राकेश अचल
खाली पेट किसी के दिमाग की बत्ती नहीं जलती, मेरी भी नहीं जलती लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि संसद में सरकार का उत्तर देखकर मेरे दिमाग की बत्ती बिना खाये-पिए भी जल गयी। सरकार कहती है कि उसके पास ‘लॉकडाउन’ में पदयात्रा करते हुए मारे गए लोगों या बेरोजगार हुए लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है। केंद्र के पास ‘लॉकडाउन’ की तो छोड़िये तीन साल पहले किसानों द्वारा की गयी आत्महत्या का भी कोई आंकड़ा नहीं है। अब सवाल है कि सरकार के पास आंकड़े क्यों होना चाहिए?
आपको याद है कि इस देश में अब तक तरह-तरह की सरकारें बनती, बिगड़ती आ रही है। एक समय जब डॉ. मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे तो विपक्ष कहता था कि उनकी सरकार ‘रिमोट’ से चलने वाली सरकार है। बाद में जब गैर भाजपा, गैर कांग्रेस गंठबंधन की सरकारें बनीं तो कहा गया कि वे खिचड़ी सरकारें हैं। कुछ सरकारें आंकड़ों की सरकारें भी कहलाईं। लेकिन अब माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को आप ‘बेआंकड़े’ की सरकार कह सकते हैं, क्योंकि उसके पास वे सब आंकड़े नहीं हैं जो देश जानना चाहता है। कुछ दिलजले हैं जो मोदी सरकार को ‘वनमैन’ सरकार भी कह गुजरते हैं।
तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने संसद के मानसून सत्र में प्रश्न काल नहीं होने पर तंज कसा है। टीएमसी सांसद ने कहा कि जब सरकार सदन में लिखित जवाब दे रही थी तब उसमें न तो प्रवासियों की मौत का आंकड़ा था, न उनके मुआवजे का कोई आंकड़ा। अब नहीं है तो नहीं है। क्या सरकार विदेश से आंकड़े मंगाकर दे? राहुल गांधी को भी उनके सवाल के जबाब में आंकड़े नहीं मिले। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी कह दिया कि सरकार के पास 2016 के बाद किसानों की आत्महत्या का कोई आंकड़ा नहीं है। ठीक भी है। क्या सरकार का काम आंकड़ा-आंकड़ा खेलना ही है?
एक जवाबदेह और जिम्मेदार सरकार के पास आंकड़े जुटाने के अलावा बहुत से काम होते हैं, क्या सरकार आंकड़े जुटाने के फेर में ये तमाम जरूरी काम छोड़ दे। सरकार को जिन आंकड़ों की जरूरत होती है वे सब आंकड़े उसके पास हैं। सरकार को नेहरूयुगीन जिन नवरत्नों को बेचने की जरूरत थी, उन सबके आंकड़े थे, जिन्हें बेचना है, उनके आंकड़े हैं। आंकड़ों का क्या है, वे तो आनन-फानन में जुटाए जा सकते हैं, लेकिन सरकार इस फालतू के काम में अपनी ऊर्जा और संसाधन क्यों बर्बाद करे? विपक्षा आखिर आंकड़ों का करेगा क्या? जाहिर है अचार तो नहीं डालेगा। आंकड़ों का इस्तेमाल सरकार के खिलाफ ही करेगा। तो सरकार अपने पैरों पर जान-बूझकर कुल्हाड़ी क्यों मारे?
मोटे तौर पर कहा जाता है कि आंकड़े अंक हैं या वे तथ्यों की गणना है। अब जब तथ्य हैं ही नहीं तो उनकी गणना का क्या अर्थ? सरकार का मौलिक काम तथ्य छिपाना है। सरकार अपना मौलिक काम बखूबी कर रही है। इसलिए किसी को इस बात पर कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए। बुंदेली में आंकड़ा एक ऐसे औजार को कहते हैं जिसमें कई कांटे लगे होते हैं जो कुंए में गिरे बर्तन तलाशने के काम आता है। अव्वल तो देश में कुएं हैं नहीं और जो हैं भी उनमें भांग घुली हुई है। ऐसे में आंकड़े की क्या जरूरत ?
ये सौभाग्य है कि हमारी सरकार किसी को भारत-चीन सीमा पर गुत्थम-गुत्थी के आंकड़े भी नहीं बताती, उसके पास रोहिंग्या मुसलमानों के आंकड़े हैं, लेकिन कोई ये आंकड़े पूछता नहीं। सरकार आंकड़े जुटाने के लिए ही तो एनआरसी और सीआईए जैसे क़ानून ला रही थी, सो पूरा देश उसके खिलाफ खड़ा हो गया और अब सबको आंकड़े चाहिए। कहाँ से लाये सरकार आंकड़े? आंकड़े कोई बागीचे में लगे अंगूर हैं कि आपने मांगे और तोड़कर दे दिए। देश हित में बहुत से आंकड़े नहीं जुटाए जाते हैं और यदि जुटा भी लिए जाएँ तो दिए नहीं जाते। आंकड़े देश की सार्वभौमिकता, एकता, अखंडता के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं, फिर आंकड़ों को लेकर आग्रह क्यों भला? ऐसे आग्रह ही तो दुराग्रह की श्रेणी में रखे जाते हैं।
देश की जनता को जानना चाहिए कि इस समय देश केवल कोरोना मीटर चला रहा है। सरकार के पास इन दिनों केवल कोरोना से संक्रमित होने, ठीक होने और मरने वालों के आंकड़े है। जांच के आंकड़े भी हैं लेकिन उनमें लोचा है, इसलिए उन्हें नहीं माँगा जाना चाहिए। सरकार अपने कोरोनाग्रस्त मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के आंकड़े होने के बावजूद आपको नहीं दे सकती। सरकार ने सारे आंकड़े राज्यों की सरकारें गिराने और फिर से बनाने में लगा रखे हैं। इसीलिए मैं राष्ट्रहित में आंकड़े मांगे जाने का विरोधी हूँ। हाँ आप सवाल कीजिये। सरकार को उनका जवाब देना होगा तो दे देगी और मूड नहीं होगा तो नहीं देगी।
वैसे आंकड़े जुटाने का काम विपक्ष भी तो कर सकता है। विपक्ष का काम क्या सरकार पर कीचड़ उछालना भर है? विपक्ष को चाहिए कि वो भी आंकड़े जुटाए, सरकार को भी दे और जनता को भी। जिज्ञासु सांसदों को भी विपक्ष ही आंकड़े उपलब्ध कराये तो सोने में सुहागा न लग जाये। वैसे आपको जान लेना चाहिए कि सरकार के पास आंकड़ों की कोई कमी नहीं है। सरकार को पता है कि पचास साल के कितने कर्मचारियों की छुट्टी करना है, कितनों को संविदा पर रखना है?
सरकार के पास आंकड़ा है कि कोरोनाकल में दिए गए 20 लाख करोड़ के विशेष पैकेज से किसे क्या लाभ मिला? अपने मित्र पाठकों को ये बताना बेहद आवश्यक है कि सरकार के पास एक जादुई आंकड़ा है और इसे कहते हैं विपक्ष से ‘छत्तीस का आंकड़ा’। ये ऐसा आंकड़ा है जिससे तमाम आंकड़े अपने आप सहज, सुलभ हो जाते हैं। इसलिए आइये देशहित में आंकड़ों का होम करते हैं। समवेत स्वर में बोलते हैं- ‘ॐ नमो आँकड़ाय स्वाहा…