ब्रेन और ब्यूटी का संगम : अभिनेत्री साधना

जन्‍म दिवस पर विशेष

अशोक मनवानी

साधना शिवदासानी नैयर हिंदी सिनेमा की एक अलहदा अदाकारा रही हैं। साधना जिंदगी के आखिरी तक सिनेमा से प्यार करती रहीं। साठ के दशक में जब हिंदी फिल्मों में साधना ने पदार्पण किया तब सुरैया, वनमाला, मीनाकुमारी, शीला रामानी जैसी अदाकाराओं की ख्याति चरम पर थी।  राजश्री, वहीदा रहमान, आशा पारेख, नंदा, साधना की समकालीन अभिनेत्रियां थीं। इन सभी को दर्शकों ने बहुत प्यार दिया।

साधना ने नंदा और सुचित्रा सेन की तरह खुद को लाइम लाइट से अलग किया जो साधारण बात नहीं। साधना के लिए पार्श्वगायन में लता जी को भी विशेष सुख मिलता रहा, खुद लता जी ने यह बात मानी है। साधना के नायकों के अनुभव भी इसी तरह के हैं। तमाम सफल फिल्मों के बावजूद साधना का वक्त से पहले परदे से अलग होना किसी रचना के अधूरे रह जाने की तरह लगता है।

साधना शिवदासानी जो डायरेक्टर आर.के. नैयर के साथ विवाह के बाद साधना नैयर बनीं, हिंदी सिनेमा में ऐसी इकलौती नायिका रही हैं जिन्होंने चार फिल्मों में खास किस्म की दोहरी भूमिका अदा की, चार-पांच किस्म के फैशन चलाए और लोकप्रिय बनाए। साधना ने विशेष तरह की दोहरी भूमिकाओं में अभिनय कर अलग छाप छोड़ी। सिर्फ साधना कट हेयर स्टायल ही नहीं आँखों में तिरछा काजल, खास मुस्कराहट, गले में दुपट्टा,  चूड़ीदार सलवार,  टाइट कुर्ता, कानों में बड़े बाले, गरारा और शरारा, साधना के चलाए फैशन हैं।

साड़ी पहनने का साधना का अंदाज भी निराला था। यही नहीं उनकी चाल और बोलती आंखें भुलाने योग्य नहीं। इन सभी अदाओं को उस दौर की नव यौवनाओं ने भी अपनाया। निर्देशक विमल राय, साधना को कला फिल्मों का चेहरा बनाना चाहते थे। एक अभिनेत्री के तौर पर साधना ने दिखावे की दुनिया में खुद को बचाए रखा। इन पंक्तियों के लेखक ने उनकी बॉयोग्राफी लिखनी चाही, पर साधना को यह रास नहीं आया, वे नहीं चाहती थीं,  खुद को चर्चा में बनाए रखना।

फिर साधना पर लिखे आलेखों का संकलन तैयार कर लिया गया। इसकी प्रति पाकर साधना बहुत खुश हुई थीं। गरिमामय तरीके से खुद को तिलस्मी और चमकदार फिल्मी दुनिया से अलग किया साधना ने। लाईम लाइट में हर कोई आना चाहता है पर वे इससे खुद दूर हुईं। प्रशंसकों के मन में उनकी युवा अवस्था की छवि बनी रहे, यह साधना की दिली भावना थी। पुरस्कारों और उसकी राजनीति से दूर, संतोषी स्वभाव की धनी, फिल्मी महफिलों से दूर एकाकी रहने वाली साधना गाहे- बगाहे फकत ऑर्ट्स क्लब जाती थीं। कभी दिलीपकुमार इस क्लब के प्रमुख रहे हैं। उस क्लब के सदस्य भी सीमित ही हैं। इनकी अपनी जीवन शैली है।

साधना की पहली फिल्म ‘अबाणा’ एक सिंधी फिल्म थी जिसमें वे नायिका शीला रमानी की छोटी बहन के किरदार में आईं थीं। फिल्म निर्माण में महिलाओं की भूमिका की चर्चा होती है तो साधना ‘गीता मेरा नाम’ (1974)  के निर्देशन की वजह से याद की जाती हैं। अभिनय के चौथे और आखिरी दशक में साल 1997-98 तक साधना दूरदर्शन पर फिल्मी नगमों के एक प्रोग्राम की खास अंदाज में पेशकश के कारण देखी गईं थीं।

इसके बाद साधना ने स्क्रीन से दूर रहने का पक्का इरादा कर लिया था। सांताक्रुज के घर में उन्हें तन्हाइयां उस तरह नहीं सताती थीं कि जिंदगी मुश्किल हो जाए। आखिरी बीस बरस बिल्कुल खामोश सी रहीं। उन्होंने रणबीर कपूर के अनुरोध पर कैंसर रोगियों की मदद के लिए किए गए एक शो में 74 बरस की आयु में कैटवाक जरूर किया।

साधना अभिनीत फिल्मों के निर्देशक, नायक, गायक, गीतकार, संगीतकार तेजी से अवार्ड हासिल करते रहे, पर साधना इस संस्‍कृति से दूर रहीं। वे पुरस्कारों के लिए कोई लॉबिंग भी नहीं करती थीं। उन्हें कोई बड़ा पुरस्कार न मिलने पर अफसोस नहीं रहा। असली पुरस्कार दर्शकों के दिलों में रह जाना होता है। सभी जानते हैं कि एक समय जमाना उनका इस कदर दीवाना था कि पर्स में उनकी मोहक मुस्कान युक्त तस्वीर रखी जाती थी।

यदि राजेश खन्ना सुपर स्टार बने तो साधना भी लगभग एक दशक किसी सुपर अदाकारा का दर्जा पाकर ही कामयाब हुईं। तरह-तरह की सेहत से जुड़ी तकलीफों ने रास्ते भी खूब रोके पर क्या मजाल कि अदाकारा की कोशिशें बंद हों, संघर्ष का लंबा सिलसिला है। अभिनेत्री साधना की अपनी रचनात्मक यात्रा रही है।

साधना की समकालीन ही नहीं जूनियर अभिनेत्रियों ने भी पद्मश्री, पदम भूषण लेते हुए अपनी लालसा को उजागर किया  है। साधना जैसी अभिनय के आयाम स्थापित करने वाली अभिनेत्री ने बस गरिमामय जीवन जीना चाहा। न कोई महत्वकांक्षा न धन-दौलत की चाह। ऐसा निर्मोही जीवन क्या सिनेकर्मियों के लिए प्रेरक नहीं?  सस्ती लोकप्रियता की खातिर  आज नए-नए हथकंडे अपनाने वाले कलाकार काश साधना से  शांत, संयमित जिंदगी का यह गुर सीख लें।

साधना ने मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास पर आधारित फिल्म गबन के अलावा परख में कलात्मक भावाभिव्यक्तियां प्रस्तुत कीं। वंदना और प्रेमपत्र में भी उनके अभिनय का अलग अंदाज था। गुरुदत्त के साथ ‘पिकनिक’ और देव आनंद के साथ ‘साजन की गलियां’ साधना की अनरिलीज्ड फिल्में रहीं। कमर्शियल आधार पर बेहतर कामयाब मानी गई उनकी कुछ फिल्मों में वक्त, मेरा साया, लव इन शिमला, राजकुमार, असली-नकली, हम दोनों, वो कौन थी, मेरे महबूब आदि शामिल हैं।

जिन अभिनेताओं के साथ साधना सर्वाधिक फिल्में आई उनमें सुनील दत्त, मनोज कुमार, देवानंद, राजेंद्र कुमार, शम्मीकपूर (तीन और चार बार) शामिल हैं। जॉय मुखर्जी, बलराज साहनी, संजय खान, राजकुमार के साथ दो-दो बार और धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, अनिल धवन, शशिकपूर, किशोर कुमार, बसंत चौधरी, परीक्षित साहनी के साथ साधना ने एक-एक फिल्‍म बतौर नायिका की। वैसे तो साधना ने हिंदी सिनेमा के ख्यात अभिनेताओं पृथ्वीराज कपूर, संजीव कुमार, विश्वजीत, अशोक कुमार के साथ भी सिल्‍वर स्क्रीन शेयर की है।

साधना का ‘वक्त’ और ‘वो कौन थी’ फिल्‍मों के लिए फिल्म फेयर नामीनेशन हुआ। साधना ने सर्वाधिक लता मंगेशकर के गाए गीतों पर होंठ हिलाए। लगभग सौ गीत साधना पर फिल्माए गए हैं। जो अधिक कर्णप्रिय हैं उनमें- लग जा गले… (वो कौन थी) अभी न जाओ छोड़कर… (हम दोनों) तू जहां-जहां चलेगा…(मेरा साया) आ जा आई बहार…(राजकुमार) नैना बरसे रिमझिम रिमझिम…(वो कौन थी) जरूरत है जरूरत है…(मनमौजी) मेरे महबूब तुझे  मेरी मोहब्बत की कसम… (मेरे महबूब) तेरा मेरा प्यार अमर…(असली नकली) हमने तुझको प्यार किया है इतना…(दूल्हा दुल्हन) शुमार हैं।  दिलकश गीतों की बात करें तो हमें ‘ओ सजना बरखा बहार आई’ (परख) में वर्षा के सौंदर्य की ऊंचाइयां साधना के अभिनय की ऊंचाइयों से मिलकर अलग दुनिया में ले जाती हैं।

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