राकेश अचल
आज का ताजा-तरीन मुद्दा कांग्रेस ही है। कांग्रेस के अंतर्विरोधों की चर्चा ने कोविड-19 की सुर्खी को भी आज पीछे छोड़ दिया है। करीब 135 साल पुरानी कांग्रेस एक बार फिर रूपांतरित होने के कगार पर है। यहां या तो कांग्रेस मजबूत होकर निखर सकती है या फिर एक बार फिर बिखर सकती है। कांग्रेस के मौजूदा स्वरूप में परिवर्तन समय की मांग भी है और कांग्रेस की अपनी विवशता भी। इससे उबरना कांग्रेस के लिए अनिवार्य या अपरिहार्य है।
देश में भाजपा के सत्तारूढ़ होने के साथ ही 2014 से देश के अच्छे दिन आये हों या न आये हों लेकिन कांग्रेस के बुरे दिन जरूर शुरू हो गए। मेरी बात कांग्रेस के मित्रों को बुरी लग सकती है, लेकिन जो हकीकत है सो है। जो कांग्रेस 22 मई 2004 में मजबूत होकर उभरी थी वो ही कांग्रेस 17 मई 2014 के बाद जनता की नजरों से उतरी तो लगातार उतरती ही चली गई।
1989 में राजीव गांधी की पराजय के बाद कांग्रेस को दो साल सत्ता से दूर रहना पड़ा। इन दो सालों में भी सत्ता स्थिर नहीं रही। विश्नाथ प्रताप सिंह को पदच्युत कर चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने लेकिन टिक नहीं पाए। 1991 में आम चुनावों के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में लौटी और उसने पीव्ही नरसिम्हाराव को प्रधानमंत्री बनाया। राव साहब पूरे पांच साल प्रधानमंत्री रहे लेकिन अगले चुनाव में सत्ता फिर कांग्रेस के हाथ से खिसक कर भाजपा के हाथ में आ गयी। भाजपा ने तेरह दिन में ही सत्ता गंवा दी और फिर सत्ता 19 मार्च 1998 तक फ़ुटबाल बनी रही। इस अवधि में देश ने दो और प्रधानमंत्री देखे। एचडी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल।
सत्ता सुंदरी 19 मार्च 1998 को एक बार फिर भाजपा के साथ आ गयी। अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने और 22 मई 2004 तक सत्तारूढ़ रहे। वाजपेयी तमाम लोकप्रियता के बावजूद दोबारा सत्ता में नहीं लौट पाए। उनके बाद कांग्रेस ने डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर एक दशक तक अखंड राज किया। 17 मई 2014 को सत्ता सुंदरी ने एक बार फिर कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा को अपनाया और तब से अब तक भाजपा लगातार सत्ता में है।
आज की कांग्रेस को समझने के लिए आपको अतीत में ले जाना मेरी मजबूरी थी। आज के पाठकों में बहुत से ऐसे होंगे जो इस इतिहास से वाकिफ नहीं होंगे इसलिए उन्हें ये बताना आवश्यक है कि देश में अब तक हुए 16 आम चुनावों में से कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत से सरकारें बनाई और 4 में गठबंधन की सरकार का नेतृत्व करते हुए कुल 49 साल सत्ता भोगी और देश को 7 प्रधानमंत्री दिए। 2014 के आम चुनाव में, कांग्रेस ने आज़ादी से अब तक का सबसे ख़राब आम चुनावी प्रदर्शन किया और 543 सदस्यीय लोक सभा में केवल 44 सीट जीतीं। आज उसके पास 52 सीटें हैं। तब से लेकर अब तक कांग्रेस कई विवादों में घिरी रही है।
कांग्रेस को एक बार फिर से पुनर्जीवित करने के लिए नए अध्यक्ष की तलाश की जा रही है। कांग्रेस की विवशता कहिये या कमजोरी की वह गांधी परिवार से बाहर एक सबल नेतृत्व की तलाश नहीं कर पा रही है। राहुल गांधी इस जिम्मेदारी से कंधा झटक चुके हैं और श्रीमती सोनिया गाँधी की अवस्था ऐसी नहीं रही है की वे कांग्रेस को 2024 में होने वाले आम चुनाव में भाजपा का मुकाबला करने लायक बनाकर दोबारा सत्ता में वापसी के लिए मजबूत कर सकें। भाजपा के मौजूदा नेतृत्व में जो आक्रामकता है उसका मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को भी एक आक्रामक नेतृत्व की तलाश है।
कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने इस बाबद श्रीमती सोनिया गांधी को पत्र भी लिखा ,कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक भी हुई लेकिन नतीजा वो ही ‘ढाक के तीन पात’ वाला रहा। केंद्रीय कार्यसमिति ने एक बार फिर सोनिया गांधी को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) का सत्र होने तक अंतरिम अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभाने और पार्टी के समक्ष आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए संगठन स्तर पर जरूरी बदलाव करने के लिए अधिकृत किया है।
कांग्रेस की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताते हुए श्रीमती सोनिया गाँधी को पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा, पीजे कुरियन, रेणुका चौधरी, मिलिंद देवड़ा और अजय सिंह शामिल हैं। इनके अलावा सांसद विवेक तन्खा, सीडब्ल्यूसी सदस्य मुकुल वासनिक और जितिन प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राजेंद्र कौर भट्ठल, एम. वीरप्पा मोइली और पृथ्वीराज चव्हाण ने भी पत्र पर दस्तखत किए हैं।
उत्तरप्रदेश प्रदेश कांग्रेस समिति (पीसीसी) के पूर्व अध्यक्ष राज बब्बर, दिल्ली पीसीसी के पूर्व अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली, हिमाचल प्रदेश पीसीसी के पूर्व अध्यक्ष कौल सिंह ठाकुर, बिहार अभियान के मौजूदा अध्यक्ष अखिलेश सिंह, हरियाणा विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष कुलदीप शर्मा, दिल्ली विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष योगनंद शास्त्री, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने भी इस पत्र पर दस्तखत किये लेकिन इनमें से एक ने भी बैठक में पार्टी की कमान सम्हालने के लिए नए अध्यक्ष का नाम सामने नहीं रखा।
मौजूदा संकट से निबटने के लिए कांग्रेस को एक बार फिर बिखराव के दौर से गुजरना चाहिए। या फिर भाजपा या लगभग नष्ट हो चुके वामपंथी दलों की तरह संगठनात्मक ढांचे को अपनाना चाहिए। आज के जमाने में व्यक्ति केंद्रित राजनीतिक दल चलाना आसान काम नहीं है। गांधी परिवार ही अब कांग्रेस के भविष्य का निर्धारण कर सकता है। उसे एक बार फिर अपने भीतर से कोई नरसिम्हाराव या डॉ. मनमोहन सिंह खोजकर जनता के सामने लाना होगा, अन्यथा आने वाले दिनों में कांग्रेस और दुर्दशा का शिकार हो सकती है।
कांग्रेस के पक्ष में एक ही बात जाती है कि वो आज भी लोकसभा में 52 सीटों पर होते हुए भी देश का प्रमुख विपक्षी दल है और उसी में इतनी क्षमता है कि वो एक बार फिर अपने आपको सत्तारूढ़ कर सकती है। कांग्रेस को अब 543 सीटें तो कभी नहीं मिल सकतीं लेकिन सत्ता में वापसी लायक सीटें कबाड़ना उसके लिए कठिन भी नहीं है। कांग्रेस ये सब कब तक कर पाएगी कोई नहीं जानता। हम भी नहीं और शायद आप भी नहीं।