‘शांति निकेतन’ को तो सियासी अशांति का अखाड़ा न बनाएं

अजय बोकिल

देश का एक अन्यतम और अत्यंत प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान, जो अगले साल अपनी स्थापना की शताब्दी मनाने जा रहा हो, वो इन दिनों घटिया राजनीति के अखाड़े में तब्दील हो चुका है। जिसके नाम में ही ‘शांति’ हो, जिसकी स्थापना एक वैश्विक संवाद केन्द्र के रूप में की गई हो, वो ‘शांति निकेतन’ भी अशांति और कलह का केन्द्र बन गया है। इसकी वजह करीब एक हफ्ते पहले विश्व भारती विवि परिसर में खड़ी की जा रही एक दीवार की तोड़फोड़ और हिंसा से हुई थी, जो अब राज्य की मुख्य मंत्री ममता बैनर्जी और विश्व भारती विवि के उपकुलपति बिद्युत चक्रबर्ती की तू तू-मैं मैं तक पहुंच गई है।

इसी के तहत विवि के वीसी चक्रबर्ती ने इस विश्वद्यालय के संस्थापक विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर को भी ‘बाहरी’ बता दिया। इसके पूर्व विवि द्वारा दीवार खड़ी किए जाने की आलोचना करते हुए मुख्यमंत्री ममता दी ने आरोप लगाया था कि ‘‘पौष मेला मैदान पर चहारदीवारी के निर्माण के समय ‘बाहरी’ लोग मौजूद थे। उन्होंने कहा कि प्रकृति की गोद में शिक्षा प्रदान करने के टैगोर के आदर्श के अनुरूप यह कार्रवाई नहीं है।’’ उधर विवि का कहना है कि दीवार एनजीटी के उस फैसले के परिपालन में बनाई जा रही है, जिसमें पौष मेले से होने वाले व्यवधान और प्रदूषण से विवि परिसर को बचाना जरूरी है।

निर्माणाधीन दीवार और दरवाजा तोड़ने की कार्रवाई स्थानीय तृणमूल कांग्रेस विधायक नरेश बावरी के नेतृत्व में की गई। इसके बाद स्थानीय पुलिस ने 8 लोगों को गिरफ्तार भी किया है। इस तोड़फोड़ और हिंसा के बाद विवि बंद कर दिया गया है और राजनीतिक तलवारबाजी जारी है। इस पूरे घटनाक्रम से अगर कोई आहत है तो वो लोग हैं, जो शांति निकेतन स्थित इस विश्व भारती विश्वविद्यालय को ज्ञान और कला साधना का अप्रतिम केन्द्र मानते रहे हैं।

बताया जाता है कि शांति निकेतन में आरंभ में एक आश्रम की शुरुआत रवींद्रनाथ टैगोर के पिता एवं विख्यात समाज सुधारक एवं ब्रह्म समाजी महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर ने 1863 में तब की थी, जब वे वीरभूम जिले में स्थित बोलपुर गांव में अपने जमींदार मित्र से मिलने आए थे। उन्हें यहां का शांत, सुरम्य वातावरण बेहद पसंद आया और यहीं जमीन खरीदकर ब्रह्म आश्रम की स्थापना की, जहां हर तरह की साधना की जा सकती थी। इसकी स्थापना पर देवेन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि ‘यहां मैंने शांतं, शिवम् अद्वैतं’ की प्रतिष्ठा कर दी है। अपने पिता की 13 संतानों में सबसे छोटे रवीन्द्रनाथ ने इसे ‘शांति निकेतन’ नाम दिया। महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर के रहते ही वहां पौष मेले की शुरुआत हुई।

महाकवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने 1900 में अपना पहला संबोधन शांति निकेतन में दिया। अगले साल वो सपरिवार यहीं रहने आ गए। 1901 में उन्होंने वैदिक मंत्रों के साथ यहां ब्रह्मचर्य आश्रम की स्थापना की। 1902 में यहां ब्रह्म विद्यालय की शुरुआत हुई। और 1921 में टैगोर ने यहां विश्वभारती विवि की स्थापना की। विश्वकवि ने ही यहां ऋतु उत्सव शुरू कराए। उन्होंने इसे नैसर्गिक रम्य वातावरण में ज्ञान साधना का अनुपम केन्द्र बना दिया। ऐसा शिक्षण केन्द्र जहां शिक्षा दीवारों से घिरे कमरों में न होकर प्रकृति के सान्निध्य में दी जाती हो।

विश्वभारती भारत के साथ बंगाली संस्कृति और परंपराओं का भी अद्वितीय केन्द्र है। जल्द ही विश्वभारती की ख्याति पूरे विश्व में फैल गई। आजादी के बाद इसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। राष्ट्रपति इस विवि के परिदर्शक और प्रधानमंत्री इसके कुलपति होते हैं।

यूं बंगाल में सत्तारूढ़ ममता बैनर्जी और सत्ताकांक्षी भाजपा के बीच खूंखार राजनीतिक लड़ाई जारी है। अब महाकवि का विवि भी इसकी चपेट में आ गया है। ताजा विवाद की शुरुआत तब हुई, जब 2017 में विश्वभारती विवि ने परिसर में सवा सौ साल से आयोजित हो रहे पौष मेले पर यह कहकर रोक लगा दी कि उसके पास इस मेले को सम्पन्न कराने के लिए समुचित संसाधन नहीं है। और न ही यह विवि की जिम्मेदारी है। इसके बाद राजनीति तेज हो गई। क्योंकि इस रोक का कोई ठोस कारण किसी की समझ में नहीं आया।

लेकिन मेले में होने वाले जमावड़े से इस पुराने विवि के वास्तु व पर्यावरण को खतरा बताया जाने लगा। मामला एनजीटी तक गया और उसने अपने फैसले में पौष मेला ग्राउंड और विवि परिसर को अलग-अलग सीमांकित करने के निर्देश दिए। चूंकि इसके पहले केन्द्र में मोदी सरकार आ चुकी थी, इसलिए स्थानीय स्तर पर विरोध की राजनीति शुरू हो गई। पौष मेले पर रोक को स्थानीय परंपराओं के खिलाफ माना गया। यह राजनीतिक मुद्दा बन गया। जिसकी परिणति दीवार तोड़ने के रूप में हुई।

घटना की सूचना मिलते ही पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने तुरंत ट्वीट कर मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी का ध्यान इस ओर दिलाया तो दूसरी तरफ विवि प्रशासन ने कैम्पस में सुरक्षा के लिए केन्द्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की मांग की। दरअसल बंगाल में टीएमसी और भाजपा, केन्द्रीय मंत्री अमित शाह और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के बीच जिस स्तर की राजनीति हो रही है, उसकी मर्यादा का कोई पैमाना नहीं है। ममता का मानना है कि बीजेपी उसे हर कीमत पर और हर हथकंडा अपना कर सत्ता से हटाना चाहती है तो बीजेपी का कहना है कि ममता का राज कुशासन का उदाहरण है और वो केवल तुष्टीकरण की राजनीति कर सत्ता में टिकी हुई हैं।

लेकिन इस तल्ख सियासत में राज्य के शिक्षा संस्थान निशाना बन रहे हैं। ज्यादा समय नहीं हुआ, जब पिछले साल अमित शाह की चुनावी रैली के बाद बंगाल के महान समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा तोड़ दी गई थी। तब इसके लिए दोनों दलों ने एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया था। मानो उसी की अगली कड़ी विश्वभारती में निर्माणाधीन दीवार का ध्वस्त किया जाना है। दलीय राजनीति से हटकर सारे देश के मन में जो सवाल है, वो ये कि क्या अब हम किसी शिक्षा संस्थान की पवित्रता को कायम नहीं रहने देंगे?

पौष मेले का आयोजन रद्द करने के पीछे जो कारण विवि ने दिए वो तकनीकी ज्यादा लगते हैं। क्या यह फैसला केवल व्यवस्थागत था या फिर इसके पीछे भी कोई सियासत थी? और फिर वि‍श्वभारती जैसा सांस्कृतिक पूजा का संस्थान लोकोत्सवों से खुद को अलग कैसे कर सकता है? क्योंकि विश्व भारती विवि की ख्याति इसीलिए रही है कि वह पश्चिमी शैली के विवि से अलग लोक व नागरी कलाओं, पूर्व और पश्चिम के दर्शन, कला और विज्ञान तथा प्राचीन तथा आधुनिक संस्कृतियों का भी अनूठा संगम रहा है। सीएम ममता ने विवि में जिन कथित ‘बाहरी’ लोगों का जिक्र किया, उससे आशय उन तत्वों से है, जो इस सुशांत विवि को अशांत बनाना चाहते हैं।

संभव है यह आरोप भी राजनीति से प्रेरित हो, लेकिन इसके जवाब में विवि के कुलपति ने जिस ढंग से रवींद्रनाथ टैगोर को भी ‘बाहरी’ करार दिया, वह किसी को भी क्षुब्ध करने वाला है। यह सही है कि महाकवि बाहर से यहां रहने आए (इसके पहले वो अपने पारंपरिक शहर स्यालदा (अब बंगला देश में) में) रहते थे। लेकिन अपनी आधी जिंदगी उन्होंने शांति निकेतन में ही बिताई। शांति निकेतन उनका घर ही नहीं, एक काव्यमय सपना था, जिसे वो साकार कर रहे थे। ओछी राजनीति अपनी जगह है, लेकिन संस्कृति के नाम पर अगर सांस्कृतिक मूल्यों को ही दफन किया जा रहा हो तो इसे आप क्या कहेंगे?

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