रमाशंकर सिंह
कोरोना की वास्तविकता ऐसे समझिये, सरकारी आँकडे तो मैं आपको रोज़ बताता रहता हूँ जिसमें भारी लोचा है वैसे ही जैसे महाभारत में अश्वत्थामा की मृत्यु के सदंर्भ में ‘नरो वा कुंजरो’ था। दिल्ली सरकार ने परसों कहा कि उनके राज्य में कुल 40 लाख कोरोना पीड़ित हुये जिनमें कोरोना के क्षीण लक्ष्ण थे जो घरों पर ही कुछ समय बाद मामूली उपचार व आराम के बाद ठीक हो गये। दिल्ली का सरकारी आँकड़ा कोरोना पीड़ितों का कितना है आज तक? मात्र 160000 और रोज़ जुड़ रहे हैं करीब डेढ़ हज़ार।
जो अस्पतालों या क्वारेंटाइन सेंटर में पहुँच गये उनमें से एक बड़ा प्रतिशत रिकवर कर गया और करीब 2.5 से 3.5 फीसदी फौत हुये। टेस्ट अभी भी आवश्यकता से बहुत कम हो रहे हैं और दुनिया में हम से आगे 140 देश हैं। टेस्ट ही नहीं होगा तो पता कैसा चलेगा कि पॉज़िटिव है और बग़ैर पता चले यदि मौत हो गई तो वह कोरोना मौत नहीं मानी जा रही। विश्व के महामारी विशेषज्ञों का अनुमान एकदम सही था कि भारत में यह महामारी सबसे विकराल रूप में दिखेगी। यह जानकर ही सब सरकारों ने आँकड़ों को छिपाने का खेल शुरु कर दिया। बिहार बंगाल को देखिये कितनी बड़ी आबादी है और सबसे कम टेस्ट। इसलिये रोज जुड़ने वाले केसों की संख्या और भी कम।
तो वैज्ञानिक दृष्टि से यदि ठीक से सोचा जाये और प्रोजेक्ट किया तो आज भारत में कम से कम दो से ढाई करोड़ मरीज़ हैं जिनमें गैरलाक्षणिक, क्षीण लाक्षणिक और सामान्य कोरोना पीड़ित सब शामिल हैं। यह संख्या अगले एक माह में बढ़ कर निम्नतम चार पाँच गुना होगी और उसी अनुपात में अन्य सब आँकड़े वास्तविक रूप में होंगे चाहे सरकारें मानें या न मानें। आँकड़ा झूठ बनाना बायें हाथ का काम होता है।
अब यदि हम स्थिति को समझकर स्वीकार कर लेंगे तो निदान भी सच्चाई के नज़दीक होगा अन्यथा मीडिया के माध्यम से घोषणा करते रहिये कि हमने महाभारत जीत लिया। यही हठीली झूठी दृष्टि और उससे उत्पन्न ग़लत नीतियां कोरोना के विस्तार के लिये ज़िम्मेदार हैं। भारत ने स्वास्थ्य व शिक्षा को गंभीरता से प्राथमिकता में रखा ही नहीं। ऐसा भी नहीं कि आगत लाखों मौतों से हम सीखने वाले हैं। इन छ: महीनों में भी सरकार की एक घोषणा ऐसी नहीं है कि जो बताए कि भविष्य के तीन चार बरसों में हर ज़िला स्तर पर बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं में क्या बड़ा क्रियान्वित होने वाला है। बीमा कंपनियों के जाल में फँसकर न स्वास्थ्य ठीक रहेगा और न ही चिकित्सा।
यह मान कर चलिये कि अगस्त के बचे नौ दिन, सितंबर व अक्तूबर देश पर भारी होंगें यानी नागरिकों को समस्याग्रस्त करने वाले। जैसे भी हो बचें, बच सकना ही इलाज है क्योंकि औसतन 3 फीसदी की मृत्यु भी पूरी दुनिया में हमें अव्वल रख देगी। अक्तूबर 2020 में कोरोना केसों में और संभवत: कोरोना मौतों में भी हम सबसे ऊपर के पायदान पर खडे दिखेंगे जो एक राष्ट्रीय आपदा व मानवीय सभ्यता में दुखद अध्याय होगा।
यह दलीय राजनीति का प्रश्न नहीं हैं, राष्ट्रीय आपदा का है, लेकिन वह दृष्टि किसी हुक्मरान में दिखाई नहीं देती चाहे जिस पार्टी की सरकार हो। सचमुच ही हमारे ऊपर बहुत क्षुद्र दृष्टि के लोग राज कर रहे हैं। मुनाफे के धंधे के लिये इस बीच नवंबर दिसंबर तक कई वैक्सीन बाज़ार में आयेंगी पर इनमें से एक पर भी मेरा भरोसा नहीं, जो नई वैक्सीन की खोज के सभी मापदंडों पर खरी उतरती दिख रही हो, सिवाय ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में विकसित हो रही वैक्सीन के जो कि शायद मार्च 2021 में आ सके। सीधा सा अर्थ है कि मार्च माह तक बचिये और आत्मनिर्भरता बनाये रखिये।