से बड़ा सौहार्दपूर्ण रिश्ता होता है। जहर बेचने वालों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस सूबे में किस पार्टी की सरकार है? जहर बेचने की अघोषित छूट हर सरकार देती है, मजे की बात ये है कि जहरीली शराब के मामले में आबकारी विभाग पर कोई आंच नहीं आती।
उज्जैन में 36 घंटे में 14 लोगों की मौत हो गई। इनमें 10 मजदूर हैं, एक व्यक्ति ठेला लगाता था। तीन की पहचान नहीं हो पाई है। एसपी मनोज कुमार सिंह ने बताया कि कुछ मामलों में यह साफ हुआ है कि जान जहरीली शराब पीने की वजह से हुई। इस शराब को यहां झिंझर कहा जाता है। पुलिस ने यह शराब बनाने वाले 10 लोगों को गिरफ्तार किया है। काश! पुलिस ये गिरफ्तारियां पहले ही कर लेती तो इन निर्दोष लोगों की जान न जाती। मरने वाले निर्दोष थे लेकिन उनका दोष सिर्फ इतना था कि उन्होंने सस्ती शराब पी।
कोरोनाकाल में शायद मंहगी शराब खरीदना उनके बूते की बात नहीं रही होगी। उपचुनावों में उलझे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जांच के लिए एसआईटी बनाई और अपर मुख्य सचिव गृह से रिपोर्ट मांगी है। 5 मेंबर वाली एसआईटी दो दिन बाद अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। उज्जैन के एसपी ने खाराकुआं टीआई समेत 4 पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया है। कोई मुख्यमंत्री इससे ज्यादा क्या कर सकता है आखिर?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी आदत के अनुसार कहा कि दोषियों को किसी कीमत पर छोड़ा नहीं जाएगा। जांच के लिए गृह विभाग के सचिव डॉ. राजेश राजौरा, अतिरिक्त मुख्य सचिव एसके झा सहित पांच अफसरों की टीम शुक्रवार को उज्जैन आएगी। दो दिन उज्जैन में रहकर रिपोर्ट तैयार करेगी। पुलिस द्वारा पकडे गए आरोपी नगर निगम की छतरी चौक स्थित मल्टी लेवल पार्किंग में अवैध रूप से झिंझर बनाते थे और शराब मजदूरों को सस्ते दामों में बेची जाती थी। यानि पुलिस को सब कुछ पता था लेकिन जेबें गर्म होती रहने की वजह से पुलिस मौन रही।
पूरा उज्जैन शहर जानता है कि ज्यादातर मजदूर सस्ती झिंझर शराब पीते हैं। ये लोग कहारवाड़ी से झिंझर लेकर आते हैं। कहारवाड़ी में शंकर और बेबी नाम की महिला शराब बेचती है। यह 20, 30 और 50 रुपए में मिलती है। उसने बताया कि एक व्यक्ति यहां वैन में शराब बेचता है लेकिन पुलिस ही ये सब नहीं जानती थी इसलिए लोग मारे गए।
अगस्त माह में पंजाब में जब एक के बाद एक 86 लोग मारे गए, तब भी कुछ नहीं हुआ। अब सरकारें तो ऐसे मुद्दों पर जाती नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में बीते साल ही 16 लोग मारे गए थे, वहां तो योगीराज है। मेरठ में भी लोग जहरीली शराब पीकर मर चुके हैं, लेकिन सरकारें कुछ नहीं कर पातीं। मुम्बई जैसे महानगर में पिछले साल 53 लोग जहरीली शराब पीकर मर गए, लेकिन किसी का कुछ नहीं बिगड़ा। जहरीली शराब पीकर मरना मरने वालों की किस्मत थी। जहरीली शराब बेचना हमारे यहां अपराध है, लेकिन ऐसा नहीं कि किसी को आजीवन कारावास जैसी सजा दिला सके।
उज्जैन में जहरीली शराब से हुई मौतों को लेकर राजनीति हो सकती है, लेकिन कठोर कार्रवाई के लिए कोई सड़कों पर नहीं आ सकता। क्योंकि ये वोटों से जुड़ा मामला नहीं है। इससे क़ानून और व्यवस्था की स्थिति सीधे-सीधे प्रभावित नहीं हो रही। सरकार, समाज, पुलिस सब मरने वालों को ही दोषी मानते हैं, पिलाने वाले और बेचने वालों को नहीं। एसआईटी की रपट आने के बाद भी कोई सूली पर लटकने वाला नहीं है। कुछ दिनों में सब भूल-भाल जायेंगे। आबकारी विभाग का अमला सजधज कर निकलेगा और कुछ जगहों पर छापे मारने का पुरुषार्थ दिखायेगा। कुछ जब्ती होगी, कुछ गिरफ्तारियां भी होंगी फिर सब कुछ मामूल पर आ जाएगा।
विधानसभा उपचुनाव में तो वैध और अवैध शराब पानी की तरह भेजी गई, कोई माई का लाल इसे रोक नहीं सकता। रोकता भी नहीं है क्योंकि मतदाताओं को अचेत किये बिना उनका अनमोल वोट हड़पना आसान काम नहीं है। शराब तो ग्राम पंचायत के चुनावों तक में प्रचलित है फिर ये तो विधानसभा के उपचुनाव हैं, जिनमें महाराज और शिवराज की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। अवैध और जहरीली शराब के जरिये यमराज बीच में आ धमके हैं। उन्हें अपनी ड्यूटी कुछ दिनों के लिए मुल्तवी करना चाहिए थी। मुझे हैरानी होती है कि दिया तले अन्धेरा होता है ये जानते हुए भी सरकार आँखें बंद किये क्यों बैठी रहती है?
उज्जैन काण्ड में मैदानी अमले को निलंबित करने के बजाय यदि जिले के कप्तान और जिले के आबकारी अधिकारी को निलंबित किया जाता तो शायद दूसरे जिलों में कुछ सतर्कता अपने आप बढ़ती। जो लोग निलंबित किये गए हैं, वे आज नहीं तो कल बहाल हो जायेंगे, लेकिन मरने वाले लौट कर वापस नहीं आने वाले।