जेईई-नीट को राजनीति की ‘प्रवेश परीक्षा’ न बनाएं

अजय बोकिल 

इस देश में शिक्षण संस्थानों में प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन भी राजनीति का मुद्दा बन जाए, ऐसा शायद ही हुआ है। क्योंकि इसमें मन माफिक राजनीतिक मक्खन निकलने की संभावना कम ही रहती है। लेकिन इस दफा देश की दो अहम प्रवेश परीक्षाओं जेईई और नीट के आयोजन को लेकर भी मोदी सरकार और विपक्षी राज्य सरकारों के बीच ठन गई है। इसी बहाने कांग्रेस ने विपक्ष को फिर एक मंच पर लाने का प्रयास नए सिरे से शुरू कर दिया है। विपक्ष की कोशिश है कि केन्द्र सरकार इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाते हुए झुके, वहीं सत्तापक्ष ने साफ संकेत दे दिए हैं कि परीक्षा तो होकर रहेगी। जिसे जो करना है, कर ले।

केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का कहना है कि प्रवेश परीक्षाएं अभिभावकों के अनुरोध पर आयोजित की जा रही है। जबकि विपक्ष और कई छात्रों का तर्क है कि देश में कोरोना के बढ़ते संक्रमण, देश के कई राज्यों में बाढ़ की स्थिति तथा आवागमन के साधनों के अभाव के चलते इन दोनों प्रवेश परीक्षाओं को टाला जाना चाहिए। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर भी दायर की गई थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि कोरोना के कारण जिंदगी की रफ्तार तो रोकी नहीं जा सकती।

लेफ्ट और कांग्रेस से जुड़े छात्र संगठन इस मुद्दे को सड़क की लड़ाई में तब्दील करने का प्रयास कर रहे हैं। दूसरी तरफ परीक्षा के आयोजन के समर्थक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और विद्यार्थी मित्र ने दावा किया ‍कि उन्होंने इस माह के शुरू में ही जेईई नीट में शामिल होने के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए प्रेक्टिस के तौर पर ऑन लाइन मॉक टेस्ट आयोजित कराए, जिसमें बड़ी तादाद में छात्रों ने भाग लिया। हालांकि ये परीक्षाएं हों या नहीं, इसको लेकर छात्र भी एकमत नहीं है। जो छात्र परीक्षा को लेकर बहुत गंभीर हैं, वो नहीं चाहते कि उनका एक साल बर्बाद हो।

लेकिन बहुत से छात्रों का मानना है कि कोरोना संक्रमण का खतरा उठाकर परीक्षा देने जाना आपदा को खुद न्‍योता देने जैसा है। उनका यह भी कहना है कि जब बहुत से जरूरी काम टाले जा रहे हैं तो सरकार इन प्रतियोगी परीक्षाओं को आयोजित करने पर क्यों अड़ी हुई है? यानी राजनीति दोतरफा है। और ये लड़ाई अब सत्तापक्ष और विपक्ष की मूंछ की लड़ाई में तब्दील होती दीख रही है। लेकिन इन सब के पीछे कुछ जायज सवाल भी हैं, जिनका जवाब तो सरकार को देना ही होगा।

देश की इन दो प्रतिष्ठित प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनटीए) करती है। कोरोना वायरस के व्यापक संक्रमण और सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत के चलते इन परीक्षाओं को स्थिति सामान्य होने तक स्थगित करने की मांग उठ रही थी। शुरू में यह कुछ छात्रों की ओर से ही थी। लेकिन जल्द ही राजनीतिक दल भी उनके समर्थन में उतर आए। इससे उन छात्रों में भी असमंजस फैला जो परीक्षा की तैयारी पूरी गंभीरता से कर रहे थे। हालांकि कोरोना का डर उनके मन में भी रहा है।

वामपंथी छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) के तत्वावधान में चार हजार परीक्षार्थियों ने एक दिनी भूख हड़ताल की। वैसे आइसा इस शैक्षणिक वर्ष को ‘शून्य वर्ष’ घोषित करने की मांग भी कर रहा है। ट्विटर पर भी #सत्याग्रहअगेंस्टएक्जामकोविड काफी ट्रेंड हुआ। कांग्रेस से जुड़ा एनएसयूआई भी परीक्षा आयोजन का विरोध कर रहा है। तर्क दिया जा रहा है कि जब देश में कोरोना के कारण करीब 60 हजार मौतें हो चुकी हैं, तब प्रवेश परीक्षा आयोजित कर लाखों छात्रों की जान जोखिम में डालना कहां तक उचित है?

उधर इस परीक्षा विरोध के राजनीतिक तत्व को भांपकर मोदी सरकार ने भी इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। तमाम विरोध को दरकिनार कर एनटीए ने ऐलान किया कि देश भर में एनईईटी (नीट) परीक्षा 12 सितंबर और जेईई 1 से 6 सितंबर तक होगी। उल्लेखनीय है कि इस साल नीट में करीब 16 लाख और जेईई में 11 लाख परीक्षार्थी शामिल हो रहे हैं। इसके लिए एनटीए ने देश भर में 3842 केन्द्र बनाए हैं। साथ ही कहा गया है कि कोरोना के चलते सभी केन्द्रों में जरूरी गाइडलाइन का पालन करना अनिवार्य होगा।

इस ऐलान के बाद प्रवेश परीक्षा आयोजन को लेकर चल रहे विवाद ने पूरी तरह राजनीतिक रंग ले लिया। दिल्ली में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की अगुवाई में सात विपक्षी पार्टियों की वर्च्युअल मीटिंग हुई। मीटिंग में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने नीट, जेईई टलवाने सभी विपक्षी मुख्यमंत्रियों से एक साथ सुप्रीम कोर्ट चलने का आह्वान किया। ममता दी ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट में एक रिव्यू पिटीशन दायर करने की मांग की थी, लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला।

महाराष्ट्र व पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी ममता की बात का समर्थन किया। खास बात यह है कि इन सबका सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा कायम है। इसके पूर्व दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर इन परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग कर चुके हैं। अलबत्ता झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है कि हमें इस मामले में पहले राष्ट्रपति और पीएम से बात करनी चाहिए।

उधर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि मोदी सरकार छात्रों की ‘मन की बात’ सुने और इस मुद्दे का कोई सर्वमान्य हल निकाले। उधर तमिलनाडु सरकार ने केन्द्र से मांग की है या तो उसके राज्य के बच्चों को नीट जेईई परीक्षा से छूट दी जाए या फिर परीक्षा ही कैंसल कर दी जाए। इस बीच परीक्षा विरोधी पर्यावरणवादी ग्रेटा थनबर्ग का समर्थन भी ले आए। इस‍ विवाद में अभिनेता और परोपकारी सोनू सूद भी कूद पड़े। उन्होने कहा कि यदि परीक्षाएं नहीं टलती हैं तो वो जरूरतमंद बच्चों को परीक्षा केन्द्र तक पहुंचाने की व्यवस्था करेंगे।

इस विवाद के बीच जिन छात्रों को परीक्षा की चिंता है, वो अपने एडमिशन कार्ड डाउनलोड कर रहे हैं। 26 अगस्त की शाम तक एक ही दिन में 4 लाख से ज्यादा एडमिशन कार्ड डाउनलोड हुए। यह अंदाज लगाना कठिन है कि वास्तव में कितने छात्र-छात्राएं ऐसे हैं, जो परीक्षा आयोजन के समर्थन में और विरोध में हैं। इस मुद्दे पर राजनीति से हटकर सोचें तो परीक्षा में बैठने वाले छात्रों की कुछ वाजिब समस्याएं हैं, जिनका कोई समाधानकारक उत्तर सरकार नहीं दे रही है।

इसमें पहला तो यह कि जिन शहरों में परीक्षा केन्द्र बनाए गए हैं, वहां तक छात्र पहुंचेंगे कैसे? क्योंकि ज्यादातर राज्यों में कोरोना के कारण पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद है। ट्रेनें भी बहुत गिनी चुनी चल रही हैं। यही हालत हवाई सेवा की भी है। ध्यान रहे कि इन प्रवेश परीक्षाओं में बैठने वाले अधिकांश छात्र गरीब या मध्यम वर्गीय परिवारों से हैं, जो स्वयं के वाहनों से इतनी दूर नहीं जा सकते। और बहुतों के पास तो अपने वाहन भी नहीं है। कई परीक्षार्थियों के परीक्षा केन्द्र तो उनके निवास से  ढाई-तीन सौ किमी दूर हैं। वो क्या करें?

दूसरे, जो छात्र परीक्षा के लिए अन्य शहरों या गांवों से किसी तरह पहुंच भी गए तो वो रुकेंगे कहां। क्योंकि होटल भी पूरी तरह से नहीं खुले हैं और खुले भी हैं तो वहां रुकना खतरे से खाली नहीं है। खुदा न खास्ता कोई छात्र परीक्षा के दौरान संक्रमित हो गया तो उसके इलाज की क्या व्यवस्था होगी? क्योंकि किसी नए शहर में उसके लिए अस्पताल जाना या ले जाना भी आसान नहीं होगा। एक छात्र ने तो यह अपील भी की कि प्लीज पहले कोरोना वैक्सीन तैयार कर लीजिए, उसके बाद ही प्रवेश परीक्षा आयोजित कीजिए।

जाहिर है कि सरकार इसे राजहठ की तरह न लेकर पूरी संवेदनशीलता के साथ ले। क्योंकि मामला जटिल है। वैसे परीक्षा टालना भी कोई स्थायी हल नहीं है, क्योंकि कोरोना का प्रकोप कब तक चलेगा, कोई नहीं जानता। दूसरे, बहुत से छात्र परीक्षा की तैयारी करके बैठे हैं, परीक्षा टलेगी तो वो हतोत्साहित होंगे। राजनीति और प्रति राजनीति से सियासी हित भले सधते हों, छात्रों का नहीं सधेगा। सरकार को भी हठधर्मिता के बजाए पूरे मामले को समग्रता में देखने और हैंडल करने की जरूरत है। क्योंकि इन प्रवेश परीक्षाओं के सुरक्षित आयोजन की सफलता और विफलता भावी राजनीति की भी नई इबारत लिखेगी।

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