राकेश अचल
आम आदमी को खजांची की बातें या तो समझ में ही नहीं आतीं और यदि आती भी हैं तो देर से समझ में आती हैं। खजांची अगर अंग्रेजी बोलता हो तो मुश्किल और बढ़ सकती है। उसकी बात समझने में एक-दो से भी ज्यादा दिन लग सकते हैं। हमारे मनसुख के साथ अबकी यही हुआ। कल शाम पसीना-पसीना घर आये और अहाते में पड़ी खटिया पर लंबलेट हो गए। मनसुख जब भी परेशान होते हैं, ऐसा ही करते हैं। मैंने उनकी तरफ देखा ही नहीं। देखना भी क्या? अपने मनसुख हैं, कुछ न कुछ लचेड़ लेकर आये होंगे!
कुछ देर में मनसुख की साँसे सामान्य हुईं। उन्होंने अपने चौखाने वाले लाल अंगोछे से पसीना पोंछा। वे पसीना क्या पोंछते हैं, ऐसा लगता है जैसे फर्श पर पोंछा लगा रहे हों। चेहरे से पसीने की परत हटते ही वे बोले-
‘यार पंडित जी जरा पानी-सानी पिलवाओ बड़ी उमस है’
हमने हुक्म की तामील करते हुए पानी का लोटा उनकी तरफ बढ़ा दिया। मनसुख की फरमाइशों की लिस्ट बहुत छोटी होती है। मनसुख ज्यादा से ज्यादा पानी और तम्बाखू की मांग करते हैं। कोई चाय पिला दे तो उन्हें कोई उज्र भी नहीं लेकिन वे चाय की फरमाइश नहीं करते। मनसुख जानते हैं कि चाय वाले आजकल देश पर शासन कर रहे हैं।
मनसुख ने पानी कंठस्थ और फिर उदरस्थ किया फिर आखिर में एक लंबा कुल्ला किया, अपनी तृषा को शांत करते ही वे बमकने लगे।
‘यार पंडित! ये ‘एक्ट आफ गॉड’ क्या होता है?’ मनसुख ने सवाल दागा।
‘एक्ट आफ गॉड’! मैंने अटकते हुए प्रतिप्रश्न किया।
‘हाँ..हाँ..एक्ट आफ गॉड’ ये कुछ महत्वपूर्ण चीज होती है, शायद अर्थशास्त्र का कोई शब्द है, अपनी वित्त मंत्री ने इसका इस्तेमाल किया है’ मनसुख ने तफ्सील से बताया।
आपको सच बताएं तो हकीकत ये है कि अंग्रेजी में अपना हाथ बड़ा तंग है। अंग्रेजी का ककहरा ही आठवीं कक्षा में सीखा था। बड़ी मुश्किल से अंग्रेजी में हिज्जे बनाना सीखे और कई वर्षों की मेहनत के बाद अंग्रेजी पढ़ना और समझना सीख पाए, लिख आज भी नहीं पाते। हमने न वित्त मंत्री जी का बयान पढ़ा था और न ‘एक्ट आफ गॉड’ के बारे में। पढ़ते भी कैसे अख़बार आजकल घर आ नहीं रहा और टीवी दिन-रात रिया चरित्रम दिखाने में लगा हुआ है। मजबूरी ये है कि अपना सूचना संसार टीवी के इर्द-गिर्द ही घूमता है। हमने अपनी कमजोरी छिपाते हुए मनसुख से कहा-
‘दद्दू! ‘एक्ट आफ गॉड’ का मतलब तो ‘एक्ट आफ गॉड’ ही होता है’
मनसुख ने हमारे जवाब पर अपनी छोटी और गोल-गोल आँखें मिचमिचाईं, हैरानी से मेरी तरफ देखा और बोले-
‘अरे भैया इत्ती अंग्रेजी तो अपने राम भी जानते हैं, लेकिन ये बताइये की ये ‘एक्ट आफ गॉड’ का मतलब क्या है?’ मुझे लगा कि मनसुख सेनेटाइजर से हाथ धोकर मेरी पीछे पड़ गए हैं। इन्हें संतुष्ट करना ही होगा। मैंने कहा-
‘गुरु! मैंने एक बार विकीपीडिया पर पढ़ा था कि ‘एक्ट आफ गॉड’ को प्राकृतिक प्रकोप यानि दैवीय आपदा कहते हैं। जैसे भूकंप या समुद्री तूफ़ान, यानि देवताओं की ऐसी करतूत जिसके लिए कोई और जिम्मेदार नहीं होता।’
हमें लगा कि हमने जंग जीत ली है। मनसुख बहुत देर तक हमारी तरफ ताकते रहे, फिर बोले-
‘लेकिन सीता जी ने बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था को ‘एक्ट आफ गॉड’ क्यों कहा?
मनसुख की जिज्ञासा आम भारतीय की जिज्ञासा का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए उसका समाधान करना हमारा राष्ट्रधर्म है। हम समझ गए कि मामला जल्द सुलझने वाला नहीं है। हमने भीतर आवाज देकर चाय का आदेश दिया और मनसुख को सुखी करने के इरादे से अपने ज्ञान का भण्डार खोलकर उनके सामने रख दिया।
‘दद्दा! ये अपनी सीता जी हैं न बड़ी भोली हैं, ये शुरू से भोली हैं। जब रक्षा मंत्री थीं तब भी भोली थीं और अब जब वित्त मंत्री हैं तब भी भोली ही हैं। भोलापन इनका दैवीय स्वभाव है। ये अंग्रेजी में पढ़ी हैं, अंग्रेजी में सोचती हैं, अंग्रेजी में बोलती हैं। सरकार ने इन्हें अनुवाद के लिए एक नौजवान सहायक मंत्री दे रखा है। बड़ा ही अनुरागी ठाकुर है, शब्दश:अनुवाद करता है सीता जी के प्रवचनों का’ हमने मनसुख को समझाया। उनकी समझ में कितना आया और कितना नहीं ये हम नहीं जानते, लेकिन वे कुछ गंभीर नजर आये। उनके गंभीर होने तक भीतर से चाय भी आ गयी।
मनसुख ने कप से बसी में चाय उड़ेलकर सुड़की और फिर रुक कर बोले-
‘ये तो ठीक है लेकिन ये ‘एक्ट आफ गॉड’ क्या है?’ मनसुख की सुई जैसे ‘एक्ट आफ गॉड’ पर ही अटक गयी थी। मैं सोच रहा था कि अगर मनसुख के सवाल का जवाब न मिला तो आज का दिन खोटा हो जाएगा। मराठी में खोटा को खोटी कहते हैं। हम नहीं चाहते थे कि ऐसा हो, सो हमने अपनी पूरी ऊर्जा मनसुख को मुतमईन करने में खर्च करने का मन बना लिया। मैंने भी चाय सुड़कने के बाद कप किनारे पर रखते हुए कहा-
‘मनसुख दद्दा, आपने ठीकरा फोड़ने की कहावत सुनी है?’
हाँ..हाँ मनसुख ने सहमति में अपना गंजा सर हिलाया। बोले- ‘लेकिन ठीकरा फोड़ने का ‘एक्ट आफ गॉड’ से क्या लेना-देना?’
मुझे पता था कि मनसुख मानेगें नहीं, प्रतिप्रश्न जरूर करेंगे, इसलिए जवाब पहले से ही सोच रखा था। मैंने उन्हें बताया कि जब कोई नाकाम हो जाता है तो अपनी नाकामी का ठीकरा किसी न किसी के सर पर फोड़ता ही है, इस बार ठीकरा कांग्रेस के सिर न फोड़कर सीता जी ने भगवान के सर पर फोड़ दिया है ‘एक्ट आफ गॉड’ कहकर। वे जानती हैं कि जब नाकामी के साथ भगवान का नाम जुड़ जाएगा तो कोई कुछ नहीं कह पायेगा।’
मनसुख की आँखें विस्मय से अचानक चौड़ी हो गयीं, मनसुख को जब भी कोई हैरान करने वाली बात सुनने को मिलती है उनकी आँखें दो इंच चौड़ी हो जातीं हैं। ये उनका ‘एक्ट आफ गॉड’ है। वे कसमसाये, बोले-
‘ये तो नाइंसाफी है, कोरोना के कारण अगर अर्थ व्यवस्था बेपटरी हो गयी तो इसमें बेचारे भगवान क्या करें! कोरोना चीन ने दिया और अर्थव्यवस्था सीता जी नहीं सम्हाल पाईं तो ये ‘एक्ट आफ गॉड’ कैसे हुया? इसे तो ‘एक्ट आफ चाइना’ या ‘एक्ट ऑफ सीता’ होना चाहिए था’। मनसुख के तर्क संबित पात्रा की तरह अकाट्य होते हैं, उनका तोड़ शायद ही किसी के पास हो। सौभाग्य ये है कि मनसुख को अपने राम समझा-बुझा लेते हैं। हमने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहना शुरू किया-
‘दद्दा! सीता जी की इतनी हिम्मत तो है नहीं कि बेपटरी अर्थव्यवस्था के लिए अपने प्रधान जी के सर ठीकरा फोड़ सकें, सो उन्होंने अबकी भगवान को पकड़ लिया। वे जानती हैं कि अपना भगवान कितना सीधा है, जो चाहे कर लो, किसी से कुछ नहीं बोलता। लॉकडाउन में सरकार ने भगवान के घर के दरवाजे बंद करा दिए थे, भगवान कुछ बोला?’…मैंने अपनी बात बीच में अटका दी, ऐसा मनसुख का समर्थन हासिल करने के लिए करना ही पड़ता है। मनसुख ने सहमति में सिर हिलाया। वे अतृप्त थे, मै जानता था, सो मैंने अपनी बात आगे बढ़ाई
‘दद्दा! सीता जी ने सरकार की नाकामी को ‘एक्ट आफ गॉड’ बताकर ठीकरा भगवान के सर फोड़ दिया और अपना पल्लू भी बचा लिया। हर समझदार सरकार ऐसा ही करती है। ये ठीकरा फोड़ने के लिए कोई न कोई सिर खोज ही लेती है। कभी ये सिर विपक्ष का होता है, कभी पड़ोसियों का और कभी आम आदमी का, जब कोई नहीं मिलता तो भगवान तो है ही’
मनसुख की मुद्रा देखकर मैं समझ चुका था कि अपना काम हो चुका है। मनसुख समझ गए हैं कि ‘एक्ट आफ गॉड ‘वास्तव में होता क्या है?’ वे कभी मेरी ओर देख रहे थे और कभी आसमान की ओर, शायद सोच रहे थे कि राजनीति में आदमी कितना दुःसाहसी होता है कि ठीकरा फोड़ने के लिए भगवान तक को नहीं छोड़ता।