राकेश अचल
भारत की टीवी पत्रकारिता में क्रांतिकारी तब्दीली हो गयी है। बीते एक दशक में ‘दुशासन’ की भूमिका में खड़ा टीवी चैनलों का संसार अब अचानक ‘कृष्ण’ की भूमिका में नजर आने लगा है। टीवी चैनलों की दूसरी भूमिका समानांतर जांच एजेंसियों जैसी हो गयी है, सो अलग। देश के नामचीन्ह और प्रबुद्ध पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने तो एक चर्चित आरोपी के साथ टीवी स्क्रीन पर लगातार 141 मिनिट बैठकर जैसे नया इतिहास ही रच दिया है।
एक उभरते हुए सिनेमा अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या के मामले में मुख्य आरोपी रिया चक्रवर्ती का बीते 71 दिनों में देश के नामचीन्ह चैनल ‘आजतक’ समेत सभी चैनलों ने जमकर चीरहरण किया। यानि सभी समाचार चैनलों की भूमिका ‘दुशासन’ की थी, सब मिलकर रिया को नंगा करने में लगे थे, लेकिन जैसे ही मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से करने के निर्देश दिए, टीवी चैनलों की भूमिका अचानक बदल गयी।
पहले तो सभी टीवी चैनल समानांतर सीबीआई की तरह मामले की जांच में जुट गए, जैसे उनके पास कोई दूसरा काम ही न हो और अदालत ने जैसे उन्हें ही जांच एजेंसी नियुक्त किया हो? बाद में उनका अचानक हृदय परिवर्तन हो गया और उन्हें रिया ‘द्रोपदी’ सी पाक-साफ़ दिखाई देने लगी। भारत का टीवी चैनलों पर आश्रित समाज तब चौंका, जब राजदीप सरदेसाई अचानक सुशांत आत्महत्या मामले की मुख्य आरोपी रिया चक्रवर्ती को लेकर ‘आजतक’ पर प्रकट हुए और पूरे 141 मिनिट तक उसका साक्षात्कार करते रहे।
रिया एक युवक को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले की आरोपी न हुई जैसे कोई नोबल पुरस्कार विजेता हो गयी! एक-एक सेकेण्ड की कीमत वसूल करने वाले आजतक के पास रिया के लिए दो घंटे का समय कहाँ से आ गया समझ से बाहर है। ये अकेला टीआरपी बटोरने का मामला नहीं लगता। इसके पीछे सीधा-सीधा प्रायोजन दिखाई देता है। और तर्क ये है कि एक निर्दोष लड़की को अपनी सफाई देने का अवसर देना कौन सा पाप है?
मुझे अख़बारों और टीवी चैनलों की दुनिया से जुड़े कोई चार दशक से ज्यादा हो गए हैं, भले ही मेरे पास राजदीप सरदेसाई जैसा कोई बड़ा प्लेटफार्म या पत्रकारिता की विरासत नहीं है लेकिन इतना तजुर्बा तो है ही कि मैं खबर की प्रस्तुति देखकर ये कह सकूं कि खबर दिखाने का मकसद क्या है? ग्रेट खली और जीते जी स्वर्ग जाने का दावा करने वाले कुंजीलाल के बाद शायद ये तीसरा मौक़ा है जब किसी टीवी चैनल ने 141 मिनिट का समय मुफ्त में लुटा दिया हो। देश के प्रधानमंत्री को भी किसी चैनल ने इतना समय नहीं दिया, छोड़ चुनाव रैलियों के, क्योंकि रैलियों का सीधा प्रसारण दिखाने का पैसा मिलता है।
रिया के ऐतिहासिक साक्षात्कार के समर्थन में तर्क आ रहे हैं कि जिस रिया को लगातार टीवी चैनलों ने तीन सौ घंटे बेआबरू किया उसका 141 मिनिट का इंटरव्यू दिखाने पर किसी के पेट में दर्द क्यों होता है? रिया से किसी भी टीवी चैनल देखने वाले की कोई रिश्तेदारी नहीं है। उस गरीब दर्शक ने 300 घंटे भी टीवी चैनलों द्वारा किया जाने वाला रिया का चीरहरण जबरदस्ती देखा और फिर उसके बचाव के लिए किये किया गया इंटरव्यू भी। दर्शक के हाथ में है क्या सिवाय रिमोट के। फिर जब आजतक ने इंटरव्यू किया तो सब रिया के हमदर्द हो गए। बेचारा दर्शक जिस चैनल पर जाये वहां रिया बैठी नजर आती है।
मेरा सीधा-सीधा आक्षेप है कि इस सबके पीछे सियासत है, पैसा है, गिरोह हैं। जब मामले की जांच सीबीआई ने शुरू कर दी है तो टीवी चैनलों को समानांतर जांच करने की क्या जरूरत है? क्यों टीवी चैनल आरोपी को जानबूझकर सफाई देने का मंच उपलब्ध करा रहे हैं? क्या वे ऐसा हर आरोपी के लिए करते आये हैं? या उनका मकसद आरोपी को बचाना और सीबीआई की जांच को प्रभावित करना है? कौन है जो ये सब करा रहा है या करने की प्रेरणा दे रहा हैं?
रिया चक्रवर्ती के लिए ‘कृष्ण’ बनकर टीवी के पर्दे पर प्रकट हुए राजदीप सरदेसाई को पत्रकारिता में अभी कोई 26 साल हुए हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़े हैं, इसलिए ‘घामड़’ तो बिलकुल नहीं है, लेकिन ‘घाघ’ जरूर हैं। और रिया का लंबा साक्षात्कार कर उन्होंने अपना कद एक बार फिर भारतीय जनमानस को दिखा दिया है। जिस चैनल पर उनका इंटरव्यू आया है उसका दावा है की उसके पास 25 करोड़ दर्शक हैं, यानि उसे आधा क्या, आधे से भी आधा भारत नहीं देखता, लेकिन उसे जिस भारत में देखा जाता है वहां एक जमाने में उसकी अपनी साख थी। पर अब साफ़ दिखाई देने लगा है कि गोदी में बैठने वालों में वो भी शामिल है।
एक जमाना था जब हमसे टीवी चैनल चंबल के डाकुओं के बारे में ऐसे ही साक्षात्कारों की मांग करते थे, लेकिन अब उनका स्वाद बदल गया है। डाकू बीहड़ों में रहे नहीं, वे डॉन हो गए, महानगरों में आ गए हैं, इसलिए अब वे ही टीवी चैनलों पर छाए हैं। गुजरात के दंगों की जीवंत रिपोर्टिंग करने के बाद पहचान पाने वाले राजदीप को अब रिया का साक्षात्कार करने के लिए पहचाना जा रहा है। उन्होंने भारतीय हिंदी टीवी दर्शक को दो घंटे जबरन एक लिजलिजा इंटरव्यू दिखाकर अपराध किया है या अहसान ये आपको तय करना है। आपको तय करना है कि आप कैसा टीवी देखना चाहते हैं, मेरा काम मैंने कर दिया। आपको बता दिया कि टीवी के ‘दुशासन’ और ‘कृष्ण’ एक ही हैं, वे जब चाहें तब किसी का चीर हरण कर सकते हैं और जब चाहें उसका चीर लंबा कर सकते हैं, लाज बचाने के नाम पर।
रिया के साक्षात्कार को प्रायोजित बताने पर मेरे अग्रज साथी ने मुझे तमाम लानत भेजी थी, वे पुराने राजनीतिज्ञ और विज्ञ शिक्षविद हैं… उनकी ही तरह टीवी चैनल जगत के अनेक मित्रों ने भी राजदीप और रिया की तरफदारी की, उन्हें ऐसा करना चाहिए क्योंकि वे शायद मुझसे ज्यादा मीडिया को जानते हैं, लेकिन मैं उनकी प्रतिक्रियाओं का सम्मान करते हुए भी अपनी बात पर अडिग हूँ कि गोदी मीडिया का ‘दुशासन’ और ‘कृष्ण’ एक ही है और इसे पहचानने की जरूरत है।
इसकी भूमिका में राजदीप सरदेसाई है या कोई और, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अब समय आ गया है जब देश में ऐसा क़ानून चाहिए जो टीवी चैनलों को सीबीआई और पुलिस बनने से रोके, अन्यथा न जांच एजेंसिया विश्वस्त रहेंगी न अदालतें, (वैसे हैं भी कितनी ये अलग विषय है) अब ये भी तय किया जाना है दर्शक ‘एक्सक्लूसिवःइंटरव्यू’ देखे या ‘एक्स्प्लोसिव्ह इंटरव्यू।‘ टीवी के पास अब एक्सक्लूसिव कम एक्स्प्लोसिव्ह माल ज्यादा है।