उपचुनाव पोहरी- बसपा इम्पेक्ट
डॉ. अजय खेमरिया
शिवपुरी जिले की पोहरी विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव की तस्वीर लगभग साफ हो गई है। बीजेपी से लोकनिर्माण राज्य मंत्री सुरेश धाकड़, बसपा से कैलाश कुशवाहा और कांग्रेस से हरिवल्लभ शुक्ला मैदान में होंगे। 2018 में केवल हरिवल्लभ बाहर थे लेकिन अब वह संभवत: अपना अंतिम चुनाव पोहरी से लड़ने जा रहे हैं। कल ही उनके घर पर आकर दिग्विजयसिंह ने नाश्ते की टेबिल पर जलेबी पोहा के साथ टिकट की हरीझंडी दे दी है।
बसपा ने कैलाश कुशवाहा को फिर से टिकट दी है जो 2018 में 52736 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे। मौजूदा बीजेपी प्रत्याशी सुरेश धाकड़ 60654 वोट लेकर जीते थे। उपचुनाव में अब त्रिकोणीय मुकाबला होगा क्योंकि तीनों प्रत्याशी हैवीवेट हैं। फौरी तौर पर बसपा ने यहां बीजेपी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है, क्योंकि कुशवाहा बिरादरी के वोट परम्परागत रूप से यहां बीजेपी को जाते रहे हैं।
पहली बार 2018 में कैलाश ने इस बिरादरी को बसपा के साथ पोलराइज्ड कर दिया था जिसका नुकसान सीधे बीजेपी को हुआ था। कैलाश को ब्राह्मण एवं अन्य छोटी जातियों के वोट भी मिल गए थे। हालांकि बसपा टिकट की घोषणा तक कैलाश ने कांग्रेस से भी उम्मीदवारी के भरसक प्रयास किये थे। कमलनाथ के साथ उनकी बैठक भी हुई लेकिन कांग्रेसियों के विरोध के चलते बात बन नहीं पाई।
पुख्ता खबर यही है कि कमलनाथ ने पोहरी से पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला को टिकट देने का निर्णय ले लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने भी हरिवल्लभ के घर पहुँचकर उनकी उम्मीदवारी पर अंतिम मुहर लगा दी है। जहां तक बसपा के उम्मीदवार का सवाल है, वह बीजेपी के लिए इसलिए चिंता का विषय है क्योंकि कुशवाहा बिरादरी की संख्या यहां 15 से 17 हजार के मध्य है और वोटिंग टर्नआउट के मामले में यह 100 फीसदी गिनी जाती है। बसपा के खाते में जाटव वोटरों के ट्रांसफर का फायदा बीजेपी को होता है तो कुशवाहा वोटरों का सीधा नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ेगा।
बीजेपी को इस सीट पर धाकड़ (किरार) वोटरों के अलावा पार्टी के परंपरागत आधार पर ज्यादा भरोसा है। हालांकि शिवपुरी जिले में इस सीट पर बीजेपी का कैडर सबसे कमजोर कहा जा सकता है क्योंकि यहाँ चुनावी गणित कैडर की जगह जाति के प्रभाव से निर्धारित होता है। यही कारण है कि कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस का पूरा वोट बैंक कोलैप्स होता रहा है। 2003 एवं 2008 के नतीजे इस तथ्य की तस्दीक करते है।
बीजेपी के लिए न केवल कुशवाहा बल्कि रावत, ब्राह्मण, यादव, गुर्जर एवं निर्णायक आदिवासी वोटरों को भी साधने की बड़ी चुनौती इस उपचुनाव में सामने होगी। किरार वोटरों के एक वर्ग में भी मंत्री सुरेश धाकड़ को लेकर नाराजगी का भाव है। हरिवल्लभ शुक्ला इस सीट से 1980 से चुनाव लड़ते रहे हैं। उनके विरोधियों की भी यहां भरमार है। उनका प्रयास होगा कि उपचुनाव की लड़ाई को एंटी किरार पोलराइजेशन पर मोड़ा जाए क्योंकि 2008 से लगातार किरार जाति के एमएलए ही यहां जीत रहे है।
बीजेपी कैडर के साथ राज्यमंत्री अभी भी कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं। बसपा अगर अन्य छोटी जातियों में अपनी पैठ बनाने में कामयाब रही तो मामला रोचक हो जायेगा। 2018 के प्रदर्शन पर भी कैलाश कुशवाहा कायम रहे तो हारजीत का निर्णय उन्ही के द्वारा होगा। इस सीट पर बीजेपी को आदिवासी वर्ग के बीच व्यापक घेराबंदी की दरकार है क्योंकि परम्परागत रूप से यह बड़ा वोट बैंक अभी भी कांग्रेस के साथ जाता है।
पिछली बार सुरेश धाकड़ की जीत में इस वर्ग का निर्णायक योगदान था। हालांकि 2018 में उन्हें धाकड़ किरार समाज का मात्र 40 फीसदी ही वोट मिल सका था जो इस बार बढ़ने के आसार है। इसके बावजूद पोहरी में बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में सुरेश धाकड़ के लिए मंत्री बनने के बाद भी हालात 2018 जैसे तो बिल्कुल नहीं हैं।
कांग्रेस से हरिवल्लभ शुक्ला की टिकट घोषित होते ही अनेक नेताओं के बीजेपी का दामन थामने की पूरी संभावना है। कुल मिलाकर बसपा ने यहां भी उपचुनाव को त्रिकोणीय तो बना ही दिया है।