रवीन्द्र व्यास
मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व और विवादों का चोली दामन का साथ है। 2008 में यह इसलिए सुर्ख़ियों में था कि यहां के सभी बाघ लापता हो गए थे। 2009 में बाघों को फिर से बसाने की योजना बनी और कारगर रही। विश्व में यह अपने तरह की पहली योजना थी, जिसमें दूसरी जगह के बाघों को बसाया गया हो। इसके पहले दुनिया में जितने भी जतन हुए सभी असफल रहे। इसका सारा श्रेय तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर श्रीनिवास मूर्ति को जाता है। अब एक बार फिर पन्ना टाइगर रिजर्व टाइगरों की लगातार होती मौतों और क्षत विक्षत शवों के मिलने से सवालों के घेरे में आ गया है। पिछले माह नदी में मिले टाइगर के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने तो मानो सारे रहस्यों से ही पर्दा उठा दिया है। अब सरकार जांच करा रही है।
पी-123 नामक 8 वर्षीय बाघ का शव 9 अगस्त को हिनौता रेंज में केन नदी में तैरता पाया गया था। उस समय इस बाघ की मौत की जो कहानी सुनाई गई वह किसी फ़िल्मी पटकथा से कम नहीं थी। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक के. एस. भदौरिया ने तब कहा था कि 7 अगस्त की सुबह दो मेल टाइगरों पी-431 व पी-123 के बीच बाघिन के साथ मेटिंग को लेकर संघर्ष हुआ, जिसमें पी-123 बाघ घायल हो गया। रविवार 9 अगस्त की शाम बाघ का शव नदी में तैरता मिला। उन्होंने इस बाघ के संघर्ष का गवाह भी एक गार्ड को बता दिया।
बाघ के शव परीक्षण रिपोर्ट में स्पष्ट हुआ कि बाघ पी-123 के सिर, गर्दन, त्वचा, मांसपेशियों में चोट लगी और इसके वृषण और लिंग को उसकी मृत्यु के बाद काट दिया गया है। बेजुबान बाघ की शव परीक्षण रिपोर्ट में अवैध शिकार और पंजे और यौन अंगों को काटे जाने की बात कही गई। फिर भी अधिकारी इसकी मौत की वजह क्षेत्रीय लड़ाई ही बताते रहे। वन्य जीवों के जानकार बताते हैं कि घटना साफ़ इशारा करती है कि पन्ना टाइगर रिजर्व में शिकारियों की पहुंच है। इसके पीछे वे वजह भी बताते हैं कि सामान्य लोग बाघ के पंजे तो काट सकते हैं किन्तु यौन अंग नहीं काट सकते हैं। यह एक तरह की चेतावनी है अगर समय रहते सतर्क नहीं हुए तो पन्ना टाइगर रिजर्व एक बार फिर बाघ विहीन हो सकता है।
पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन बाघों की लागातर हो रही मौतों को लेकर संजीदा नजर नहीं आ रहा है। प्रबंधन इन मौतों को असामान्य नहीं मानता। तर्क दिया जा रहा है कि टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल 578 वर्ग किलोमीटर है। छह बाघ के लिए कम से कम 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल होना चाहिए। यहां वयस्क बाघों की संख्या पिछले दो वर्षों में 23 से 42 हो गई, लगभग 15 शावक भी हैं। बाघों की बढ़ती संख्या क्षेत्रीय झगड़े के पीछे का मुख्य कारण है। जो पांच मौतों हुई हैं उनमें कुछ मौतें झगड़े के दौरान या संभोग से पहले हुई। ये अलग बात है कि पार्क प्रबंधन के पास कोर क्षेत्र के अलावा 1022 वर्ग किमी का बफर जोन भी है।
सवालों में बाघों की मौत
जनवरी 2020 की शुरुआत में टाइगर रिजर्व के रमपुरा बीट की झाडिय़ों में पी-111 बाघ का कंकाल मिला। 15- 20 दिन बाद मिले इस बाघ के कंकाल की मौत का कारण प्रबंधन ने आपसी संघर्ष माना। दावा किया गया बाघिन टी-2 के शावक पी-261, पी-262 एवं पी-263 का यह क्षेत्र है। क्षेत्र बनाने को लेकर हुए संघर्ष में पी-111 बाघ की मौत हुई होगी।
3 मई की दोपहर गहरीघाट रेंज के अंतर्गत बीट कोनी के नाला में 15 माह के बाघ का क्षत-विक्षत शव मिला। यह शव 7- 8 दिन पुराना बताया गया। 28 जून को रिजर्व की चर्चित पी-213 बाघिन का क्षत-विक्षत शव तालगांव क्षेत्र में मिला। रेडियो कॉलर युक्त इस बाघिन का शव मिलने पर पन्ना टाइगर रिजर्व के प्रबंधन पर सवाल खड़े होने लगे। इसकी मौत को भी आपसी संघर्ष का नतीजा बताया गया। यह वही बाघिन थी जिसने इस टाइगर रिजर्व में बाघों के संसार को बसाया था।27 जुलाई 20 को पी-511 बाघ का शव क्षत-विक्षत दशा में गहरीघाट रेंज के मझौली बीट में मिला। इसे भी क्षेत्र संचालक ने आपसी संघर्ष का नतीजा बताया।
बाघों का वर्चस्व वाद
जंगल का राजा बाघ अपने क्षेत्र के वर्चस्व को लेकर संघर्ष करता है। इसे बाघों का प्राकृतिक कारण और नैसर्गिक स्वभाव माना जाता है। संघर्ष में बाघों की मौत होने पर इसका पता भी तत्काल चल जाता है। पार्क प्रबंधन सफाई से सभी पांच बाघों की मौतों को आपसी संघर्ष का नतीजा बता कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। संघर्ष में घायल दूसरे बाघ की तलाश करने की जरूरत नहीं समझी गई। बाघों की मौत और उनके क्षत विक्षत शव शायद इसीलिए कई दिनों तक सड़ने दिया जाता रहा ताकि हर तरह के साक्ष्य नष्ट हो जाएँ।
चिंतित जनसेवक
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और क्षेत्रीय सांसद विष्णुदत्त शर्मा बाघों की मौत पर अपनी नाराजी जाता चुके हैं। उन्होंने मामले की जांच कराने की मांग करने पर अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक जसवीर सिंह चौहान ने पन्ना टाइगर रिजर्व पहुँच कर जांच भी की। चौहान उन सभी स्थलों पर गए जहां बाघों के शव मिले थे। उनकी जांच में क्या हुआ यह अब तक सामने नहीं आया है। शायद इसीलिए पन्ना राजघराने की जीतेश्वरी देवी ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। उन्होंने पिछले आठ माह के दौरान हुए पांच बाघों की मौत की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि दरअसल बाघों की मौत के मामले को एक तरह से दबाने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) आलोक कुमार ने पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की मौत पर जांच के आदेश दिए हैं। अब जांच रिपोर्ट आने के बाद दोषियों पर कार्रवाई की जायेगी। यह कार्रवाई कितनी निष्पक्ष होगी इस पर लोगों को संदेह है, इसीलिए पन्ना राज परिवार की जीतेश्वरी देवी मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रही हैं।